सम्पादकीय

“आत्महत्या”, मनु कहिन- गुरुवासरीय

चलिए आज के गुरुवार में हम बातें करते हैं आत्महत्या के बारे में। यह एक बड़ी ही ज्वलंत समस्या है जिसने समाजशास्त्रियों की नींदें उड़ा रखी हैं। उनके लिए शायद यह समझ पाना मुश्किल हो रहा है कि आखिर किस तरह से इसे रोका जाए।

लोग आत्महत्या करते हैं। वजह जानकर आप हैरान रह

मनीष वर्मा,लेखक और विचारक

जाएँगे। बातें बहुत छोटी होती हैं। पर, अपनी जिंदगी से खेल जाते हैं। अब सोचिए, जो जिंदगी कुदरत की खूबसूरत देन और एक खुशनुमा एहसास है, बड़ी मुश्किल से जिंदगी आपको मिली है। कहा जाता है कि चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मानव जीवन प्राप्त होता है और आप हैं कि इसे लेने पर आमादा हैं। क्या सोचते हैं आप? आपके चले जाने से आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा? बिल्कुल नहीं। समस्याएं आपकी वहीं की वहीं रह जाएंगी। समस्याएं तो समस्याओं से जूझने उनसे भिड़ने के बाद ही समाप्त होती है। आपके जाने के बाद आपकी वह समस्या नासूर बनकर आपके परिवार समाज और आपके चाहने वालों को टीसती रहेगी। आप तो चले गए, पर आपने उन्हें जिंदगी भर का रोग दे दिया।

लोग आखिर आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? क्या वजह है आखिर? नौकरी नहीं मिली, तो आत्महत्या! नौकरी या व्यापार में परेशानी आई तो आत्महत्या! पढ़ाई में थोड़ी परेशानी आई, इच्छित परिणाम नहीं मिला तो आत्महत्या! किसी ने कुछ कह दिया या प्रेम में बेवफाई मिली या फिर किसी के ताने से परेशान होकर आत्महत्या! पति-पत्नी में अनबन हो गई तो किसी एक ने आत्महत्या कर लिया! लगा ली फांसी, लटक गए फंदे से। और नहीं तो ट्रेन के आगे कूद पड़े। जहर खा लिया। ऐसा लगता है, मानो आत्महत्या करना बड़े ही फख्र की बात है। न सोचा, न समझा, बस कदम बढ़ा दिया। ऐसा लगता है आत्महत्या करना, आत्महत्या ना हो कर चूरन की गोली खाने के समान है, जब चाहा ले लिया।

हैरानगी की बात है। छोटे छोटे बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं। वज़ह – पढ़ाई से अपेक्षित सामंजस्य ना बिठा पाना या फिर उन्हें लगता है कि वो मां बाप की आंकाक्षाओं को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। अरे तो मां बाप को अपनी पसंद बता दो ना। इतना मज़बूत दिल है तुम्हारा कि आत्महत्या करने का निर्णय कर लिया, पर अपने अभिभावकों को अपनी पसंद और ना पसंद नहीं बता सकते हो। मां बाप से खुलकर बातें करो। वो तुम्हारे अपने हैं। दोस्त हैं तुम्हारे। मैं तो मां बाप से भी कहूंगा अपने बच्चों पर अपना निर्णय, अपनी पसंद ना थोपें। अपनी कुंठा और अपनी नाकामी को अपने बच्चों के जरिए पूरा करने की कोशिश ना करें। जीने दें उन्हें अपनी जिंदगी, अन्यथा दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में आप अपने को कभी माफ नहीं कर पाएंगे।

हमारे देश में आत्महत्या अपराध है। भारतीय कानून की सुसंगत धाराओं के तहत आपको अपराधी ठहराया जा सकता है। आप को सजा दी जा सकती है। हालाँकि, मेंटल हेल्थ केयर एक्ट 2017, जो जुलाई 2018 में आया, इसमें यह कहा गया कि आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध मुकदमा नहीं चलाया जाएगा।

आत्महत्या को विकसित देशों में भी अच्छा नहीं माना जाता है।पुराने समय की यदि हम बातें करें, ऐतिहासिक संदर्भों की बात करें, तो हम पाएँगे कि एथेंस में बिना सरकार की अनुमति के आत्महत्या अपराध माना जाता था। मृत शरीर को दफनाने से रोका जा सकता था। उनकी कब्र पर पत्थर ( हेडस्टोन ) या मार्कर लगाना मना था।

