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*।।महाशिवरात्रि में वैदिकी विधि से कैसे करें देवो के देव महादेव का सपरिवार पूजन।।*

देवो केे देव भगवान भोले नाथ के भक्तों के लिये श्री महाशिवरात्रि का व्रत विशेष महत्व रखता हैं। यह पर्व फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष यह उपवास ११ मार्च – गुरूवार के दिन का रहेगा। इस दिन का व्रत रखने से भगवान भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न होकर, उपवासक की मनोकामना पूरी करते हैं। इस व्रत को सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे, युवा, वृद्धों के द्वारा किया जा सकता हैं

 

११ मार्च के दिन विधिपूर्वक व्रत रखने पर तथा शिवपूजन,रुद्राभिषेक, शिवरात्रि कथा, शिव स्तोत्रों का पाठ व “ॐ नम: शिवाय” का पाठ करते हुए रात्रि जागरण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता हैं। व्रत के दूसरे दिन यथाशक्ति वस्त्र-क्षीर सहित भोजन, दक्षिणादि प्रदान करके संतुष्ट किया जाता हैं।

 

*चार प्रहर पूजन अभिषेक विधान*

 

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प्रथम प्रहर- सायं ०६:४८ से रात्रि ०९:५८ तक।

द्वितीय प्रहर- रात्रि ०९:५८ से रात्रि ०१:०८ तक।

तृतीय प्रहर- रात्रि ०१:०८ से रात्रि ०४:१८ तक।

चतुर्थ प्रहर- रात्रि ०४:१८ से प्रातः ०७:२८ बजे तक पहर की गणना अपने स्थानीय सूर्योदय से करना विधि सम्मत है।

 

*शिवरात्री व्रत की महिमा*

 

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इस व्रत के विषय में यह मान्यता है कि इस व्रत को जो जन करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी पापों का क्षय करने वाला है, व इस व्रत को लगातार १४ वर्षो तक करने के बाद विधि-विधान के अनुसार इसका उद्धापन कर देना चाहिए।n

 

*महाशिवरात्री व्रत की विधि*

 

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महाशिवरात्री व्रत को रखने वालों को उपवास के पूरे दिन, भगवान भोले नाथ का ध्यान करना चाहिए। प्रात: स्नान करने के बाद भस्म का तिलक कर रुद्राक्ष की माला धारण की जाती है। इसके ईशान कोण दिशा की ओर मुख कर शिव का पूजन धूप, पुष्पादि व अन्य पूजन सामग्री से पूजन करना चाहिए।

इस व्रत में चारों पहर में पूजन किया जाता है। प्रत्येक पहर की पूजा में

“ऊँ नम: शिवाय” व “शिवाय नम:” का जाप करते रहना चाहिए। अगर शिव मंदिर में यह जाप करना संभव न हों, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर जाकर इस मंत्र का जाप किया जा सकता हैं। चारों पहर में किये जाने वाले इन मंत्र जापों से विशेष पुन्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त उपावस की अवधि में

०४ पहर का रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते है।

*शिवपूजन में ध्यान रखने जैसे कुछ खास बातें।*

 

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००१- स्नान कर के ही पूजा में बेठे।

०२- साफ सुथरा वस्त्र धारण कर।

(हो सके तो सिलाई बिना का तो बहुत

अच्छा)

 

०३- आसन एक दम स्वच्छ चाहिए। (दर्भासन हो तो उत्तम)

०४- पूर्व या उत्तर दिशा में मुह कर के ही पूजा करे

०५- बिल्व पत्र पर जो चिकनाहट वाला भाग होता हे वाही शिवलिंग पर चढ़ाए।

(कृपया खंडित बिल्व पत्र मतचढ़ाए)

०६- संपूर्ण परिक्रमा कभी भी मत करे।

(जहा से जल पसार हो रहा है

वहा से वापस आ जाए)

०७- पूजन में चंपा के पुष्प का प्रयोग ना करें।

०८- बिल्व पत्र के उपरांत आक के फुल, धतुरा पुष्प या नील कमल का प्रयोग अवश्य कर शकते है।

०९- शिव प्रसाद का कभी भी इंकार मत करे (य सब के लिए पवित्र है)

 

*पूजन सामग्री*

 

