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नए संसद भवन के बहिष्कार के फैसले पर करें पुनर्विचार: रक्षा मंत्री

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार, 26 मई 2023 को राजनीतिक दलों और नेताओं से किसी भी विवाद में संसद या राष्ट्रपति को शामिल करने से परहेज करने का आग्रह किया। इस संबंध में ट्वीट कर उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित करके भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ने जा रहे हैं। नया संसद भवन भारत के लोकतांत्रिक संकल्प के साथ-साथ 140 करोड़ भारतीयों के स्वाभिमान और उनकी आकांक्षाओं की भी अभिव्यक्ति है।

21वीं सदी में दोबारा नहीं आएगा ये अवसर

रक्षा मंत्री ने आगे कहा कि संसद भवन का उदघाटन एक ऐतिहासिक अवसर है जो अब 21वीं सदी में दोबारा नहीं आने वाला है। इस शुभ अवसर पर संसद या राष्ट्रपति को विवाद में लाने से किसी को भी बचना चाहिए।

‘संवैधानिक सत्र’ और ‘सार्वजनिक समारोह’ का अंतर समझना चाहिए

आयोजन की प्रकृति को स्पष्ट करते हुए, रक्षा मंत्री ने रेखांकित किया कि तकनीकी दृष्टि से यह संसद का कोई सत्र नहीं बुलाया गया है। यह तो संसद भवन के उद्घाटन का समारोह है। अतः हमें ‘संवैधानिक सत्र’ और ‘सार्वजनिक समारोह’ का अंतर समझना चाहिए।

ऐतिहासिक क्षण के बनें साक्षी

इसी के साथ रक्षा मंत्री ने समारोह का बहिष्कार करने वाले राजनीतिक दलों से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने और समारोह में भाग लेने का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा, राजनीतिक विरोध के अनेक अवसर आते-जाते रहेगें।

मैं यही आग्रह करूंगा कि, जिन दलों ने समारोह के बहिष्कार का निर्णय लिया है वे अपने फैसले पर राजनीतिक लाभ हानि से परे जाकर अपने फैसले पर पुनर्विचार करें और इस समारोह में भाग लेकर ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बनें।

28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे PM मोदी

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इस ऐतिहासिक क्षण के लिए अब महज 48 घंटे ही बचे हैं। वहीं नए संसद भवन का पीएम मोदी द्वारा उद्घाटन किए जाने को लेकर विपक्षी दलों ने बहिष्कार करने का ऐलान किया है। विपक्ष की मांग है कि नई संसद का उद्घाटन प्रधानमंत्री को न करके राष्ट्रपति को करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने नई संसद भवन से जुड़ी याचिका की खारिज

उधर, इसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने नए संसद भवन परिसर के उद्घाटन मामले में संबंधित याचिका को खारिज कर दिया है। इस संबंध में अदालत ने कहा है कि याचिका सुनवाई के लायक नहीं है। इस पर शीर्ष अदालत ने साफ कहा कि ऐसी याचिकाओं को देखना सुप्रीम कोर्ट का काम नहीं है।

अदालत ने पूछा कि इस जनहित याचिका में क्या जनहित है?

अदालत ने पूछा कि इस जनहित याचिका में क्या जनहित है? शीर्ष अदालत के इस सवाल पर याचिकाकर्ता कोई ठोस जवाब नहीं दे पाए। इस तरह नई संसद के उद्घाटन विवाद से जुड़ी याचिका को याचिकाकर्ताओं ने वापस ले लिया है। याचिका में नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों कराने की मांग की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कह दिया है कि ये विषय कोर्ट का नहीं है कि नए संसद भवन का उद्घाटन कौन करेगा या किसको करना चाहिए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट किस तरह का डायरेक्शन दे सकता है और कौन सी याचिका में इस तरह के डायरेक्शन दिए जा सकते हैं कि एक नए परिसर का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराया जाए।

यदि वकील इस मामले पर ज्यादा बहस करते तो क्या होता?

सुप्रीम कोर्ट के ज्यूडिशियल रिव्यू के दायरे की एक सीमा है। यह पूरी तरह से एक्जीक्यूटिव डिसिजन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इसमें कोर्ट किस तरह से कोई हस्तक्षेप कर सकता है? इसी के साथ कोर्ट ने याचिकाकर्ता को मौका भी दिया कि वह याचिका को खुद वापस ले ले। यदि वकील इस मामले पर ज्यादा बहस करते या ज्यादा समय लेते तो संभवत: ऐसे मामलों में पीआईएल दाखिल करने वालों के ऊपर कोर्ट ने जुर्माना भी लगाया है।

यह भी बताना चाहेंगे कि यह पहली याचिका नहीं है जो सुप्रीम कोर्ट में आई है। इस मामले से जुड़ी हुई कई याचिकाएं अलग-अलग स्तर पर सुप्रीम कोर्ट में पहले भी आई हैं। चाहे सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की घोषणा की बात हो, चाहे आधारशिला रखने की बात हो अलग-अलग मौकों पर कई याचिकाएं दाखिल की गई। कुछ में एनवायरमेंटल क्लीयरेंस क्लियर न होने की बात कही गई तो कुछ में इलाके की हेरिटेज वैल्यू बिगाड़े जाने की बात कही गई। सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर खासतौर से एनवायरमेंटल क्लीयरेंस को लेकर विस्तार से सुनवाई भी की थी। तब कोर्ट ने यह पाया था कि इस प्रकार की कोई भी अनियमितता नहीं बरती गई है।