बिना किसी गॉडफादर के ग्लैमर की दुनिया में बनाई पहचान आज है चर्चित अभिनेत्री के तौर पर पहचान
आरा रंगमंच से अभिनय की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री श्यामली श्रीवास्तव छोटे पर्दे से लेकर बड़े पर्दे तक के लिए अब किसी परिचय का मोहताज नहीं।
लोहरदगा में जन्मी व आरा में पली-बढ़ी श्यामली के परिवार में रंगकर्म शुरू से रहने के कारण बचपन से ही रंगकर्म के प्रति इसका झुकाव था। अब तक श्यामली ने विदेसिया, अंधेर नगरी चौपट राजा, तेतू, दृष्टिहीन-दिशाहीन, मेरा नाम मथुरा, बुद्धम् शरणम् गच्छामि, दहेज दानव, पर्दा उठने से पहले समेत कई नाटकों में अभिनय किया। वहीं भोजपुरी, मैथिली, नागपुरी आदि के लगभग 65 एलबम किया है। प्रमुख एलबमों में हाय रे होठलाली(छोटू छलिया), शुभ विवाह(शारदा सिन्हा), तोहार जोड़ केहू नइखे(भरत शर्मा ‘व्यास’), होली आउट आफ कंट्रोल(सुनील छैला बिहारी), ओढ़निया वाली(पवन सिंह) समेत अन्य में काम किया। हर्ष जैन की भोजपुरी फिल्म ‘माई तोहरे खातिर’ से फिल्म की दुनिया में कदम रखने के बाद अब तक ‘देश में लौटल परदेसी’, ‘नेहिया-सनेहिया’, ‘टूटे न सनेहिया के डोर’, ‘हमार घरवाली’, ‘बाबुल के घर’ आदि फिल्मों में श्यामली के सशक्त अभिनय को दर्शकों ने काफी सराहा।
श्यामली ने बताया कि ‘खेला’, ‘रंगदार राजा’, ‘योद्धा’ व ‘बलमा बिहारवाला’ शीघ्र रिलीज होनेवाली फिल्में हैं। श्यामली कहती है कि हाल के वर्षो में जो भोजपुरी फिल्में बन रहीं हैं उसमें से हमारी सभ्यता व संस्कृति गायब है। भोजपुरी फिल्मों के माध्यम से हमारी सभ्यता व संस्कृति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। फिल्मों में दर्शक की डिमांड के नाम पर अश्लील गाने व दृश्य परोसे जा रहे है, जो सरासर गलत है। निर्माता यह कहकर दर्शकों को बदनाम कर रहे हैं। इस पर रोक लगनी चाहिए। अश्लील गानों व दृश्यों पर सरकार व सेंसर बार्ड को रोक लगानी चाहिए।
श्यामली को अफसोस है कि जिन्हें भोजपुरी सभ्यता-संस्कृति की जानकारी नहीं वे भोजपुरी फिल्म बना रहे हैं। पैसा कमाने के लिए अनावश्यक रूप से वेस्टर्न ड्रेस यूज किया जा रहा है। एक सवाल के जवाब में श्यामली ने कहा कि अश्लील गीतों व दृश्यों का समाज पर कुप्रभाव पड़ता है। लोगों की मानसिकता विकृत हो रही है। भोजपुरी फिल्मों की स्थिति पर चिंता प्रकट करते हुए श्यामली कहती हैं कि अपने आप को बिहारी कहने पर गर्व होता है, लेकिन भोजपुरी फिल्म की अभिनेत्री कहने पर शर्म आती है। श्यामली का सपना है कि वह एक अच्छी भोजपुरी फिल्म बनाये जिसमें भोजपुरी सभ्यता-संस्कृति हो और लोग एक साथ देख सकें।
‘फुलवा’, ‘सजन घर जाना है’, ‘बालिका बधु’, ‘सातो वचन निभाई सजना’, ‘सजनवा बैरी भइले हमार’,’स से सरस्वती’ आदि सीरियलों में काम कर चुकी श्यामली अब तक कार्यो से संतुष्ट नहीं है। वह हिन्दी फिल्मों में काम करने की ख्वाहिश रहती हैं। शायद शीघ्र ही यह ख्वाहिश पूरी हो। अब तक की उपलब्धियों के लिए श्यामली अपने मम्मी-पापा को श्रेय देती है और कहती हैं कि समाज ने मेरा बहुत विरोध किया। अगर मम्मी-पापा का सपोर्ट नहीं मिलता तो आज जहां हूं, वहां नहीं पहुंचती।