सरदार पटेल
*३१ अक्तूबर/ जयंती*
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भारत के राजनीतिक एकीकरण के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान को चिर-स्थायी बनाये रखने के लिए उनके जन्म-दिन ३१ अक्तूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है.इसका आरम्भ भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने सन् २०१४ में किया.
वल्लभ भाई झावेर भाई पटेल, जो सरदार पटेल के नाम से लोक-प्रिय थे, एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे. उन्होंने भारत के पहले उप-प्रधानमन्त्री के रूप में कार्य किया. वे एक भारतीय अधिवक्ता और राजनेता थे।
वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के, एक वरिष्ठ नेता और भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिता थे जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई और एक एकीकृत,स्वतंत्र राष्ट्र में अपने एकीकरण का मार्ग – दर्शन किया.
उन्होंने भारत के राजनीतिक एकीकरण और सन् १९४७ के भारत – पाकिस्तान युद्ध के दौरान गृहमंत्री के रूप में कार्य किया.
सरदार पटेल जी ने, बहुत सारे प्रमुखता पदों को प्राप्त किया।
उन्होंने जनवरी, १९१७ में अहमदाबाद नगर पालिका के काउंसिलर की सीट के लिए चुनाव लड़ा और वे उस पद के लिए चुन भी लिये गए जबकि वे उस समय, शहर में बैरिस्टर के रूप में काम कर रहे थे.
उनके काम-काजी तरीके की सराहना की गई और उन्हें १९२४ में, अहमदाबाद नगर पालिका के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया. वर्ष १९३१ में कराची सत्र के लिए उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
वह आजादी के पश्चात् भारत के पहले उप प्रधान मंत्री बने. उन्होंने १४ अगस्त, सन् १९४७ से १५ दिसंबर, १९५० तक गृह – मंत्रालय के पद को संभाला. उन्होंने १५ अगस्त, सन् १९४७ से १५ दिसम्बर, सन् १९५० तक भारतीय सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ के पद को भी संभाला।
सरदार वल्लभ भाई पटेल वर्ष,२९१७ में महात्मा गांधी जी से मिलने के बाद, उन की दृष्टि बदल गई. वह गांधीवादी विचारधाराओं से बहुत प्रभावित हुए और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए तैयार हो गए. उन्होंने महात्मा गांधी जी को अपने बड़े भाई के रूप में माना और हर कदम पर उनका समर्थन किया.
इस के बाद से, वे महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में सभी आंदोलनों का हिस्सा बनते गए और उन के समर्थन के साथ विभिन्न आंदोलनों की शुरुआत की. उन्होंने नागरिक अवज्ञा आंदोलन में भी भाग लिया. उन्होंने आंदोलन में भाग लेने के लिए जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद और राजा गोपालाचारी जैसे अन्य कांग्रेस हाई कमांड नेताओं से भी आग्रह किया।
वह स्वतंत्र भारत के पहले प्रधान मंत्री पद के लिए एक मजबूत दावेदार थे. हालांकि, गांधी जी के अनुरोध पर उन्होंने जवाहर लाल नेहरू जी को पद देने के लिए अपनी उम्मीदवारी छोड़ दी. ऐसा कहा जाता है कि गांधी जी की हत्या वाले दिन, पटेल जी ने शाम को उन से मुलाकात की, वे नेहरू जी के चर्चा करने के तरीकों से असंतुष्ट थे इसीलिए वे गांधी जी के पास गए थे।
उन्होंने गांधी जी से कहां कि, यदि नेहरू जी ने अपने तरीकों को नहीं सुधारा तो वह उप–प्रधान मंत्री के रूप में पद से इस्तीफा दे देंगे. हालांकि, गांधी जी ने पटेल को आश्वासित किया और उनसे वादा करने के लिए कहा कि वह ऐसा कोई भी निर्णय नहीं लेंगे. यह उनकी आखिरी बैठक थी और पटेल जी ने गांधीजी को दिए गए वादे का मान रखा।
सरदार पटेल जी ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए भारत के लोगों को एकजुट करने के लिए कड़ी मेहनत की. वे लोगों को एक साथ लाने, और उन्हें एक लक्ष्य की ओर ले जाने के लिए जाने जाते थे. उनके नेतृत्व के गुणों की सराहना सभी ने की थी।
३१ अक्टूबर उनके जन्म-दिन के अवसर पर इस दिशा में उन के प्रयास को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में घोषणा करके सम्मानित किया गया था।