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शिव की मूर्ति या शिवलिंगम, अबीर- गुलाल, चन्दन (सफ़ेद) अगरबत्ती धुप (गुग्गुल) बिलिपत्र बिल्व फल, तुलसी, दूर्वा, चावल, पुष्प, फल,मिठाई, पान-सुपारी,जनेऊ, पंचामृत, आसन, कलश, दीपक, शंख, घंट, आरती यह सब चीजो का होना आवश्यक है।

 

*पूजन करने का विधि-विधान*

 

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महाशिवरात्री के दिन शिवभक्त का जमावडा शिव मंदिरों में विशेष रुप से देखने को मिलता है। भगवान भोले नाथ अत्यधिक प्रसन्न होते है, जब उनका पूजन बेल- पत्र आदि चढाते हुए किया जाता है। व्रत करने और पूजन के साथ जब रात्रि जागरण भी किया जाये, तो यह व्रत और अधिक शुभ फल देता है। इस दिन भगवान शिव की शादी हुई थी, इसलिये रात्रि में शिव की बारात निकाली जाती है। सभी वर्गों के लोग इस व्रत को कर पुन्य प्राप्त कर सकते हैं।

 

*पूजन विधि*

 

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महाशिव रात्रि के दिन शिव अभिषेक करने के लिये सबसे पहले एक मिट्टी का बर्तन लेकर उसमें पानी भरकर, पानी में बेलपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग को अर्पित किये जाते है। व्रत के दिन शिवपुराण का पाठ सुनना चाहिए और मन में असात्विक विचारों को आने से रोकना चाहिए। शिवरात्रि के अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।

 

जो इंसान भगवन शंकर का पूजन करना चाहता हे उसे प्रातः कल जल्दी उठकर प्रातः कर्म पुरे करने के बाद पूर्व दिशा या इशान कोने की और अपना मुख रख कर .. प्रथम आचमन करना चाहिए बाद में खुद के ललाट पर तिलक करना चाहिए बाद में निन्म मंत्र बोल कर शिखा बांधनी चाहिए।

 

*शिखा मंत्र*

 

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ह्रीं उर्ध्वकेशी विरुपाक्षी मस्शोणित

भक्षणे।

तिष्ठ देवी शिखा मध्ये चामुंडे ह्य

पराजिते।।

 

 

*आचमन मंत्र*

 

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ॐ केशवाय नमः,

ॐ नारायणाय नमः,

ॐ माधवाय नमः,

तीनो बार पानी हाथ में लेकर पीना चाहिए और बाद में ॐ गोविन्दाय नमः बोल हाथ धो लेने चाहिए बाद में बायें हाथ में पानी ले कर दाये हाथ से पानी .अपने मुह, कर्ण, आँख, नाक, नाभि, ह्रदय और मस्तक पर लगाना चाहिए और बाद में ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय बोल कर खुद के चारो और पानी के छीटे डालने चाहिए

ह्रीं नमो नारायणाय बोल कर प्राणायाम करना चाहिए।

 

*स्वयं एवं सामग्री पवित्रीकरण*

 

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‘ॐ अपवित्र: पवित्रो व सर्वावस्था

गतोपी व।

य: स्मरेत पूंडरीकाक्षम सह:

बाह्याभ्यांतर सूचि।।

 

(बोल कर शरीर एवं पूजन सामग्री पर

जल का छिड़काव करे – शुद्धिकरण के

लिए)

 

 

*न्यास*

 

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निचे दिए गए मंत्र बोल कर बाजु में लिखे गए अंग पर अपना दाया हाथ का स्पर्श करे।

ह्रीं नं पादाभ्याम नमः(दोनों पाव पर),

ह्रीं मों जानुभ्याम नमः (दोनों जंघा पर)

ह्रीं भं कटीभ्याम नमः (दोनों कमर पर)

ह्रीं गं नाभ्ये नमः (नाभि पर)

ह्रीं वं ह्रदयाय नमः (ह्रदय पर)

ह्रीं ते बाहुभ्याम नमः (दोनों कंधे पर)

ह्रीं वां कंठाय नमः।(गले पर)

ह्रीं सुं मुखाय नमः (मुख पर)

ह्रीं दें नेत्राभ्याम नमः (दोनों नेत्रों पर)

