सम्पादकीय

सपनों का बिहार, रविवारीय में पढ़िए छठ महापर्व की विशेषताएं

बिहार में आएं और और हम बिहारियों के महापर्व छठ में शामिल हों तब आपको पता चलेगा कि हम बिहारियों को क्यों गर्व है अपने बिहारी होने पर। अपराध शुन्य बिहार! अख़बार के पन्नों में अपराध

मनीश वर्मा,लेखक और विचारक

और अपराधी से संबंधित खबरों को आप ढूंढते रह जाएंगे। गली मुहल्लों की सड़कों से लेकर मुख्य रास्ते की सफाई ऐसी कि सड़कों पर अगर सूई गिर जाए तो वह भी दिख जाएगी। तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं।

वैसे बिहार का नाम आते ही लोगों के ज़ेहन में अपराध और अपराधी इसके अलावा कुछ नहीं आता है, पर हम बिहारियों का यह मानना है कि यह एक भ्रम और छलावे के सिवा कुछ नहीं है। छठ महापर्व के दौरान तो बन जाता है एक सपनों का बिहार!

महापर्व छठ के दौरान पूरे देश भर से बिहार और पूर्वांचल की ओर आने वाली ट्रेनों में तिल रखने को जगह नहीं मिलती है। हवाई जहाज़ के टिकटों के दाम में आई बढ़ोतरी भी छठ के उत्साह को फीका नहीं कर पाती है। श्रद्धा, विश्वास, आस्था और उत्साह का अद्भुत संगम।आज से लगभग पच्चीस वर्ष पहले तक यह पर्व विशेष रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में मनाया जाता था, लेकिन अब इसका स्वरूप वैश्विक हो गया है।

मुझे याद है कि 1996 में जब मेरी पोस्टिंग अहमदाबाद में हुई थी, तो कार्यालय में मुझे महापर्व छठ और उसकी महत्ता के बारे में विस्तार से समझाना पड़ा था। उस समय साबरमती नदी के किनारे बमुश्किल दो-तीन परिवार ही छठ पूजा के लिए इकट्ठा होते थे। पर आज, इस महापर्व के प्रति लोगों में जागरूकता और जानकारी इतनी बढ़ गई है कि शायद ही कोई इससे अंजान हो।

वर्षा ऋतु के ख़त्म होते ही कास के फूलों का खिलना शुरू हो जाता है। कास के सफ़ेद रूई के जैसे फूलों का खिलना सूचक है शरद ऋतु के आगमन का। हम सभी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं शरद ऋतु का। त्योहारों का मौसम जो शुरू होने को होता है। दशहरा के धूम के बाद दीपावली और दीपों का पर्व दीपावली समाप्त होते ही अब सभी को महापर्व छठ का इंतजार रहता है। वैसे तो दीपावली और छठ महापर्व के दौरान दो चार और भी पर्व आ जाते हैं, पर इंतज़ार सबको छठ का ही रहता है।

छठ पूजा अब बिहार और पूर्वांचल से निकलकर सम्पूर्ण भारत और विश्व के अन्य भागों में भी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जा रही है। इस पर्व की बढ़ती लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण इसका सरल, पर्यावरण-संवेदनशील और सामूहिक स्वरूप है। पहले जहां यह केवल बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्रों तक सीमित था, अब इसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, अहमदाबाद, और यहां तक कि अमेरिका, कनाडा, यूरोप और खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीय भी मनाने लगे हैं।

छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य सूर्य देव और प्रकृति की उपासना करना है। इस पर्व की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है, जिसमें शुद्धता का ध्यान रखते हुए साधारण भोजन किया जाता है। नए चावल का भात, चने का दाल और कद्दू की सब्जी। इसके बाद ‘खरना’ का आयोजन होता है, जिसमें व्रती शाम के समय विशेष प्रसाद ( नए चावल का गुड़ मिश्रित खीर, ऋतु फल ) ग्रहण करती हैं। इसके अगले दिन संध्या में अस्त होते सूर्य को और फिर अगले दिन प्रातः उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने की परंपरा है। अर्घ्य देने की इस प्रक्रिया में छठव्रती जल में खड़े होकर सूर्य देव को प्रसाद चढ़ाते हैं और प्रार्थना करते हैं। वैसे तो लोग बाग उगते सूर्य की ही पूजा करते हैं, पर महापर्व छठ के दौरान अस्ताचलगामी सूर्य की भी पूजा की जाती है।

छठ महापर्व की सबसे खास बात यह है कि इसमें मूर्ति पूजा का कोई स्थान नहीं है, बल्कि प्राकृतिक तत्वों और ऋतु फलों की पूजा की जाती है। इसमें प्रयुक्त होने वाले समस्त पूजन सामग्री प्राकृतिक होते हैं। प्रसाद के रूप में मुख्यतः गेहूं के आटे और गुड़ से बना ठेकुआ, ऋतु फल, गन्ना, नारियल आदि का उपयोग होता है। इस पर्व में व्रतधारी महिलाएं और पुरुष गंगा, यमुना, सरयू जैसी पवित्र नदियों के किनारे अथवा जलाशयों में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं।

अब तो जहां नदी और जलाशय नहीं हैं वहां, और साथ ही प्रदूषित नदियों की वजह से भी, लोग अपने अपने घरों की छतों पर अस्थायी रूप से बनाए गए छोटे छोटे जलाशय नुमा जगहों पर भी पूजा करने लगे हैं, पर उनकी श्रद्धा, विश्वास और आस्था में कोई कमी नहीं होती है।

यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण और परिवार एवं समाज के प्रति जिम्मेदारी का भी संदेश देता है। यही कारण है कि छठ पूजा ने धर्म और क्षेत्र की सीमाओं को लांघ कर अपनी अलग पहचान बनाई है। आज यह पर्व भारतीय संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर बन गयी है और विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने में सहायक सिद्ध हो रही है।

छठ महापर्व की महत्ता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अब इसे संयुक्त राष्ट्र में भी विशेष पहचान देने की मांग की जाने लगी है। वैश्विक स्तर पर यह पर्व भारतीय संस्कृति का एक अद्भुत उदाहरण बन चुका है।

✒️ मनीश वर्मा’मनु’