प्राचीन काल से तंत्र विद्या के साधनों के लिए प्रसिद्ध रहा है यह मंदिर
रूद्र को पुराणों में शिव का कल्याणकारी देवता मानता जाता है। बिहार का एक ऐसा अनोखा शिवालय है जहां एक साथ ग्यारह शिवलिंग विराजमान है और यहाँ इनकी पूरी श्रद्धा के साथ पूजा की जाती है। जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर राजनगर प्रखंड क्षेत्र का मंगरौनी गांव है। यहाँ इनकी प्राचीन काल से तंत्र विद्या के साधनों के लिए प्रसिद्ध रहा है।
इस गांव में प्राचीन काल से शक्तिपीठ बूढ़ी माई मंदिर, भुवनेश्वरी देवी मंदिर अवस्थित हैं। माता भुवनेश्वरी मंदिर के बगल में ही अपने आप में अद्भुत एकादशरूद्र शिव विराजमान हैं।लगभग आठ फुट लंबे व पांच फुट चौड़ाई में बनी एक ही पीठिका (जलढरी) पर शिव के 11 रूपों में11 शिवलिंग स्थापित हैं। पड़ोसी देश नेपाल सहित राज्य व राज्य के बाहर से शिवभक्त एक ही पीठिका पर विराजमान इन 11 अद्भुत शिवलिंगों के दर्शन, पूजन को पुहंचते हैं। सावन माह में तो यहां की छटा ही निराली हो उठती है। इनके दर्शन मात्र से मन को पूर्ण शांति मिल जाती है।यह शिवालय श्रद्धालुओं की असीम श्रद्धा का केंद्र बना रहता है जो देखने लायक होता है।
वर्ष १९५३ में प्रसिद्ध तांत्रिक मुनिश्र्वर झा द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गए थी। कहते है यहां कांची कामकोटि के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती व पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती भी आकर पूजा कर चुके हैं। इन शंकराचार्यों ने भी यहां की महिमा का भरपूर बखान किया था। परिसर में नेपाल के एक शिवभक्त द्वारा लकड़ी का बनाया दो मंजिला भवन है। हालांकि अब यह जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। कहा जाता है कि पूर्व में इसमें तंत्र विद्या, ज्योतिष के शिक्षार्थी रहते थे। मंदिर से पूरब दिशा में जहां चातुश्चरण यज्ञ किया गया तालाब है।
तालाब के पश्चिमी घाट के पीछे श्राद्ध स्थली है। ऐसी मान्यता है कि बहुत से गरीब लोग अपने पितरों का श्राद्ध गया में नही कर पाते थे वे लोग उनके लिए यहां तंत्र विद्या से अभिसंचित श्राद्ध स्थली पर पिंडदान किया करते है। यहां पिंडदान करने पर गया जाने जैसा फल मिलता है। शिवमंदिर के सामने पंडित मुनेश्वर झा जो तंत्र साधक थे उनके द्वारा स्थापित भगवती भुवनेश्वरी एक मंदिर में विराजमान हैं।सावन में यहां हजारों की संख्या में शिव भक्त पहुंचते हैं। यहां बाबूबरही के पिपराघाट स्थित कमला, बलान व सोनी के संगम से जल लेकर कांवरिए आते हैं। कांवरियों की सुविधा के लिए सावन की प्रत्येक सोमवारी को चार बजे दिन तक जलाभिषेक की व्यवस्था रहती है। चार से साढ़े छह बजे तक षोडषोपचार पूजा की जाती है। बाबा भोलेनाथ का श्रृंगार नयनाभिराम होता है। सावन के प्रत्येक सोमवारी पर एकादश रूद्र का महा श्रृंगार आनुष्ठान में बड़ी संख्या में भक्त हिस्सा लेते है।
ऐसे पहुंचें मंगरौनी :
आप मधुबनी रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से रिक्शा, ऑटो या निजी वाहन से मंदिर परिसर तक पहुंच सकते हैं। राजनगर सहित आसपास के लोग यहाँ पैदल चल कर ही आते है। पुजारी आत्माराम कहते है ‘यहां आने वाले भक्तों की हरेक मनोकामना बाबा एकादशरूद्र पूरी करते हैं। इन शिवलिंगों के स्पर्श मात्र से मन को अद्भुत शांति मिलती है। ऐसी मान्यता है की एकादश रूद्र के पूजा आराधना करने से ११ गुना फलो की प्राप्ति होती है। महाशविरात्रि में मिथिला पंरपरा के अनुसार शिव-पार्वती विवाह का आयोजन होता है। यहां की परंपरा के अनुसार चार दिन तक विशेष विवाह श्रृंगार कादर्शन शिवभक्त करते हैं।चौथे दिन यह श्रृंगार हटा कर शिवलिंग की विशेषपूजा की जाती है। प्रत्येक सोमवार को होने वाले यहां के भंडारा में जो भोजन करता है वह पेट रोग से मुक्त हो जाता है। यहां एक साथ शिव के विभिन्न रूपों का दर्शन शिवभक्तों को अलौकिक आनंद देता है।’