सम्पादकीय

विनम्रता,सहजता और संकल्प दीर्घ लक्ष्य प्राप्ति के सन्मार्ग!

(जल्दबाजी मानसिक विकार)

मनुष्य सदैव प्रयास करता है कि उसे लक्ष्य और सफलता जल्द से जल्द प्राप्त हो पर वस्तुतः ऐसा होता नहीं है, स्थाई सफलता के लिए कठोर श्रम, संकल्प, सहजता और विनम्रता सच्चे सन्मार्ग हैं जल्दी का काम शैतान का होता है ऐसा कहावतें कहती है, लक्ष्य प्राप्ति के लिए जीवन में निरंतर श्रम सहजता सरलता और संघर्ष के साथ संयम का बड़ा योगदान होता है। प्रत्येक व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहता है वह जीवन के हर सोपान में अपने आप को उत्तम स्थिति में रखना चाहता है। किंतु जीवन की सफलता मनुष्य के संघर्ष और उसके आचरण में अंतर्निहित

संजीव ठाकुर

विनम्रता पर भी निर्भर करती हैं। मनुष्य यदि सब कुछ प्राप्त करके भी वह विनम्र नहीं है तो उसका जीवन अधूरा है। रावण बहुत बड़ा विद्वान और शास्त्रों का ज्ञाता था किंतु उसके जीवन में और उसके आचरण में विनम्रता ना होकर दंभ और अहंकार समाविष्ट था, अतः वह अपने अहम और विनम्रता विहीन जीवन के कारण प्रभु श्री राम के हाथों मारा गया। विनम्रता मनुष्य का वह गुण है जो मनुष्य के निजी जीवन में समाजीकरण की प्रक्रिया में उसके द्वारा आत्मसात किया जाता है। मनुष्य मूलतः अहंकारी, स्वार्थी, लालची तथा पद प्राप्त करने वाला लोभी रूप होता है। किंतु धीरे-धीरे वह सामाजिक परिवेश में अपने आसपास के ज्ञानी ,साधु एवं सच्चे सद्गुणी नागरिकों के संपर्क में आकर अपने लोभ तथा लालच की अहंकारी गतिविधियों में सुधार लाकर सहिष्णु, सौहार्द, करुणा, सहयोग आदि गुणों को अपने में समाहित कर विनम्रता के सद्गुण को ग्रहण कर लेता है। विनम्रता सही मायने में सामाजिक अच्छाई की परिणति है। सद्गुण और विनम्रता महान लोगों के द्वारा ग्रहण किया हुआ वह अलंकार है जो उसे लोक तथा परलोक में सर्वमान्य रूप से स्थापित करता है। छोटा और तुच्छ व्यक्ति अपनी छोटी-छोटी गतिविधियों में रहकर अपने आप को सर्वशक्तिमान एवं सर्व ज्ञानी समझकर कुएं के मेंढक की तरह अधजल गगरी छलकत जावे की कहावत को सिद्ध करता है। महान तथा ज्ञानी व्यक्ति के व्यक्तित्व में विनम्रता झलकती है वह उसे प्रदर्शित करने से परहेज करते हैं क्योंकि विनम्रता उनके संपूर्ण व्यक्तित्व में समाहित होती है। विनम्रता किसी भी सज्जन व्यक्ति की जीवन की शैली होती है। महान और विनम्र व्यक्ति की प्रशंसा करने पर भी वे उसे स्वीकार न कर किसी दूसरे व्यक्ति को इसका श्रेय देते हैं। और अज्ञानी और छोटी सोच के कारण व्यक्ति अपने मियां मिट्ठू बनने से नहीं अघाते हैं। ज्ञानी व्यक्ति अपनी उपलब्धि को समाज की बेहतरी के लिए उपयोग में लाता है, ना कि उसे केवल अपने अथवा अपने करीबी या परिवार के लिए ही सीमित नहीं रखता है। विनम्र व्यक्ति सदा ज्ञान तथा सद्गुणों की खोज में रहता है एवं उसके जीवन में नई-नई उपलब्धियां अपने आप आने लगती हैं । जिस तरह फलदार वृक्ष सदैव झुके हुए होते हैं उसी तरह विनम्र और ज्ञानी व्यक्ति भी बहुत अधिक विनम्र तथा देश समाज और राष्ट्र के प्रति निष्ठावान होता है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर बने रहने के पश्चात भी विद्यार्थियों के साथ रहा करते थे जो उनको महानतम बनाता है और इसी महानता के लिए उन्हें भारत का सर्वोच्च भारत रत्न की उपाधि दी गई थी। ज्ञानी व्यक्ति केवल सूचनाओं का केंद्र ही नहीं होता बल्कि ज्ञान उसे विनम्र और सद्गुणी बनाता है, विनम्रता मनुष्य को उसके जीवन में अच्छे मार्ग में प्रशस्त होता है विनम्र व्यक्ति ही समाज में उचित स्थान तथा सम्मान का हकदार बनता है। विनम्रता से ही मनुष्य समाज के हर पहलू में उसका पात्र बनकर उसे ग्रहण करने का अधिकार रखता है। इसलिए विनम्र एवं ज्ञानी व्यक्ति समाज में सदैव सम्मानित एवं उच्च स्थान प्राप्त करने वाला व्यक्ति बन जाता है। विनम्र व्यक्ति में नेतृत्व गुण भी संभावित होता है क्योंकि ज्ञानी और विनय शील व्यक्ति को अपने नेतृत्व कर्ता के रूप में शहर से स्वीकार करती है। क्योंकि ऐसा व्यक्ति अपने विचारों को आमजन पर अधिरोपित नहीं करता बल्कि उनके विचारों को उनके सुझाओं को प्राप्त कर नए-नए समाधान भी निकलता है। महात्मा गांधी जी ने सत्य और अहिंसा को अपना साधन घोषित करते हुए स्वतंत्रता के लिए इसे अपना अस्त्र तथा शस्त्र बनाया था। सत्य और अहिंसा विनम्र व्यक्ति के दो अमोघ अस्त्र की तरह थे जो विनम्रता को और प्रभावशाली बनाते हैं। विनम्र व्यक्ति सदा संतोषी एवं परम सुखी होता है क्योंकि उसकी अपनी कोई महत्वाकांक्षा इच्छा, लोभ,जलन अथवा प्रतिस्पर्धा नहीं रहती है, वह अवगुणों से दूर रहकर अपने को परिमार्जित कर लेता है और समाज के विकास के लिए समर्पित भी रहता है। महात्मा बुद्ध के संदर्भ में कहा जाता है कि जब वे ज्ञान की खोज में देशाटन कर रहे थे तब लोगों ने उन्हें अनेक प्रकार की यातनाएं दी पर महात्मा बुध ने बिना विचलित हुए अपनी खोज में लगे रहे और उनके अथक प्रयास ,विनम्रता और ज्ञान के दम पर महापरिनिर्वाण की स्थिति को प्राप्त किया। जिस तरह शक्ति को दबाया जा सकता है किंतु समाप्त नहीं किया जा सकता उसी प्रकार विनम्रता कुछ समय के लिए कमजोर प्रतीत हो सकती है अंततः उसकी अपनी क्षमता व्यापकता और पर्वत के समान कठोर तत्वों के कारण वह हर बाधा को पार कर मनुष्य को सफलता दिलाने में सक्षम होती है इसी विनम्रता और कठोर श्रम के चलते महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार की बाधा को नेस्तनाबूद कर दिया और भारतवासियों को अपनी विनम्रता से स्वाधीनता का स्वाद चखाया। यही बात हमारी भारतीय सनातन तथा वैदिक संस्कृति पर भी लागू होती है वह हजारों वर्ष से अब तक सुरक्षित बनी हुई है। विनम्रता व्यक्ति हो या संस्कृति उसे विनम्रता स्थायित्व प्रदान करती है एवं आने वाले मार्ग की बाधाओं को समाप्त कर देती है जैसा कि अहंकार का अस्थाई तथा क्षणभंगुर होता है, किसी भी राष्ट्र संस्कृति समाज के स्थायित्व के लिए उसका विनम्र तथा सहिष्णु होना आवश्यक है । इसीलिए यह माना जाता है कि मनुष्य, समाज ,देश के लिए विनम्रता सर्वश्रेष्ठ अवदान है।

संजीव ठाकुर, स्तंभकार, चिंतक,, रायपुर छत्तीसगढ़,

कविता,

संजीव-नी।

जर्रा हैं हवाओं में बिखर जाएंगे।।

गए दूर तुझसे तो कहां नजर आएंगे।
अखबारों में खबर बन नजर आएंगे।

हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा है।
तुझें कैसे कहाँ निहार पाएंगे।।

आरज़ू तमन्नाएं अब कुछ भी नहीं,
जर्रा हैं हवाओं में बिखर जाएंगे।।

तीर कभी अंधेरे में मत चलाना।
तेरी तरफ ही लौटकर आएंगे।।

ख्वाहिश है आखरी बार देखे तुझे,
हम न जाने फिर किधर आएंगे।।

ये सजर है तेरे ही गांव का शायद,
लंबे सफर में थोड़ा ठहर जाएंगे ।

संजीव ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़,