वफाओं और वफादारियों की उपेक्षा कब तक…..? 30 सालों से उपेक्षित है ये समाज
जम्हूरियत वो तर्ज़-ए-हुकूमत है, जिसमें बंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते
लोकतंत्र में ताकत और शक्ति की नहीं संख्याबल देखी जाती है. संख्याबल में जब आप कमजोर पड़ जायेंगे तो आपको पछाड़ दिया जायेगा. शिक्षित समाज अपने साथ-साथ देश और समाज की चिंता करते हैं इसलिए वर्त्तमान समय में पिछड़ते जा रहे हैं. ऐसा हीं हाल बिहार में अगड़ी जाति से जुड़े लोगों का हो रहा हैं जो हाशिये पर आ रहे हैं और उनमें सबसे ज्यादा नुकसान या यूँ कहें की उपेक्षा का शिकार हो रहा है कायस्थ समाज.
भगवान चित्रगुप्त के वंशजों को इस बार भी नहीं मिली जगह
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ 14 मंत्रियों ने शपथ ली. इनमें से 7 नेता बीजेपी कोटे और 5 नेता जेडीयू खेमे से मंत्री बने, जबकि HAM और वीआईपी से एक-एक मंत्री बनाए गए. कैबिनेट में जातिगत समीकरण का खास ख्याल इस प्रकार रखा गया कि पिछड़ी जाति को समुचित तो सवर्णों में भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत जाति को सांकेतिक जगह मिली है. लेकिन, समस्त प्राणियों का लेखा-जोखा रखने वाले भगवान श्री चित्रगुप्त के पूजनोत्सव के दिन तैयार किये गए नीतीश के मंत्रिमंडल में एनडीए की कोर वोटर और भगवान चित्रगुप्त के वंशज कायस्थों को मंत्री के तौर पर कैबिनेट में जगह नहीं मिली.
दो-दो डिप्टी सीएम में एक स्थान सवर्णों को मिलना चाहिए था
अगड़ी जाति के लोगों के बारे में कहा जाता है कि इनके लगभग 60 से 70 प्रतिशत वोटर बीजेपी के होते है. उसमे भी कायस्थ समाज के वोटर शत-प्रतिशत बीजेपी के होते हैं. 2020 विधान सभा चुनाव के बाद बने मंत्रिमंडल पर नजर डाले तो सवर्णों की उपेक्षा साफ-साफ़ देखी जा सकती है. सवर्णों में ही आक्रमक रुख अख्तियार करने या वोट को ट्रान्सफर कराने वाली जातियों को सिर्फ लौलीपॉप थमा कर चुप करा दिया गया. सवाल यह है कि अगर टिकट और मंत्रिमंडल में जातीय और सामाजिक समीकरणों की बात हर जगह होती है तो दो-दो डिप्टी सीएम में एक स्थान सवर्णों को क्यों नहीं दिया गया ? मंत्रिमंडल में पिछले तीन टर्म में कायस्थ समाज को हिस्सेदारी क्यों नहीं दी गयी ?
बिहार बीजेपी में चुने गए डिप्टी सीएम से वरिष्ठ और सक्रिय और कई नेता हैं तो उन्हें क्यों नहीं जगह दिया गया ? कई सवालों का जवाब दिए बगैर बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली की फ्लाइट क्यों पकड़ ली ? सवाल बहुत सारे हैं पर जवाब न तो जेडीयु के पास है और न बीजेपी के पास.
अपने समाज पर अच्छी पकड़ के बावजूद सत्ता पर नहीं है पकड़
राजधानी पटना से ऐसे विधायको को स्थान मिलना चाहिए था जो पिछले कई टर्म से विधायक हैं और किसी खास समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं. जेडीयू के एक प्रवक्ता जो मीडिया में बढ़-चढ़ कर पिछले तीन टर्म से नीतीश कुमार का पक्ष रखते आये हैं उन्हें क्या सिर्फ इसलिए साइड लाइन में रखा गया है कि वे अगड़ी जाति से आते हैं ? ऐसे हीं बीजेपी के ही एक विधान पार्षद और मीडिया मैनेजर हैं जो पिछले दो-तीन दशकों से बीजेपी के लिए मीडिया मैनेज करते हैं पर बीजेपी उनके लिए भी मंत्रिमंडल में जगह मैनेज नहीं कर पायी हैं. ऐसे हीं और विधान पार्षद और नेता हैं जिन्हें हर बार दरकिनार कर दिया जा रहा है. इन सभी नेताओं की अपने समाज में अच्छी पकड़ के बावजूद सत्ता में पकड़ नहीं बन पाई.
कायस्थ समाज अपनी उपेक्षा पर भी नहीं होती है आक्रमक
लोकतंत्र के आंकड़ो में कायस्थ जाति कमजोर होती जा रही है. कायस्थ समाज “हम दो हमारे दो” या अब कहिये कि “सिर्फ एक” हीं परिवार की परिभाषा बनती जा रही है. इस कारण कायस्थ जाति राजनीतिक और सामाजिक रूप से पिछड़ते जा रही है. राजनितिक रूप से हाशिये पर आ चुकी कायस्थ जाति की कमजोर होती पहचान का एक मुख्य कारण यह भी है कि ये जाति अपने उपेक्षा पर भी आक्रामक नहीं होती है.
