सवेदनशील मुद्दों पर दंगा फसाद एवं राष्ट्रविरोधी राजनीति उचित है क्या ?
अगर हम भारत की सन्दर्भ में देखे तो हम सब भारतवासी एक परिवार की तरह है। किसी भी परिवार के किसी एक सदस्य को तकलीफ होती है तो पुरे परिवार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है, और अगर हम पूरा राष्ट्र एक जुट होते है तो हम किसी भी दूसरे देश के लिए एक चुनौती बन सकते है। हमारी सम्पदा का आकर इसी पर निर्भर करता है।
कोइ भी देश अमीर या गरीब सिर्फ सरकारी नीतियों के चलते नहीं बल्कि लोगो के राष्ट्रवाद की शक्ति के कारण ही बढ़ सकता है। यही कारण है की कोइ देश और उसकी जनता दोनों परस्पर रूप से एक दूसरे पर निर्भर करते है आप कोइ भी विकसित राष्ट्र देख ले ;वह अपनी नीतीशील देशभक्त एवं राष्ट्रवाद के बिना आगे नहीं बढ़ा है। राष्ट्रबाद कोइ हमारे भीतर जगाने की चीज नहीं है बल्कि यह हमारा अपने देश के प्रति देखने का नजरिया है। अगर हम अपने देश और उससे जुडी चीजों का सम्मान करेंगे तो संभव है की हमे भी सम्मान मिलेगा।
भारत की व्यवस्था यहाँ की समाज के लिए उदारवादी है तो क्या हमें सवेदनशील मुद्दों पर दंगा फसाद एवं राष्ट्रविरोधी राजनीति करने का लाइसेंस मिल गया ? राजनीतिवश हममे बहुत से लोग भीड़ में उन्माद फैलते है एवं गरीबो का उनकी जरुरत के हिसाब से इस्तेमाल करते है। बहुत से लोग इस तरह की दुसित विचारो का कलंक अपने माथे पर शान से लगते एवं अपने आपको एक नेता के रूप में प्रस्तुत करते है ऐसे ही नेता हमारी कमजोरी है। हम अपने थोड़े समय के उन्माद एवं जरूरतों के वश में आकर देश के प्रति अपने दाइत्व को भूल जाते है।
क्या किसी समस्या का हल दूसरी समस्या हो सकती है ? लोगो के अपने जरूरतों अथवा किसी भ्रम के चलते भिन्न-भिन्न विचारो से कठोरता पूर्वक जुड़े रहना एक दूषित विचारधारा को जन्म देता है, और यही हमारे देश का असली बटवारा है। इसी कारण हमारे देश में अपराधी भी नेता है और पुलिस भी भ्रस्ट व्यवस्था एवं भ्रमित भीड़ के कारण चुप रहती है।
कुमार सचिन