अमूल्य धरोहर को भावी पीढिय़ों को सौंपने में जुटे गायक अजय शर्मा
अपनी सांस्कृतिक पहचान को बचाए रखना और इस अमूल्य धरोहर को भावी पीढिय़ों को सौंपना कर्तव्य भी है-जिम्मेदारी भी। परंपराएं, मूल्य, रीति-रिवाज, संस्कृति किसी देश का स्वाभिमान हैं। ये जीवन का अटूट हिस्सा हैं। मूल्य ही तो हैं, जो कठिन से कठिन दौर में भी टूटने नहीं देते और इंसानियत का जज्बा बनाए रखते हैं।
भिवानी के गाँव बड़वा के श्रीमती शारदा देवी सत्यनारायण के सुपुत्र एवं पेशे से अध्यापक और गायक मास्टर अजय शर्मा कहते हैं कि, ‘परंपराएं बचेंगी, तभी संस्कृति और मनुष्यता बचेगी। हमें व्यस्तता के बीच भी अपनी परंपराओं और संस्कृति को बचाने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए। मैं मूल रूप से गाँव से हूं। हमारे युवा अवस्था के समय में त्योहार और राष्ट्रीय उत्सवों के कई दिन पहले से तैयारियां शुरू हो जाती थीं। हम उन दिनों हमारे शहीदों पर बेहतरीन नाटक प्रस्तुत करते थे, गांव के स्कूल में पढ़ते हुए ही 8वी कक्षा में विज्ञान अध्यापक श्री प्रदीप नील जी के प्रोत्साहन पे एक हास्य नाटक द्वारा स्टेज पर प्रथम बार प्रस्तुति दी। स्कूल जीवन मे ही प्रह्लाद भगत के नाटक में अभिनय किया।
समय के साथ- साथ गांव बड़वा में श्री राधा कृष्ण रामलीला में कथावाचन व अभिनय किया। अब तक कुल 14 बार रामलीला का मंचन हुआ है, उसमें हर बार भागीदारी रही है। समयानुसार इनकी भूमिका जरूर बदल गई है। अब कथा वाचक व निर्देशक की भूमिका भी निभाने लगे है। गायन में बचपन से रुचि थी लेकिन कभी उभरकर सामने नहीं आ पाए। श्री दलीप कुमार जी के सान्निध्य में हारमोनियम वादन सीखा और फिर धीरे-धीरे झांग आश्रम के कार्यक्रमों में वादन और गायन करने लगे। गाँव में हर बार होने वाली रामलीला के दौरान भी हारमोनियम वादन व चौपाइयों का गायन करते हैं।
व्यवसाय से सरकारी अध्यापक होने के नाते अध्यापन के साथ-साथ बड़वा स्कूल में नियुक्ति के दौरान जितने सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए उनकी तैयारी व स्टेज पर प्रस्तुति के दौरान हारमोनियम वादन इन्होने ही किया है, यही नहीं बाहर के सांस्कृतिक और राष्ट्रीय त्योहारों के अवसर पर जहाँ कहीं इनको बुलाया जाता है वहाँ ये निशुल्क अपना योगदान देते है और कार्यक्रम को बखूभी सफल बनाते है।
हाल ही में इनका यूट्यूब चैनल श्री राम कीर्तन मंडल के नाम से युवाओं के बीच छाया हुआ और बड़े चाव से पसंद और शेयर किया जा रहा है जिसमें इन्होने खुद की आवाज़ में अब तक के अपने गाये भजनों को विरासत के रूप में संरक्षित करने का प्रयास किया है। इनका कहना है कि वो ये कोशिश में है कि डीजे के इस भड़काऊं और अश्लील गानों के दौर में अपने भजनों के जरिये हमारी सांस्कृतिक विरासत को अगली पीढ़ियों के लिए बचाया जाए ताकि भविष्य में वे संरक्षित रह सके।
अपनी सफलता और प्रसिद्धि के लिए ये अपने साथियों के सहयोग और श्री दुर्गा मंदिर बड़वा, श्री झांग आश्रम बड़वा, श्री राधकृष्ण रामलीला मंच को प्रतिभा संवारने का मंच मानते है। ऐसे कलाकार धन्य है जो निशुल्क अपनी समाजिक-सांस्कृतिक को बचाने हेतु सेवाएं देते रहते हैं और अपनी तरफ से कुछ नहीं चाहते. हमारे युवाओं को ऐसे कलाकारों के निस्वार्थ प्रयास को सींचना चाहिए और ऐसे गायक कलाकारों के सृजनात्मक प्रयासों को अपनी परम्पराओं और सामजिक ताने-बाने में जोड़कर रखना चाहिए तभी इनकी भूमिका समाज में कल्याणकारी बदलाव ला पाएगी.
✍- डॉo सत्यवान सौरभ,
रिसर्च स्कॉलर, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट।