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सर्द मौसम और सियासी तापमान – एक दुसरे से आगे बढ़ने की होड़

ज्ञान रंजन मिश्रा, आरा

जहां एक तरफ मौसम विभाग का अनुमान है कि इस हफ्ते पारा छोड़ा और नीचे जा सकता है, जिससे सर्दी और बढ़ेगी. वह दूसरी तरफ इस वक्त देश की राजनीतिक घटना क्रम कुछ ऐसा है कि सर्दी कितनी ही कड़ाके की पड़े, इस पूरे हफ्ते सियासी तपिश पहले से कहीं ज्यादा महसूस की जाएगी. इस हफ्ते केंद्र की मोदी सरकार और बीजेपी भी नागरिकता कानून और एनआरसी पर उठे विवाद को जल्द से जल्द समाप्त कर आगे बढ़ने का प्रयास करेगी. अब बीजेपी इसी बात से बाहर निकलने को हाथ पैर चलाने लगी है और 5 जनवरी से सीएए और एनआरसी पर जागरुकता अभियान शुरू करने वाली है. इसको अभियान में पार्टी ने 3 करो घरो तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है. पार्टी का मानना है कि अगर सीएए और एनआरसी के खिलाफ देश भर में आंदोलन जारी रहा तो इस अभियान में दिक्कत आनी स्वभाविक है. इसमें दो मत नहीं कि सर्द मौसम और सियासी तापमान में एक दुसरे से आगे बढ़ने की होड़ लगी है.

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जनवरी से आर्थिक सुस्ती को लेकर के देशभर अभी राज्यों में मीटिंग होने वाली है. अभी देश भर में जिस तरह के हालात बन चुके हैं, सरकार के लिए राज्यों का साथ बहस जरुरी है. लेकिन इसमें से एक समस्या है. कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के बाद परिदृश्य यह है कि गैर बीजेपी राज्यों की संख्या अधिक खो चुकी है. जिस तरीके से महाराष्ट्र, झारखंड राज्य जो में उन्हें अपनी सरकार गवानी पड़ी. इतना ही नहीं इनमें 10 राज्यों ने एनआसी मुद्दों पर खुलकर विरोध भी कर दिया है. सरकार इस विवाद को समाप्त कर इन राज्यों को टैक्स सुधारने के मसले पर अपने साथ लेना चाहेगी.

एक महीने पहले महाराष्ट्र में शिवसेना-कोंग्रेस और एनसीपी ने मिलकर सरकार बनाई थी. भारतीय जनता पार्टी तीनों दलो के अंतर विरोध का अधिकतम सियासी लाभ उठाने की कोशिश करेगी. इसका संकेत पिछले दिनों ही दिख गया जब राहुल गांधी ने दिल्ली की रैली में सावरकर पर टिप्पणी की तो तुरंत भारतीय जनता पार्टी ने मुंबई में उसे मुद्दा बनाया और कांग्रेस और शिवसेना के बीच हल्की फुल्की जुबानी जंग भी हुई. गठबंधन की राजनीति का विशेषता है कि सभी पार्टियां मंत्रालय बंटवारे को लेकर कर जद्दोजहद में नजर आती है. महाराष्ट्र के साथ ही साथ हरियाणा में भी गठबंधन की परीक्षा बाकी है. भारतीय जनता पार्टी को समर्थन दे रही दुष्यंत चौटाला की पार्टी में बगावत की स्वर उठने लगे हैं.

बहरहाल, इस हफ्ते यह विवाद किस करवट जाकर बैठता है, यह भी पता चल जाएगा. वही झारखंड में हेमंत सरकार अपनी पारी की शुरुआत कर चुकी है. बड़े बहुमत के साथ सत्ता में आने वाली हे मन के सामने तुरंत ही चुनौती आने वाली है. कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के बीच पहले कई ऐसे विवाद हो चुके हैं. खासकर रघुबर दास की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने जिन आदिवासियों के खिलाफ किस दर्ज किए थे, उन्हें वापस लेने का दबाव अभी से बनने लगा है.