पिछले 30 सालों में लगभग हाशिये पर आ चुकी कायस्थ समाज का वजूद लगभग ख़त्म होता जा रहा है. 90 के दशक में जब लालू प्रसाद का शासन आरम्भ हुआ था तब से अगड़ी जातियों को निशाने पर रखा गया. इनमें से कई लोग राजनितिक की बहती हवाओं के साथ हो लिए तो कई अपने आक्रामक तेवर से अपनी जगह बना लिया. परन्तु कायस्थ जाति न तो आक्रमक हो सकी और न हीं बहती हवाओं के साथ हुए. नतीजन हाशिये पर चले गए. लालू विरोध इस कदर हावी रहा कि भारतीय जनता पार्टी का दामन जो एक बार पकड़ा वो आज तक कायम है. बीजेपी अपनी बंधुआ वोटर समझ कर इसे दरकिनार कर रखा है तो दुसरे दल इस जाति पर भरोसा नहीं कर पाते हैं.
घटते प्रतिनिधित्व से चिंतित हैं कायस्थ संगठन
एक राजनितिक दल से जुड़े और कायस्थ संगठन के नेता के अनुसार बिहार में पिछले 3 दशकों से कायस्थ समाज टिकट से लेकर मंत्रिमंडल में शामिल करने तक में उपेक्षा का शिकार हुए हैं. लालू प्रसाद की सरकार में अगर उन्हें स्थान नहीं मिला तो ये समाज इसलिए बर्दास्त कर लिया कि सरकार अगड़ी विरोधी मानी जाती थी, पर जब राज्य में बीजेपी गठबंधन की सरकार आई तो इस समाज को बड़ी उम्मीद थी कि कायस्थों का मान सम्मान बढेगा पर ऐसा हुआ नहीं. किसी भी दल ने कायस्थों को टिकट देने में या सदन में भेजने में दरियादिली नहीं दिखाई. यही कारण है कि आजादी के बाद इनका प्रतिनिधित्व घटता जा रहा है.
लगातार उपेक्षा भरी पड़ सकती है एनडीए को
अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के मुख्य प्रवक्ता अतुल आनंद का कहना है जिस प्रकार 30 वर्ष पूर्व की सरकार की एक गलती के बाद आज तक इस समाज के अधिकतर लोग उस नाम से परहेज करते हैं कहीं ऐसा न हो कि इस प्रकार की उपेक्षा एनडीए को भारी पड़ जाये. कायस्थ वाहिनी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अभिजित सिन्हा ने कायस्थों को मत्रिमंडल में स्थान नहीं मिलने पर रोष व्यक्त करते हुए कहा कि एक भाजपा ने मात्र तीन टिकट दिया और उस पर भी हमारे समाज ने उन सभी को विजयी बना कर भेजा बावजूद उसके कायस्थों को मंत्रिमंडल में स्थान नहीं दिया गया.
कई टर्म इन्तजार करने के बाद इस बार ये उम्मीद की जा रही थी कि इस सरकार में कायस्थों का मान-सम्मान बढेगा पर ऐसा हुआ नहीं. कायस्थों को बीजेपी ने जीतने भी टिकट दिए, संयोग से वे सभी चुनाव जीत गए. राज्य में दो-दो डिप्टी सीएम बनाये गए पर सामाजिक समीकरण को धत्ता बताते हुए दोनों सीएम पिछड़ी जाति से बनाये दिए गए.
सोशल मीडिया पर चल रहा है अभियान, “बस अब बहुत हो चूका, मत लीजिये अब कलमजीवियों के सब्र का इम्तिहान”
कायस्थ संगठनों के सूत्रों के मुताबिक पुरे राज्य में अंदरूनी बैठकों का दौर जारी है. साल 2017 में जब नीतीश कुमार राजद गठबंधन का साथ छोड़ कर बीजेपी के साथ आये थें उस वक़्त भी इस समाज को हिस्सेदारी नहीं मिली थी. उस वक़्त बीजेपी के एक कायस्थ सांसद ने जमकर खुले रूप में इसका विरोध किया था. चुकि यह समाज उस वक़्त भी एग्रेसिव नहीं हुआ नतीजन उस सांसद का हीं टिकट काट दिया गया. सूत्रों के मुताबिक इस बार की स्थिति बहुत बदली हुई है. सोशल मीडिया और व्हाट्सएप्प के माध्यम से अभियान चलाया जा रहा है. बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व तक विभिन्न माध्यमों से बात पहुँचाने की कवायद जारी है. मेल, सोशल मीडिया और पत्रों के द्वारा केन्द्रीय नेतृत्व को यह बताने की कोशिश है कि “बस अब बहुत हो चूका, कलमजीवियों के सब्र का इम्तिहान अब मत लीजिये”
लेखक का परिचय-
मधुप मणि “पिक्कू”
(लेखक एक निजी चैनल के सम्पादक रह चुके हैं। वर्तमान में भारत पोस्ट लाइव और बिहार पत्रिका के सम्पादक हैं साथ हीं वेब जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के संयुक्त सचिव हैं।)