ह्रीं वां ललाटाय नमः (ललाट पर)

ह्रीं यां मुध्र्ने नमः (मस्तक पर)

 

ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय नमः।

(पुरे शरीर पर)

तत्पश्चात भगवन शंकर की पूजा करें।

 

*पूजन विधि निम्न प्रकार से है*

 

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*तिलक मन्त्र*

 

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स्वस्ति तेस्तु द्विपदेभ्यश्वतुष्पदेभ्य

एवच।

स्वस्त्यस्त्व पादकेभ्य श्री सर्वेभ्यः

स्वस्ति सर्वदा।

 

*नमस्कार मंत्र*

 

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हाथ मे अक्षत पुष्प लेकर

निम्न मंत्र बोलकर नमस्कार करें।

श्री गणेशाय नमः

इष्ट देवताभ्यो नमः

कुल देवताभ्यो नमः

ग्राम देवताभ्यो नमः

स्थान देवताभ्यो नमः

सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः

गुरुवे नमः

मातृ पितरेभ्यो नमः

ॐ शांति शांति शांति

 

*गणपति स्मरण*

 

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सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गज कर्णक

लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो

विनायक।।

धुम्र्केतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः

द्वाद्शैतानी नामानी यः

पठेच्छुनुयादापी।।

विध्याराम्भे विवाहे च प्रवेशे

निर्गमेस्त्था।

संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न

जायते।।

शुक्लाम्बर्धरम देवं शशिवर्ण

चतुर्भुजम।

प्रसन्न वदनं ध्यायेत्सर्व

विघ्नोपशाताये।।

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि सम प्रभु।

निर्विघम कुरु में देव सर्वकार्येशु

सर्वदा।।

 

*संकल्प*

 

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(दाहिने हाथ में जल अक्षत और

द्रव्य लेकर निम्न संकल्प मंत्र बोले)

‘ऊँ विष्णु र्विष्णुर्विष्णु : श्रीमद् भगवतो

महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि

द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पै

वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे

कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूर्लोके

जम्बूद्वीपे भारत वर्षे भरत खंडे

आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे —*— नगरे —**— ग्रामे वा बौद्धावतारे विजय नाम संवत्सरे श्री सूर्ये दक्षिणायने वर्षा ऋतौ महामाँगल्यप्रद मासोत्तमे शुभ भाद्रप्रद मासे शुक्ल पक्षे चतुर्थ्याम्‌ तिथौ भृगुवासरे हस्त नक्षत्रे शुभ योगे गर करणे तुला राशि स्थिते चन्द्रे सिंह राशि स्थिते सूर्य वृष राशि स्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु च यथा यथा राशि स्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायाँ चतुर्थ्याम्‌ शुभ पुण्य तिथौ — +– गौत्रः –++– अमुक, नाम आदि आदि जो नाम हो।

दासो ऽहं मम आत्मनः श्रीमन्‌

महागणपति प्रीत्यर्थम्‌

यथालब्धोपचारैस्तदीयं पूजनं

करिष्ये।”

इसके पश्चात्‌ हाथ का जल किसी

पात्र में छोड़ देवें।

 

 

*नोट*

 

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यहाँ पर अपने नगर का नाम बोलें

यहाँ पर अपने ग्राम का नाम बोलें यहाँ पर अपना कुल गौत्र बोलें

यहाँ पर अपना नाम आदि आदि

जो भी हो बोलकर बोलें।

 

*दिगक्षण – मंत्र*

 

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यादातर संस्थितम भूतं स्थानमाश्रित्य

सर्वात:।

स्थानं त्यक्त्वा तुं तत्सर्व यत्रस्थं तत्र

गछतु।

यह मंत्र बोल कर चावालको

अपनी चारो और डालें।

 

*वरुण पूजन*

 

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अपाम्पताये वरुणाय नमः।

सक्लोप्चारार्थे गंधाक्षत पुष्पह:

समपुज्यामी।

यह बोल कर कलश के जल में चन्दन -पुष्प डाले और कलश में से थोडा जल हाथ में ले कर निन्म मंत्र बोल कर पूजन सामग्री और खुद पर वो जल के छीटे डाले।

 

*दीप पूजन*

 

