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वुड कोलाज आर्ट : न मिलावट, न आर्टिफिशियल, रंग चोखा

भारत, कला और संस्कृति की दृष्टि से दुनिया के सांस्कृतिक तौर पर समृद्ध देशों में से एक है। आज भी भारतीय हस्तशिल्प का पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान है। लोककला को सहेजकर निरंतर आगे बढ़ाने वाले हाथ अपनी महीन कारीगरी से रचनात्मक वस्तुएं बनाकर मन मोह लेते हैं।

बिकानेर हाउस में शिल्प प्रदर्शनी मेला

इसी क्रम में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद ने पिछले दिनों दिल्ली के बिकानेर हाउस में तीन दिवसीय ‘शिल्प प्रदर्शनी मेला’ का आयोजन किया। इस मेले में 11 राज्यों के 22 हस्तशिल्प कारीगरों ने भाग लिया। मेले में भारतीय पारंपरिक कला के 5 रूपों का प्रदर्शन किया गया जिसमें बांस, कपड़ा, पारंपरिक और लोक कला, सौंदर्य सुगंधित और पुनर्नवीनीकरण उत्पाद शामिल थे।

वुडेन पेंटिंग ने सभी को किया आकर्षित

इस मेले में तमाम हस्तशिल्प कारीगगरी के बीच एक नई तरह की वुडेन पेंटिंग चर्चा का विषय रही। सामान्य चित्रकारी की तरह दिखने वाली इस कला में अलग-अलग रंग के प्राकृतिक लकड़ियों का उपयोग होता है। मेले में पीबीएनएस ने जब पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के संतन अलू से बात की। संतन ने इस कलाकारी का नाम ‘वुड कोलाज क्रेविंग’ बताया। उन्होंने बताया कि यह काम वे पिछले 15 सालों से कर रहे हैं।

भारत ही नहीं, विदेशों से भी आयात

वुड कोलाज में उपयोग होने वाली अलग-अलग रंग की लकड़ियों को भारत ही नहीं, बल्कि विभिन्न देशों से भी मंगाया जाता है। संतन अलू बताते हैं कि लाल रंग के लिए पडौक पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल होता है, जो मलेशिया से मंगाया जाता है। उसी तरह सफेद रंग की लकड़ी न्यूजीलैंड पाइन से मिलती है। वे बताते हैं कि बैंगनी रंग के लिए लकड़ी दक्षिण अफ्रीका से मंगाई जाती है और पीले रंग के लिए कटहल की लकड़ी का इस्तेमाल होता है।

दिमक के बचाव के लिए ‘सीजनिंग प्रोसेस’

उन्होंने आगे बताया कि उपयोग में आने वाली लकड़ी को पहले सीजनिंग प्रोसेस से गुजारा जाता है, जिससे लकड़ी टिकाऊ होती है। सीजनिंग करने से लकड़ी को जहां दिमक और फंगस से बचाया जा सकता है, वहीं लकड़ी के टेढ़े-मेढ़े होने की समस्या से भी छुटकारा मिलता है। यह प्रोसेस लगभग 2 सालों तक चलता है। वुड कोलाज बनाने से पहले उस कोलाज का चित्रण कागज पर करके रंग भरा जाता है। फिर उसी रंग के आधार पर उपयुक्त रंग के लकड़ी का चुनाव होता है और जरूरत के अनुसार उनकी कटाई की जाती है।

लकड़ी के रंग नेचुरल

लकड़ी की कटाई से लेकर पॉलिशिंग तक केमिकल रहित और प्राकृतिक तरीके से की जाती है। वुड कोलाज चित्रकारी में प्रयोग होने वाले अलग-अलग रंगों की लकड़ियों का भी प्राकृतिक रंग होता है इसीलिए उन्हें किसी भी प्रकार के केमिकल रंगों से रंगने की जरूरत नहीं होती।

केंद्र सरकार की बड़ी पहल

पूर्ण रूप से प्राकृतिक तरीकों से तैयार इस कला की पहुंच विदेशों तक है। लोग इस अनोखे हस्तशिल्प कला को काफी पसंद करते हैं। भारत के साथ-साथ दूसरे देशों में भी इसे ऑनलाइन मंगाया जाता है। आयोजन में आए संतन अलू का इस आयोजन को लेकर कहना था कि इस तरह के आयोजन से हस्तशिल्प कारीगरों को अधिक पहुंच मिलेगी, जिससे व्यवसायिक रूप से काफी फायदा होगा। उन्होंने केंद्र सरकार की तारीफ करते हुए कहा कि सरकार की इस पहल ने हस्तकला से जुड़े लोगों को और अधिक उत्साह के साथ काम करने की प्रेरणा दी है। इस तरह के राष्ट्रीय मंच से ग्रामीण कला को बढ़ावा मिलेगा और अधिक से अधिक लोगों के जुड़ने से रोजगार सृजन के भी अवसर बढ़ेंगे।