1670 ईस्वी में लुईस चौदहवें के समय में आत्महत्या किए हुए व्यक्ति के मृत शरीर को उसके सिर को नीचे रख खींचतें हुए लाकर कूड़े की ढेर पर रख दिया जाता था। उसकी सारी संपत्ति जब्त कर ली जाती थी। पुराने समय में ईसाई चर्च के वे लोग, जो आत्महत्या का प्रयास करते थे, उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता था, और वे जो मर जाते थे, उनको निर्धारित कब्रिस्तान से बाहर दफनाया जाता था। एक तरह से सामाजिक तौर पर बहिष्कृत थे ये लोग।

19वीं शताब्दी में ग्रेट ब्रिटेन में आत्महत्या के प्रयास को हत्या के प्रयास के बराबर माना जाता था और इसकी सजा फांसी भी हो सकती थी। अन्य देशों में भी बड़े कठोर कानून बने हुए थे।

अभी हमारे देश में हालिया बहुचर्चित घटना मशहूर सिने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या का है। किस वजह से उन्होंने आत्महत्या की, अभी तक इस बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है। इस बात के भी कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं कि इस आत्महत्या के पीछे की आखिर वजह क्या थी? कहीं से भी ऐसा नहीं लगा कि सुशांत सिंह राजपूत जैसा व्यक्ति आत्महत्या कर सकता है। आखिर क्यों एक वैसा इंसान जिसने अपनी फिल्मों में हमेशा एक मजबूत किरदार को जिया, चाहे हम उनकी फिल्म ‘धोनी’ की बात करें या फिर ‘छिछोरे’ की, आखिर आत्महत्या कर लेता है?

जाना और आना, यह तो प्रकृति का शाश्वत नियम है। पर, इतनी भी क्या जल्दी थी कि आत्महत्या कर लिए? माना प्रारब्ध था यह। क्या मायने हैं इस प्रारब्ध के! इस प्रारब्ध को दिल स्वीकार नही कर रहा। इस तरह चले जाना बहुत सारे सवाल खड़े कर रहा है! क्या जवाब दिया जाए। एक मजबूत व्यक्तित्व का स्वामी, जिसने खुद अपना रास्ता बनाया। अपने सफलता के किस्से खुद गढ़े। जिसने बालीवुड में अपना एक मुकाम बनाया। अपने सौम्य स्वभाव और मुस्कान से लोगों को अपना कायल बनाया। उसका यूँ चले जाना आज तक दिल स्वीकार नही कर रहा। आखिर, क्या वजह हो गई? क्यों इस तरह का एक्सट्रीम स्टेप उठाना पड़ा? आखिर, क्यों ऐसा लगा कि बस यही एकमात्र विकल्प है?

जिंदगी बड़ी ही अनमोल होती है मेरे दोस्त। किसी का यूँ चले जाना बहुत खलता है। हमेशा एक टीस बरकरार रहती है। यादें रह रहकर झिंझोरती रहती हैं।

आखिर क्यों? ऐसी परिस्थितियाँ क्यों बनीं? आत्महत्या के पहले के क्षण काफी कशमकश भरे होते हैं। इतना आसान नहीं होता है, आत्महत्या करने का निर्णय लेना। आप बहुत मजबूर होते हैं, तभी इस तरह के कदम उठाते हैं। हमें सोचना होगा। पूरे समाज को समग्र रूप से सोचना होगा। क्यों हमारे बीच से कोई व्यक्ति इतना बड़ा कदम उठा लेता है और हम कुछ नहीं कर पाते हैं? यह कहीं ना कहीं बच्चों के प्रति हमारी परवरिश की कमी बताती है। हमने उन्हें लाड़-प्यार तो बहुत दिया। पढ़ाई में भी वह अव्वल रहे। अपने-अपने क्षेत्रों में अव्वल रहे हैं, पर हम उन्हें यह सिखाने में कहीं न कहीं असफल रहे कि उन्हें बताया जाय कि एडवर्सिटीज में कैसे जीना चाहिए। हमने उन्हें भावनात्मक रूप से संतुलित नहीं बनाया। हम सभी को बैठकर इस बारे में सोचने की जरूरत है।

जिंदगी कुदरत की एक बड़ी ही अनमोल और खूबसूरत देन है। एक खुशनुमा अहसास है। पर, आप देखें, हमारे देश में छोटी-छोटी बातों पर जान ली और दी जाती है। ऐसा लगता है, इसका कोई मोल ही नहीं। शायद, इस बात का लोगों को अहसास ही नहीं कि जिंदगी कितनी अनमोल और खूबसूरत हो सकती है। जब आप हिंदुस्तान में मौतों का सिलसिला देखते हैं, तो आप पाते हैं कि हमारे देश में छोटी-छोटी बातों पर लोगों की जान चली जाती है। सोचने पर मजबूर होना पड़ता है। आखिर ऐसा क्यों है?

✒️ मनीश वर्मा’मनु’