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दिपस्त्वं देवरूपश्च कर्मसाक्षी जयप्रद:।

साज्यश्च वर्तिसंयुक्तं दीपज्योती

जमोस्तुते।।

(बोल कर दीप पर चन्दन

और पुष्प अर्पण करें)

 

*शंख पूजन*

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लक्ष्मीसहोदरस्त्वंतु विष्णुना विधृत:

करें।

निर्मितः सर्वदेवेश्च पांचजन्य

नमोस्तुते।।

(बोल कर शंख पर चन्दन

और पुष्प चढ़ाए)

 

*घंटी पूजन*

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देवानं प्रीतये नित्यं संरक्षासां च

विनाशने।

घंट्नादम प्रकुवर्ती ततः घंटा

प्रपुज्यत।।

(बोल कर घंट नाद करे और

उस पर चन्दन और पुष्प चढ़ाएं)

 

*।।शिवजी का ध्यान।।*

 

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं

रत्नाकल्पोज्ज्वलान्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् ।

पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैव्यघ्रिकृति वसानं

विश्वद्यं विश्ववन्द्यं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥

ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव उतो त इषवे नम: । बाहुभ्यामुत ते नम: ॥

ॐ भूर्भुव: स्व:साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, ध्यानार्थे बिल्वपत्रं समर्पयामि। (अक्षत व बिल्वपत्र चढ़ा दे )

 

*।।आसन ।।*

 

ॐ या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी।

तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, आसनार्थे बिल्वपत्राणी समर्पयामि ।

(आसन के लिये बिल्वपत्र चढ़ाये)

*।।पाद्य।।*

 

ॐ वामिषुं गिरिशन्तं हस्ते बिभर्ष्यस्तवे ।

शिवां गिरित्र तां कुरु मा हि सी: पुरुषं जगत् ॥

पादयो: पाद्यं समर्पयामि । ॐ भुर्भुवः स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नमः।।

 

(जल चढ़ाये

 

ॐ शिवने वचसा त्वा गिरिशाच्छा वदामसि ।

यथा न: सर्वमिज्जगदयक्ष्म सुमना असत् ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, हस्तयोरर्घ्य समर्पयामि । (अर्घ्य समर्पित करे

 

*।।आचमन।।*

 

ॐ अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक् ।

अर्हीश्च सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योऽधराची: परा सुव ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, आचमनीयं जलं समर्पयामि।

(जल चढ़ाये )

 

*।।स्नान।।*

 

ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य सकम्भ सर्ज्जनीस्थो।

वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद्॥

ॐ असौ यस्ताम्रो अरुण उत बभ्रु: सुमन्ग्ड़ल: ।

ये चैन रुद्रा अभितो दिक्षु श्रिता: सहस्त्रशोऽवैषा हेड ईमहे ॥

ॐ भूर्भुव: स्व:साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, स्नानीयं जलं समर्पयामि

स्नानान्ते आचमनीयं जलं च समर्पयामि । ( स्नानीय और आचमनीय जल चढ़ाये )

 

*।।पय:स्नान।।*

 

ॐ पय: पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धा: ।

पयस्वती: प्रदिश: सन्तु मह्यम् ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, पय:स्नानं समर्पयामि ।

पय:स्नानान्ते शुध्दोदक स्नानं समर्पयमि, शुध्दोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

( दूध से स्नान कराये, पुन: शुध्द जल से स्नान कराये और आचमन के लिये जल चढा़ये)

 

*।।दधिस्नान।।*

 

ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिन: ।

सुरभि नो मुखा करत्प्र ण आयू षि तारिषत् ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, दधिस्नानं समर्पयामि ।

दधिस्नानान्ते शुध्दोदक स्नानं समर्पयामि, शुध्दोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

(दही से स्नान कराकर शुध्द जल से स्नान कराये तथा आचमन के लिये जल चढ़ाये)

 

*।।घृतस्नान।।*

 

ॐ घृतं मिमिक्षे घृतमस्य योनिर्घृते श्रितो घृतम्वस्य धाम ।

अनुष्वधमा वह मादयस्व स्वाहाकृतं वृषभ वक्षि हव्यम् ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, घृतस्नानं समर्पयामि ।

