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ऐसे देंगे हम शहीदों को सम्मान ? शहीद स्मारक के शिलान्यास के 12 साल बाद बनना तो दूर कार्य शुरू भी नहीं कर पायी सरकार

मधुप मणि “पिक्कू”

“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,

वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा…।”

एक कविता की यह पंक्तियां शहीदों के स्मारकों को देख कर स्वतः बोलने लगती है। कोई भी सरकार हो शहीदों के सम्मान में कुछ भी घोषणा करने में कभी पीछे नहीं हटती है। यह सभी सरकारों की सेनाओं और उनके परिवारों के प्रति संवेदनाओं को दर्शाता है। वहीं कई ऐसी घटनायें भी गाहे-बगाहे सुनने को मिल जाती है जहाँ सरकार और प्रशासन द्वारा शहीदों के लिए की घोषणाओं को अमल में नहीं लाने की बातें आती हैं।

वास्तविकता और राजनिति का नहीं होता है कोई वास्ता

वास्तविकता और राजनिति का कोई वास्ता नहीं होता है ये तो सभी जानते हैं। यही कारण है कि सरकारों और उनके अधिकारियों के द्वारा संवेदनहीनता के कई मामले बराबर सुनने को मिलते हैं। ऐसी हीं एक घटना है बिहार की राजधानी पटना के डिफेन्स काॅलोनी मुहल्ले की। ‘‘डिफेन्स काॅलोनी’’ मुहल्ले के नाम से हीं जाहिर है कि ये मुहल्ला निश्चित हीं देश के डिफेन्स से जुडे लोंगो के लिए हीं बना होगा।

12 वर्ष पूर्व हुई थी ‘‘शहीद स्मारक’’ बनाने की घोषणा

सूबे के मुखिया नीतीश कुमार ने लगभग 12 वर्ष पूर्व डिफेन्स काॅलोनी पार्क में भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के सम्मान में ‘‘शहीद स्मारक’’ बनाने की घोषणा के साथ-साथ शिलान्यास भी किया था। राज्य सरकार के अधिकारियों की संवेदनहींनता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज लगभग 12 वर्ष के बाद भी उस शहीद स्मारक के लिए 12 ईंट भी नहीं जोडा जा सका है।

सैनिकों को परमवीर चक्र से किया गया था सम्मानित

साल 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद उस युद्ध में शहीद हुए लोंगो के परिजनों के लिए सरकार द्वारा इस मुहल्ले में मकान आवंटित हुआ। सैनिकों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। निश्चित हीं यह मुहल्ला कंकडबाग को हीं नहीं पूरे पटना को गौरवान्वित करने वाला मुहल्ला है। इस मुहल्ले में भी एक शहीद स्मारक की आवश्यकता दिखी।

2009 शहीद स्मारक बनाने का प्रस्ताव

स्थानीय मुहल्लेवासी और समाजसेवियों के प्रयास के बाद 16 दिसंबर 2009 को डिफेन्स काॅलोनी में शहीद स्मारक बनाने का प्रस्ताव दिया गया। प्रस्ताव काफी महत्वपूर्ण और शहीदों के प्रति सम्मान का था, तो महज 3 दिनों के बाद हीं 19 दिसंबर 2009 को भवन निर्माण के पदाधिकारियों ने स्थल का जायजा लिया।

सरकार ने तत्परता दिखायी और ‘‘डिफेन्स काॅलोनी पार्क’’ में शहीद स्मारक का शीलापट्ट लगकर तैयार हो गया। दिनांक 20 दिसम्बर 2009 को हीं डिफेन्स काॅलोनी पार्क का उद्घाटन किया गया। इस उद्घाटन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तात्कालीन उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, तात्कालीन भवन निर्माण मंत्री छेदी पासवान और स्थानीय विधायक अरूण कुमार सिन्हा उपस्थित थें। उसी दिन प्रस्तावित शहीद स्मारक का शिलान्यास भी किया गया।

तकरीबन 12 वर्ष हो चूके हैं घोषणा के, 12 इंट भी नहीं जोड़ा जा सका

साल 2009 के बाद आज तकरीबन 12 वर्ष हो चूके हैं। अभी भी शहीद स्मारक के शिलान्यास का बोर्ड वैसे हीं लगा हुआ है और रणबांकुरों की इस धरती के जो जांबाज सैनिक देश के लिए कुर्बान हुए उन्हें सलामी देने के लिए बनाये जा रहे स्मारक की फाइल अधिकारियों के टेबल पर धूल फांक रही है। देश के लिए वीरगति को प्राप्त हुए वीर सपूतों के सम्मान में बनने वाली सरकारी मूर्ति जिसे देखकर हर शख्स श्रृद्धा से अपना शीश नवाए के इन्तजार में उनमें से कई सपूतों की माँ ने अभीतक दूनिया भी त्याग दिया होगा पर अपने सुपुत्र के सम्मान में बन रहे स्मारक को नहीं देख पायीं। वहीं उनके बच्चे भी इस इंतजार में अब जवान हो गये हैं जो बचपन में उस पार्क में खेलते हुए कहते कि ‘‘देखो मेरे पापा की मूर्ति, जिन्होंने पाकिस्तानियों की इंट से इंट बजा दी थी।’’

साल 2017 में स्थानीय विधायक अरूण कुमार सिन्हा ने सदन में उठाया था सवाल

उस युद्ध में शहीद हुए स्व0 रामनाथ पाण्डेय के सुपुत्र और भाजपा नेता गिरीश पाण्डेय बताते हैं कि ‘‘हमलोग स्थानीय डिफेन्स काॅलोनी विकास समिति’’ के बैनर तले कई बार प्रयास किया कि शहीद स्मारक बनकर तैयार हो जाये पर वे लोग असफल रहें। साल 2017 में स्थानीय विधायक अरूण कुमार सिन्हा के माध्यम से विधानसभा में प्रश्न भी उठाया गया। इसके पश्चात विभिन्न विभागों द्वारा कई पत्र भी जारी हुए पर नतीजा कुछ भी नहीं निकला।

अधिकारियों के द्वारा फाइल को ठंडे बस्ते में डालने के क्या हो सकते हैं कारण ?

सूबे के मुखिया नीतीश कुमार अपनी विशेष छवि और कार्यकुशलता के लिए जाने जाते हैं। इस मामले में आखिर क्या वजह रही कि उनकी घोषणा के बाद भी इस पर अमल नहीं किया गया। आखिर अधिकारियों के द्वारा फाइल को ठंडे बस्ते में डालने के क्या कारण हो सकते हैं। विधायक द्वारा सदन में प्रश्न पुछने के बाद भी काम में तेजी तो दुर शुरू भी नहीं किया जा सका। बड़ी-बड़ी बातें करने से सम्मान नहीं दिया जाता है। किसी सैनिक का शहीद होना सिर्फ एक परिवार के सदस्य का खोना नहीं होता है बल्कि देश के लिए लड़ने वाला एक सच्चा सपूत को खोना होता है। ऐसे में इस प्रकार की घोषणा पर अविलम्ब अमल होना चाहिए।

अपनी बाजूओं के दम पर वारे हैं,
हमारे हौसलों में भी कम नहीं दरारें हैं।
अपनी जिन्दगी और सम्मानों के जंग में,
हम अपने ही हमवतनों से हारे हैं।