मीनाक्षी मंदिर- जानिए 65 हज़ार वर्ग मीटर में फैले इस मंदिर के बारे में
तमिलनाडु के मदुराई में स्थित मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर स्थापत्य एवं वास्तुकला की दृष्टि से आधुनिक विश्व के आश्चर्यों में गिना जाता है। तमिलनाडु के मदुरई शहर में स्थित मीनाक्षी मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। इस मंदिर को मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर या मीनाक्षी अम्मान मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती को मीनाक्षी देवी के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर भगवान सुन्दरेश्वर (शिव) की भार्या जिनकी आंखें मछली की आंखों जैसी सुंदर हैं, को समर्पित हैं। इस मन्दिर का स्थापत्य एवं वास्तु आश्चर्यचकित कर देने वाला है, जिस कारण यह आधुनिक विश्व के सात आश्चर्यों की सूची में प्रथम स्थान पर स्थित है एवं इसका कारण इसका विस्मयकारक स्थापत्य ही है। ये मंदिर 16वीं शताब्दी में द्रविड शैली में बनवाया गया था।
यह मंदिर अत्यंत प्राचीन मंदिर माना जाता है। इसका निर्माण 7वीं सदी के प्रारंभ में हुआ था। सन् 1310 में मुस्लिम आक्रांत मलिक काफूर ने इस मंदिर को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था। उस समय वहां के पंडे-पुजारियों ने मूल प्रतिमाओं को सुरक्षित बचा लिया था तथा 50 वर्ष के उपरांत जब मुस्लिम शासन से मुदराई मुक्त हुआ, तब उन प्रतिमाओं को पुन: आदपूर्वक अपने स्थान पर प्रतिष्ठित किया गया। सन् 1559-1600 में मदुराई के नायक प्रधानमंत्री आर्यनाथ मुदालियार ने मंदिर के पुनर्निर्माण का बीड़ा उठाया। पश्चात महाराजा तिरुमलनायक तथा उनके उत्तराधिकारियों ने मंदिर को पुन: अपनी श्रेष्ठता वापस दिलाई। 65 हज़ार वर्ग मीटर में फैले इस मंदिर को यहां शासन करने वाले विभिन्न वंशों ने विस्तार प्रदान किया है।
यह मंदिर 2 दीवारों की परिसीमा में निर्मित है। जिसमें 9 मंजिला दक्षिणी गोपुरम् सर्वोच्च होकर 170 फीट ऊंचा है। सबसे छोटा गोपुरम् उत्तर दिशा में है तथा 160 फीट ऊंचा है। इन सभी गोपुरम् में विभिन्न देवी-देवताओं, किन्नरों एवं गंधर्वों की सुंदर आकृतियां बनी हैं जिसमें नक्काशी तथा रंग सौंदर्य अद्भुत है। यहां के विशाल प्रांगण में सुंदरेश्वर (शिव मंदिर समूह) तथा बाईं ओर मीनाक्षी देवी का मंदिर है। शिव मंदिर समूह में भगवान शिव की नटराज मुद्रा में आकर्षक प्रतिमा है। यह प्रतिमा ए एक रजत वेदी पर स्थित है। बाहर अनेक शिल्पाकृतियां हैं, जो केवल एक-एक पत्थर पर निर्मित है। साथ ही गणेशजी का मंदिर है। यहां प्रांगण में अनेक मंडपम् बने हुए हैं जिसमें ‘सहस्रस्तंभ मंडपम्’ अत्यंत प्रसिद्ध हैं। इस मंडप में 985 भव्य स्तंभ बने हुए हैं। ये प्रत्येक स्तंभ प्राचीन द्रविड़ शिल्पकला के सौंदर्य की अनुपम गाथा प्रस्तुत करते हैं। उनके जैसे स्तंभ विश्वभर में अन्यत्र कहीं नहीं हैं। इनकी विशेषता यह है कि ‘उन पर थाप देने से विभिन्न वाद्यों के मधुर स्वर सुनाई देते हैं। दर्शकगण इस मधुर ध्वनि को सुनकर भाव-विभोर हो जाते हैं।