घृतस्नानान्ते शुध्दोदकस्नानं समर्पयामि, शुध्दोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

(घृत से स्नान कराकर शुध्द जल से स्नान कराये और पुन: आचमन के लिये जल चढ़ाये )

 

*।।मधुस्नान।।*

 

ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धव: । माध्वीर्न: सन्त्वोषधी: ॥

मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव रज: । मधु द्यौरस्तु न: पिता ॥

मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ२ अस्तु सूर्य: । माध्वीर्गावो भवन्तु न: ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, मधुस्नानं समर्पयामि ।

मधुस्नानान्ते शुध्दोदकस्नानं समर्पयामि, शुध्दोदकस्नानान्ते आचमनीयं जल समर्पयामि ।

(मधु से स्नान कराकर शुध्द जल से स्नान कराये तथा आचमन के लिये जल चढ़ाये )

 

*।।शर्करास्नान।।*

 

ॐ अपारसमुद्रयस सूर्ये सन्त समाहितम् ।

अपा रसस्य यो रसस्तं वो गृह्माम्युत्तममुपयामगृहीतो-

ऽसीन्द्राय त्व जुष्टं गृह्माम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, शर्करास्नानं समर्पयामि ।

शर्करास्नानान्ते शुध्दोदकस्नानं समर्पयामि, शुध्दोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

(शर्करा से स्नान कराकर शुध्द जल से स्नान कराये तथा आचमन के लिये जल चढा़ये )

 

*।।पञ्चामृतस्नान।।*

 

ॐ पञ्च नद्य: सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतस: ।

सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत्सरित् ॥

ॐ भूर्भव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ।

पञ्चामृतस्नानान्ते शुध्दोदकस्नानं समर्पयामि, शुध्दोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

पञ्चामृत से स्नान कराकर शुध्द जल से स्नान कराये तथा आचमन के लिये जल चढा़ये )

 

*।।गन्धोदकस्नान।।*

 

ॐ अ शुना तेअ शु: पृच्यतां परुषा परु: ।

गन्धस्ते सोममवतु मदाय रसो अच्युत: ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, गन्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

गन्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

( गन्धोदक से स्नान कराकर आचमन के लिये जल चढा़ये )

 

*।।शुध्दोदकस्नान।।*

 

ॐ शुध्दवाल: सर्वशुध्दवालो मणिवालस्त आश्विना:

श्येत: श्येताक्षोऽरुणस्ते रुद्राय पशुपतये कर्णा यामा अवलिप्ता रौद्रा नभोरुपा: पार्जन्या ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, शुध्दोदकस्नानं समर्पयामि ।( शुध्द जल से स्नान कराये )

 

*।।आचमनीय जल।।*

 

ॐ अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक् ।

अहींश्च सर्वाञ्चम्भयन्त्सर्वश्च यातुधान्योऽधराच: परा सुव ॥

ॐ भूर्भूव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, आचमनीयं जलं समर्पयामि ।( आचमन के लिये जल चढा़ये )

 

*।।अभिषेक।।*

 

शिव पूजन में शुध्द जल, सरयू अथवा गंगाजल अथवा दुग्धादि से लिंगाष्टक स्त्रोतम , शिवमहिम्न: स्तोत्रम् या रुद्राष्टाध्यायी आदि से अथवा निम्न मन्त्रों का पाठ करते हुए शिवलिंग का अभिषेक करे —

 

ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव उतो त इषवे नम: । बाहुभ्यामुत ते नम: ॥

या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी ॥

तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि॥

यामिषुं गिरिशन्त हस्ते बिभर्ष्यस्तवे ।

शिवां गिरित्र तां कुरु मा हि सी: पुरुषं जगत् ॥

शिवेन न: सर्वमिज्जगदयक्ष्म सुमना असत् ॥

अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक् ।

अहींश्च सर्वाञ्चम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योऽधराची: परा सुव ॥

असौ यस्ताम्रो अरुण उत बभ्रु: सुमन्ड़ल: ।

ये चैन रुद्रा अभितो दिक्षु श्रिता: सहस्त्रशोऽवैषा हेड ईमहे ॥

 

*।।अभिषेक के उपरांत ।।*

 

शुध्दोदक-स्नान कराये । तत्पश्चात् ‘ॐ द्यौ: शान्ति:’ शान्तिक मन्त्रों से शान्त्यभिषेक करें।

