राम मंदिर का शिलान्यास : भारत की सभ्यता एवं संस्कृति पुरातन काल से विश्व को करती रही है प्रभावित
5 अगस्त 2020 एक एतिहासिक दिन के रूप में सदियों तक याद किया जाएगा। ये अलग बात है कि आज के दिन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के साथ ही लगभग 500 वर्षों से प्रतीक्षित राम मंदिर बनने की हिन्दू धर्मावलंबियों की उम्मीद का शिलान्यास भी हुआ है परंतु इससे भी अधिक इस दिन का महत्व इस बात से है कि आज विस्तारवादी विचारधारा को एक ठहराव का सामना करना पड़ा है। इस विस्तारवाद ने विश्व के कई देशों की न सिर्फ सीमाओं को बदला बल्कि वहाँ के निवासियों के सामाजिक मूल्यों एवं धार्मिक रिवाजों को भी बदल कर रख दिया । यहाँ तक कि ये विचारधारा जहाँ भी अपना पांव फैलायी वहां लोगों के धार्मिक स्थलों को भी अपने विस्तारवादी सोच का ग्रास बनाकर उन्हें रूपान्तरित कर दिया ।
यह विचारधारा आज भी उतना ही आक्रामक है और वक्त के साथ इसमें कोई बदलाव नहीं दिख पड़ता है। इसकी आक्रामकता का तत्काल उदाहरण पिछले सप्ताह तब मिला जब एक लोकतांत्रिक देश तुर्की ने छठी शताब्दी के विश्वविख्यात बाइजेंटाइन चर्च हागिया सोफिया को मस्जिद में तब्दील कर दिया । भारत के काश्मीर घाटी से काश्मीरी पंडितों को रातोरात बेघर होकर घाटी को छोड़न की घटना इसी विचारधारा के विस्तार का परिणाम थी। अरब के शुस्क रेगिस्तान से उपजी ये विचारधारा विश्व के कई भागों को अपने विस्तार का शिकार बनानी हुई जब भारत पहुँची तो भारतीय धरती पर इसे पुरजोर विरोध का सामना करना पड़ा और यह विरोध अब तक जारी है।
आज अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के साथ ही इस विरोध ने एक मंजिल पाई है साथ ही दुनिया को यह संदेश देने में सफल रहा है कि सर्वधर्म समभाव की विचारधारा को आत्मसात् करने वाला भारत कभी भी विस्तारवादी विचारधारा के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं कर सकता है। भारत की सभ्यता एवं संस्कृति पुरातन काल से विश्व को प्रभावित करती रही है परंतु इसने कभी भी किसी अन्य संस्कृति पर अपनी विचारधारा को जबरन थोपने का प्रयास नहीं किया। यही कारण है कि कई ऐसी संस्कृतियां जो आज अपने उद्भव स्थान में ही मृत प्राय हो गई हैं, भारत की धरती पर आज भी जिन्दा हैं और फलफूल रही हैं। भारतीय संस्कृति की सद्भावना और विश्व बन्धुत्व की भावना ही इसे विस्तारवादी ताकतों का विरोध करने की ताकत प्रदान करती है। आज राम जन्मभूमि पर राम मंदिर का शिलान्यास इस बात का द्योतक है मानव मूल्यों और भावनाओं से बेपरवाह विस्तारवादी ताकतो को उदारवादी विचारधारा के समक्ष एक न एक दिन समर्पन करना ही पड़ेगा।
सबको अपनाने वाला भारत मानव मूल्यों को रौदने वाले किसी भी विचारधारा से लोहा लेकर मानव मर्यादा को स्थापित कर सकने के लिए सदा अपना सीना तान कर लड़ता रहा है। आज के इस एतिहासिक घटना के साथ दुनिया की ये उम्मीद और अधिक पुख्ता हुई है कि आने वाले दिनों में भारत मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के द्वारा स्थापित आदर्शों का पालन करता रहेगा और इन आदर्शों से विश्व को आलोकित करेगा।