वैकुण्ठ चतुर्दशी का व्रत आज, करें कथा का श्रवण
आज यानी २८ नवम्बर को श्रद्धालु बैकुण्ठ चतुर्दशी का व्रत व पूजा करेंगे। कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को बैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस शुभ दिन के उपलक्ष्य में भगवान शिव तथा विष्णु की पूजा की जाती है। इसके साथ ही व्रत का पारण किया जाता है। यह बैकुण्ठ चौदस के नाम से भी जानी जाती है। इस दिन श्रद्धालुजन व्रत रखते हैं। यह व्रत कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है। इस चतुर्दशी के दिन यह व्रत भगवान शिव तथा विष्णु जी की पूजा करके मनाया जाता है।
वैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत रूप से पूजा – अर्चना की जाती है. धूप-दीप, चन्दन तथा पुष्पों से भगवान का पूजन तथा आरती कि जाती है. श्रीमदभगवत गीता व श्रीसूक्त का पाठ किया जाता है तथा भगवान विष्णु की कमल पुष्पों के साथ पूजा की जाती हैं. श्री हरीविष्णु का ध्यान व कथा श्रवण करने से समस्त पापों का नाश होता है। भगवान विष्णु जी के मंत्र जाप तथा स्तोत्र पाठ करने से बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।
वैकुण्ठ चतुर्दशी पौराणिक महत्व
एक बार नारद जी भगवान श्री विष्णु से सरल भक्ति कर मुक्ति पाने का मार्ग पूछते हैं। नारद जी के कथन सुनकर श्री विष्णु जी कहते हैं कि हे नारद, कार्तिक शुक्ल पक्ष की अंतिम तीन तिथयों त्रयोदशी, चतुर्दशी व पूर्णिमा को जो नर-नारी व्रत का पालन करते हैं और श्रद्धा-भक्ति से मेरी पूजा करते हैं उनके लिए वैकुण्ठ के द्वार खुल जाते हैं अत: भगवान श्री हरि कार्तिक त्रयोदशी,चतुर्दशी, व पूर्णिमा को वैकुण्ठ के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं. भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा पूजन करता है वह वैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है। वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत का विशेष महात्म्य है इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत करना चाहिए शास्त्रों की मान्यता है कि जो एक हजार कमल पुष्पों से भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन कर शिव की पूजा अर्चना करते हैं, वह भव-बंधनों से मुक्त होकर वैकुण्ठ धाम पाते हैं. मान्यता है कि कमल से पूजन करने पर भगवान को समग्र आनंद प्राप्त होता है तथा भक्त को शुभ फलों की प्राप्ति होती है. वैकुण्ठ चतुर्दशी को व्रत कर तारों की छांव में सरोवर, नदी इत्यादि के तट पर १४ दीपक जलाने चाहिए. वैकुण्ठाधिपति भगवान विष्णु को स्नान कराकर विधि विधान से भगवान श्री विष्णु पूजा अर्चना करनी चाहिए तथा उन्हें तुलसी पत्ते अर्पित करते हुए भोग लगाना चाहिए।
वैकुंठ चतुर्दशी की कथा
प्राचीन मतानुसार एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए। वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हज़ार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया। भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए एक हज़ार कमल पुष्प चढ़ाने थे। एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आंखें भी तो कमल के ही समान हैं। मुझे कमल नयन और पुंडरीकाक्ष कहा जाता है। यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान आंख चढ़ाने को प्रस्तुत हुए। विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले- हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब वैकुण्ठ चतुर्दशी कहलाएगी और इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। भगवान शिव, इसी वैकुण्ठ चतुर्दशी को करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान करते हैं।
इसी दिन शिव जी तथा विष्णु जी कहते हैं कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगे। मृत्युलोक में रहना वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, वह अपना स्थान वैकुण्ठ धाम में सुनिश्चित करेगा।
आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी
सरस सङ्गीत मय श्रीरामकथा व श्रीमद्भागवत कथा,व्यास व ज्योतिर्विद
श्रीधाम श्री अयोध्या जी
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