 

*।।वस्त्र।।*

 

ॐ असौ योऽवसर्पति नीलग्रीवो विलोहित: ।

उतैनं गोपा अदृश्रन्नदृश्रन्नुदहार्य: स दृष्टो मृडयाति न: ॥

ॐ भूर्भूव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, वस्त्रं समर्पयामि, वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

(वस्त्र चढा़ये तथा आचमन के लिये जल चढा़ये )

 

*।।यज्ञोपवीत।।*

 

ॐ ब्रह्म ज्ज्ञानप्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेन आवः।

स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः॥

ॐ नमोऽस्तु नोलग्रीवाय सहस्त्राक्षाय मीढुषे ।

अथो ये अस्य सत्वानोऽहं तेभ्योऽकरं नम: ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।

यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । ( यज्ञोपवीत सम्रर्पित करे तथा आचमन के लिये जल चढा़ये )

 

*।।उपवस्त्र।।*

 

ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरुथमाऽसदत्स्व: ।

वासो अग्ने विश्वरुप सं व्यवस्व विभावसो ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, उपवस्त्रं समर्पयामि, उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

(उपवस्त्र चढ़ाये आचमन के लिये जल चढ़ाये)

 

*।।गन्ध व चन्दन।।*

 

ॐ नमः श्वभ्यः श्वपतिभ्यश्च वो नमो नमो भवाय च रुद्राय च नमः।

शर्वाय च पशुपतये च नमो नीलग्रीवाय च शितिकण्ठाय च॥

ॐ प्रमुञ्च धन्वनस्त्वमुभयोरार्त्न्योर्ज्याम् ।

याश्च ते हस्त इषव: परा ता भगवो वप॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, गन्धानुलेपनं समर्पयामि । (चन्दन लगावें)

( शिव पूजन में शिव लिंग पर भस्म चढ़ाने का विधान है)

 

*।।भस्म।।*

 

अग्निहोत्र समुदभूतं विरजाहोमपाजितम,गृहाण भस्म हे स्वामिन भक्तानां भूतिदाय ॥

सर्वपापहरं भस्म दिव्यज्योति स्समप्रभम्। सर्वक्षेमकरं पुण्यं गृहाण परमेश्वर ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, भस्मस्नान समर्पयामि । (भस्मचढ़ाये )

 

*।।सुगन्धित द्रव्य।।*

 

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, सुगन्धिद्रव्यं समर्पयामि । ( सुगन्धित द्र्व्य चढ़ाये )

 

*।।अक्षत।।*

 

ॐ व्रीहयश्च मे यवाश्च मे माषाश्च मे तिलाश्च मे मुद्गाश्च मे

खल्वाश्व मे प्रियड्गवश्च मेऽणवश्च मे श्यामाकाश्च मे

नीवाराश्च मे गोधूमाश्च मे मसूराश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, अक्षतान् समर्पयामि । ( अक्षत चढा़ये )

 

*।।पुष्पमाला।।*

 

 

ॐ नमः पार्याय चावार्याय च नमः प्रतरणाय चोत्तरणाय च ।

नमस्तीर्थ्याय च कूल्याय च नमः शष्प्याय च फेन्याय च॥

ॐ विज्यं धनु: कपर्दिनो विशल्यो बाणवाँ२ उत ।

अनेशन्नस्य या इषव आभुरस्य निषनॆड़्धि: ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, पुष्पमालां समर्पयामि । (पुष्प्माला पहनावें)

 

*।।बिल्वपत्र।।*

 

ॐ नमो बिल्मिने च कवाचिने च नमो वर्मिणे च वरुथिने च नम:।

श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुभ्याय चाहनन्याय च ॥

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम् ।

त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, बिल्वपत्राणि समर्पयामि । ( बिल्वपत्र चढ़ाये )

*।।शमीपत्र।।*

 

अमंगलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च ।

दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येहं शमीं शुभाम् ।।

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, शमीपत्राणि समर्पयामि । (शमीपत्र चढ़ाये )

 

*नानापरिमल द्रव्य*

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ॐ अहिरिव भोगै: पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमान: ।

हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान् पुमान् पुमान् सं परि पातु विश्वत: ॥

