सुशील मोदी का बिहार की राजनीति में नहीं है कोई विकल्प, मिल सकता है केन्द्र में बड़ा विभाग
सुशील कुमार मोदी का जन्म पटना में 5 जनवरी 1952 को हुआ. वे बिहार के उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री भी रह चुके हैं। वे एमएससी की पढाई छोड़ कर जेपी आन्दोलन में कूद गये थें.
सुशील मोदी- कब और कहाँ
1990 में, वह सक्रिय राजनीति में शामिल हो गए और सफलतापूर्वक पटना केंद्रीय विधानसभा (जिसे अब कुम्हरार (विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र) के रूप में जाना जाता है) से चुनाव लड़ा। 1990 में उन्हें फिर से निर्वाचित किया गया था। 1990 में, उन्हें भाजपा बिहार विधानसभा दल के मुख्य सचेतक बनाया गया था। 1996 से 2004 तक वह राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता थे। उन्होंने पटना हाईकोर्ट में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ जनहित याचिका दायर की, जिसे बाद में चारा घोटाले के रूप में जाना जाता था। 2004 में वह भागलपुर के निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए लोकसभा के सदस्य बने।
2005 में बिहार चुनाव में, एनडीए सत्ता में आया और मोदी को बिहार बीजेपी विधानमंडल पार्टी के नेता चुना गया। उन्होंने बाद में लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और बिहार के उपमुख्य मंत्री के रूप में पदभार संभाला। कई अन्य विभागों के साथ उन्हें वित्त पोर्टफोलियो दिया गया था। 2010 में बिहार चुनावों में एनडीए की जीत के बाद, वह बिहार के उप मुख्यमंत्री बने रहे। मोदी ने 2005 और 2010 के लिए बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए प्रचार करने में समर्थ नहीं हुए।
2017 में, बिहार में जेडीयू-आरजेडी ग्रैंड एलायंस सरकार के पतन के पीछे सुशील मोदी मुख्य खिलाड़ी थे, उन्होंने अपने बेनामी संपत्तियों और अनियमित वित्तीय लेनदेन के आरोप में चार महीने के लिए राजद प्रमुख लालू प्रसाद और उनके परिवार के खिलाफ लगातार निंदा की।
बिहार के विकास को अंजाम तक पहुँचाने में रहा है महत्वपूर्ण रोल
सुशील मोदी बिहार की राजनीति का एक बड़ा नाम है. डिप्टी सीएम की कुर्सी जाने के बाद बीजेपी नेतृत्व ने उन्हें राज्य सभा भेजने का निर्णय लिया. बिहार में सुशील मोदी के समर्थकों के लिए यह एक विचारणीय विषय था कि कहीं आलाकमान ने उनके नेता के पर तो नहीं कतरे हैं. राज्य सभा का टिकट मिलने के बाद यह तय हो गया कि केंद्र भी यह मान चुका है कि कि सुशील मोदी का कोई विकल्प नहीं. बिहार में लालू प्रसाद के शासन को ख़त्म करने से लेकर नीतीश सरकार के विकास कार्यों को अंजाम तक पहुँचाने में सुशील मोदी का महत्वपूर्ण रोल रहा है.
ऐसा माना जा रहा है कि बिहार के मोदी को दिल्ली के मोदी केंद्र में बड़ी जिम्मेवारी देंगे. वित्त मत्रालय से लेकर कृषि मंत्रालय तक की चर्चाओं का बाजार गर्म है.
अपनी रणनीति से बड़े नेताओं की श्रेणी में बनायीं है जगह
बिहार में नयी सरकार के गठन के बाद से हीं सुशील कुमार मोदी के नाम पर संशय की स्थिति थी. ऐसे में मीडिया रिपोर्ट्स भी ऐसे हीं कुछ आकलन कर रही थी. मीडिया ने तभी खुलासा किया था कि सुशील मोदी दोबारा डिप्टी सीएम नहीं बनेंगे. उन्हें रामविलास पासवान की खाली सीट से राज्यसभा भेजकर केंद्र में मंत्रालय दिया जाएगा.