एक पौराणिक आख्यान है कि पान्ड्य राजा मलयध्वज की तपस्या से प्रसन्न होकर मां पार्वती के अंश के रूप में रानी कंचनशाला ने मीनाक्षी नामक कन्या को जन्म दिया। राजा मल्लय द्वज और रानी कांचन माला की बेटी को देवी मीनाक्षी माना जाता है। यह तीन वर्ष की बालिका अंतिम यज्ञ की आग से प्रकट हुई थी। देवी मीनाक्षी को मां पार्वती का रूप माना जाता है जिन्होंने पृथ्वी पर अपने पिछले जीवन में कांचन माला को दिए गए वचन का सम्मान करने के लिए जन्म लिया था। कन्या शनै:-शनै: बड़ी होने लगी। भगवान शिव अपनी बारात लेकर आए और मीनाक्षी के साथ उनका विवाह संपन्न हुआ। स्वयं भगवान विष्णु ने अपनी बहन मीनाक्षी का हस्तमिलाप करके कन्यादान किया। मीनाक्षी से सुंदरेश्वर के रूप में जन्मे भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया और दोनों मदुरई आए। यहां पर कई वर्षों तक भगवान शिव और देवी पार्वती ने शासन किया। आज जहां मीनाक्षी मंदिर स्थित है वहीं से शिव-पार्वती ने स्वर्ग की यात्रा आरंभ की थी।
इस मंदिर की स्थापना के बारे में कई लोक कथाएं प्रचलित हैं। किवदंती है कि इंद्र देव ने इस मंदिर की स्थापना की थी। अपने पाप कर्मों के प्रायश्चित के लिए इंद्र देव तीर्थयात्रा पर निकले थे और इसी यात्रा के दौरान उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। जैसे ही वो मदुरई के स्वयंभू लिंग के पास पहुंचे वैसे ही उन्हें लगा कि उनका बोझ कोई उठाने लगा है। इस चमत्कार को देखते हुए उन्होंने स्वयं ही मंदिर में लिंग को प्रतिष्ठित किया।
नवरात्रि एवं शिवरात्रि के पर्व पर विशेष साज-सज्जा होती है। यहां का विख्यात उत्सव होता है चैत्र माह में जिसमें मीनाक्षी देवी तथा सुंदरेश्वर भगवान का विवाहोत्सव बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। मंदिर में पाणिग्रहण के पश्चात दिव्य वर-वधू की शोभायात्रा निकाली जाती है जिसमें विभिन्न वाद्यों के साथ वादकगण सम्मिलित होते हैं। हाथियों को सजाकर यात्रा वैगा नदी के तट पर ले जाई जाती है, जहां मीनाक्षी देवी के भाई अलगारजी (विष्णु भगवान) का मंदिर है। संपूर्ण कार्यक्रम 12 दिन तक चलता है। यह उत्सव दक्षिण भारत का प्रमुख उत्सव माना जाता है जिसमें लाखों दर्शनार्थी भाग लेते हैं।
हर साल अप्रैल और मई के महीने में यहां 10 दिनों तक चलने वाना मीनाक्षी तिरुकल्याणम महोत्सव मनाया जाता है जिसमें तकरीबन 1 मिलियन से ज्यादा लोग शामिल होने आते हैं। मीनाक्षी मंदिर के दर्शन करने के लिए हर दिन तकरीबन 20 हज़ार लोग आते हैं। शुक्रवार के दिन तो ये संख्या बढ़कर 30 हज़ार हो जाती है। पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आने से मंदिर तकरीबन 60 मिलियन रुपए सालाना की कमाई होती है। मीनाक्षी मंदिर में सुबह 5 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक और शाम को 4 बजे से रात 9.30 बजे तक दर्शन करने आ सकते हैं।
आप तमिनलनाडु या मदुरई घूमने का प्लान बना रहे हैं तो मीनाक्षी मंदिर के दर्शन करने जरूर जाएं। इस मंदिर की वास्तुकला देखकर ना केवल आप हतप्रभ रह जाएंगें बल्कि यहां आकर आपकी सारी मनोकामनाएं भी पूर्ण होंगीं। मदुराई के इस विश्वप्रसिद्ध मंदिर के दिव्य दर्शन के पश्चात हमें हमारी भव्य सांस्कृतिक विरासत के दर्शन होते हैं। यहां का शिल्प सौंदर्य हमारे हृदय पर सदैव के लिए अंकित हो जाएगा, तथा यहां की अद्भुत वास्तुकला ने हमें पुन: सोचने को विवश कर देता है कि सचमुच हमारा देश महान है! अद्वितीय है!! अनुपम है!!!