ॐ भूर्भुव: स्व:साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, नानापरिमल द्रव्याणि समर्पयामि ।

(विविध परिमलद्रव्य चढ़ाये)

*।।आभूषण मंत्र।।*

 

अलंकारान्महा दिव्यान्नानारत्न विनिर्मितान्।गृहाण देव देवेश प्रसीद परमेश्वर: ॐ भुर्भुवः स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नमः आभूषणं समर्पयामि।

 

*।।शिव पूजन करने के लिए हाथ में अक्षत व बिल्वपत्र लेकर शिव जी के अंगो का पूजन करें-।।

ॐ अघोराय नम:पादौ पूजयामि । ॐ शर्वाय नम:जङ्घे पूजयामि । ॐ विरूपाक्षाय नम:जानुनी पूजयामि ।

ॐ विश्वरूपिणे नम:गुल्फौ पूजयामि । ॐ त्र्यम्बकाय नम:गुह्यां पूजयामि । ॐ कपर्दिने नम:नाभि पूजयामि ।

ॐ भैरवाय नम:उदरं पूजयामि । ॐ शूलपाणये नम:नेत्र: पूजयामि । ॐ ईशानाय नम: शिर: पूजयामि ।

ॐ महेश्वराय नम:सर्वाङ्ग पूजयामि ।

*धुप मन्त्र*

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ॐ नमः कपर्दिने च व्युप्त केशाय च नमः सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने च ।

नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मेढुष्टमाय चेषुमते च ॥

ॐ या ते हेतिर्मीढुष्टम हस्ते बभूव ते धनु: ।

तयाऽस्मान्विश्वतस्त्वमयक्ष्मया परि भुज ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, धूपमा घ्रापयामि । (धूप दिखाएं)

 

*दीप मन्त्र*

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ॐ नमः आराधे चात्रिराय च नमः शीघ्रयाय च शीभ्याय च ।

नमः ऊर्म्याय चावस्वन्याय च नमो नादेयाय च द्वप्याय च ॥

ॐ परि ते धन्वनो हेतिरस्मान् वृणवतु विश्वत: ।

अथो य इषुधिस्तवारे अस्मन्नि धेहि तम् ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, दीपं दर्शयामि (दीप दिखलाये और हाथ धो ले )

 

*भोजन (नैवेद्य मिष्ठान मंत्र)*

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ॐ नाभ्या आसिदन्तरिक्षग्वं शीर्र्षणोंऱ द्यो:समवर्तता पद्भ्यां भूमिदृश:श्रोता तथालोकांन अकल्पयन्न ॐ भुर्भुवः स्व:साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नमः।।

ॐ प्राणाय स्वाहा.

ॐ अपानाय स्वाहा.

ॐ समानाय स्वाहा

ॐ उदानाय स्वाहा.

ॐ व्यानाय स्वाहा

 

(बोल कर भोजन कराए)

नैवेद्यं निवेदयामि हस्तप्रक्षालानं मुख्प्रक्षालानं

आचमनीयं जलं समर्पयामि

उत्तरापोषणं दर्शयामि।

 

*।।करोद्वर्तन।।*

 

ॐ सिञ्चति अप्रि षिञ्चन्त्युत्सिञ्चन्ति पुनन्ति च ।

सुरायै बभ्रूवै मदे किन्त्वो वदति किन्त्व: ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, करोद्वर्तनार्थे चन्दनानुलेपनं समर्पयामि । (चन्दन का चढ़ाये)

 

*।।ऋतुफल।।*

ॐ या: फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी: ।

बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व हस: ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, ऋतुफलानि समर्पयामि (ऋतुफल समर्पित करे)

*।।धतूराफल।।*

ॐ कार्षिरसि समुद्रस्य त्वाक्षित्या उन्नयामि । समापो अद्भिररग्मत समोषधिभिरोषधि: ॥

धीरधैर्यपरीक्षार्थं धारितं परमेष्ठिना । धत्तूरं कण्टकाकीर्णं गृहाण परमेश्वर ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नम:, धतूराफलानि समर्पयामि (धतूराफल समर्पित करे)

 

*ताम्बूल पुंगीफल मंत्र*

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ॐ यत्पुरुषेणहविषा देवा यज्ञमतन्वतव वसन्तों स्यसिदाज्यम्