हालांकि सुशील मोदी के सोशल मीडिया पर किये गये त्वरित टिप्पणी से एहसास जरुर हुआ कि उन्हें बिहार का शासन छोड़ने का दुःख हुआ. सूत्रों की माने तो सुशील मोदी को केंद्र में लाकर उन्हें नीतीश कुमार सहित अन्य बड़े नेताओं की पंक्ति में खड़ा कर दिया जायेगा.
पहले भी कई बार किया गया है साइडलाइन, पर हर बार निखर कर आये सामने
जब बिहार पहली बार पूर्णकालिक सरकार में नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया था तो भाजपा के एक बड़े और कद्दावर नेता को एक महत्वपूर्ण मंत्रालय को छोड़ना पड़ा। उस नेता को पहले से कम महत्वपूर्ण मंत्रालय मिला. दबी जुबान में इसका सारा दोष सुशील कुमार मोदी के माथे पर आया और बिहार भाजपा का एक बड़ा गुट सुशील मोदी हटाओ अभियान में जुट गया.
खबरों के मुताबिक यह मामला इतना बढ़ गया कि तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को दिल्ली पहुंच कर आलाकमान को सफाई देनी पड़ी. बिहार में अंदरूनी गुटबाजी में एक खेमा आरम्भ से हीं सुशील मोदी को हटाने के अभियान में लगा था. सुशील मोदी को नीतीश प्रेम ने बीजेपी नेताओं के टारगेट पर ला दिया.
जदयू से टूटी 17 साल पुरानी दोस्ती
भाजपा ने जैसे हीं नरेंद्र मोदी को PM पद का उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा की वैसे हीं 16 जून 2013 को बिहार में भाजपा-जदयू की 17 साल पुरानी दोस्ती टूट गयी. नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग राह पकड़ी और राजद का दामन थाम लिया. इस बार भी टारगेट पर आ गए बिहार के मोदी. चुकी सुशील मोदी खुद कई बार नीतीश कुमार को पीएम मटेरियल बता चुके थें जो शायद अलाकमान को रास नहीं आया. जदयू ने राजद का साथ लेकर सरकार बना ली और सुशील मोदी किनारे ही लग गए.
सुशील मोदी के राजद पर लगातार लगाये जा रहे आरोपों से असहज होते गए नीतीश
इसके बाद 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार राजद के साथ मिलकर चुनाव लड़ा जिसमें बीजेपी की जबरदस्त हार हुई. इस हार से भाजपा हिल गई. पार्टी को यह उम्मीद ही नहीं थी कि अगले पांच साल तक महागठबंधन की मजबूत सरकार को हिलाना संभव होगा. ऐसे मौके पर सुशील मोदी ने कमान संभाली. उन्हें पता था कि राजद के खिलाफ अगर आवाज उठाते हैं तो नीतीश खुद को असहज महसूस करेंगे. इस दौरान उन्होंने लालू परिवार के खिलाफ 44 प्रेस कॉन्फ्रेंस कीं. विपक्ष में रहकर लालू परिवार पर आय से अधिक संपत्ति के मामलों का खुलासा किया और कागजी प्रमाण भी लेकर आए. हर आरोपों के बाद नीतीश सरकार असहज होती गई और और सोचने को मजबूर हो गए.
सुशील मोदी का विकल्प नहीं
केंद्र के द्वारा सुशील मोदी के टिकट को कन्फर्म करने में लग रहे समय ने कुछ राजनितिक हलचल की ओर इशारा किया. ऐसे वक़्त में सुशील मोदी ने विधानसभा अध्यक्ष चुनाव से एक दिन पहले 24 नवंबर को NDA विधायकों को लालच देकर सरकार के खिलाफ जाने का खुलासा किया। खुलासे में लालू प्रसाद की तरफ से विधायकों को आ रहे ऑफर की जब “पोल खोल” सोशल मीडिया में किया. तब पार्टी एक झटके में समझ गई कि “सुशील मोदी का विकल्प नहीं है’.
लेखक का परिचय-
मधुप मणि “पिक्कू”
(लेखक एक निजी चैनल के सम्पादक रह चुके हैं। वर्तमान में भारत पोस्ट लाइव और बिहार पत्रिका के सम्पादक हैं साथ हीं वेब जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के संयुक्त सचिव हैं।)