ग्रीष्मइष्मह शरधविहि:एलागवांग ताम्बूल पुंगी फलं समर्पयामि साँगाय सपरिवाराय उमामहेश्वरायभ्यां नमो नमः।।

*दक्षिणा मंत्र*

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ॐ यद्दत्तं यत्परादान यत्पूर्त याश्च दक्षिणा: ।

तदाग्निर्वैश्वकर्मण: स्वर्देवेषु नो दधत् ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: संगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नम:, कृताया: पूजाया: सादुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्यपामि ।

( द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये )

 

*आरती मंत्र*

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ॐ नमः आराधे चात्रिराय च नमः शीघ्रयाय च शीभ्याय च ।

नमः ऊर्म्याय चावस्वन्याय च नमो नादेयाय च द्वप्याय च ॥

ॐ परि ते धन्वनो हेतिरस्मान् वृणवतु विश्वत: ।

अथो य इषुधिस्तवारे अस्मन्नि धेहि तम् ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: संगाय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नम:, दीपं दर्शयामि (दीप दिखलाये और हाथ धो ले )

(बोल कर एक बार आरती करे)

बाद में आरती की चारो और जल की धरा करे और आरती पर पुष्प चढ़ाए सभी को आरती दे और खुद भी आरती ले कर हाथ धो ले।

अथवा भगवान गंगाधर की आरती करें।

 

*भगवान् गंगाधर की आरती*

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ॐ जय गंगाधर जय हर जय

गिरिजाधीशा।

त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥

 

हर…॥

कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने।

गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने॥

कोकिलकूजित खेलत हंसावन

ललिता रचयति कलाकलापं नृत्यति

मुदसहिता ॥ हर…॥

 

तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता।

तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मदसहिता॥

क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्‌।

इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥

 

हर…॥

बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते

मुदसहिता।

किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर

सहिता॥

धिनकत थै थै धिनकत मृदं वादयते।

क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते

 

॥हर…॥

रुण रुण चरणे रचयति

नूपुरमुज्ज्वलिता।

चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥

तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते।

अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते॥ हर…॥

कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्‌।

त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्‌॥

सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्‌।

डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्‌

 

॥ हर…॥

 

मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्‌।

वामविभागे गिरिजारूपं

अतिललितम्‌॥

सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्‌।

इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥

हर…॥

शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते।

नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥

अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा।

अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥

हर…॥

ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा।

रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥

संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते।

शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते

 

॥ हर…।।

*पुष्पांजलि मंत्र*

 

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नमः सर्वहितार्थाय जगदाधार हेतवे । साष्टांगोयं प्रणामस्ते प्रयत्नेन मया कृत:।।

 

पापोहं पाप कर्माहं पापात्मा पाप संभव:। त्राहि मां पार्वतीनाथ सर्वपापहरो भव ।।

 

पुजां अहं न जानामि त्वं शरणं जगदीश्वरं सर्व पाप हरो शिव अभयं करोमि महेश्वरं ॥

 

मङ्गलं भगवान शम्भु मङ्गलं वृषभध्वजः । मङ्गलं पार्वतीनाथो मंगलायतनो शिव: ॥

 

अथ मन्त्र पुष्पाञ्जलि: ॐ भूर्भुवः स्व: सांगय सपरिवाराय उमामहेश्वराभ्यां नमो नमः, प्रार्थनापूर्वक नमस्कारान् समर्पयामि॥

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यानी कानि च पापानि में जन्मान्तर कृतानि च।

 

तानी सर्वाणी नश्यन्तु प्रदिक्षिणा पदे पदे।।

 

(बोल कर प्रदक्षिणा करें)

 

बाद में शिवजी के कोई भी मंत्र स्तोत्र या शिव शहस्त्र नाम स्तोत्र का पाठ करे अवश्य शिव कृपा प्राप्त होगी।

 

।।आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी

 

ज्योतिर्विद ,वास्तुविद व सरस्।।सङ्गीत मय श्री रामकथा व।।श्रीमद्भागवत कथा व्यास श्रीधाम श्री अयोध्या जी संपर्क सूत्र:-9044741252।।