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गीति-धारा के अत्यंत मर्म-स्पर्शी कवि थे पं विशुद्धानंद-डाॅ. अनिल सुलभ

जयंती पर आचार्य विजय गुंजन को दिया गया ‘विशुद्धानंद स्मृति-सम्मान’, आयोजित हुई कवि-गोष्ठी ।

पटना, १३ जनवरी। ‘एक नदी मेरा जीवन’ लिखने वाले मर्म-स्पर्शी कवि विशुद्धानंद का संपूर्ण जीवन पर्वत की घाटियों से होकर अनेक वन-प्रांतों और पत्थरीली भूमि से गुजरती, बहती नदी सा ही था। संघर्षों और घटनाओं से भरा उनका जीवन उनके दर्द भरे गीतों में गूंजता हुआ प्रकट होता है। वे गीति-धारा के अत्यंत मर्म-स्पर्शी कवि, फ़िल्मकार और पटकथा-लेखक थे।
यह बातें शनिवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-सह-सम्मान समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि विशुद्धा जी एक पूर्णकालिक कलमजीवी साहित्य-सेवी थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन साहित्य और संस्कृति-कर्म को दिया। उनका संबंध सिनेमा और आकाशवाणी से भी रहा। उन्होंने फ़िल्मों और धारावाहिकों के लिए भी पटकथा और गीत लिखे। पाटलिपुत्र की महान विरासत पर लिखी गई उनकी धारावाहिक ‘पाटलिपुत्र में बदलती हवाएँ, सिहरती धूप’, नाट्य-साहित्य और बिहार को एक बड़ी देन है।

इस अवसर पर वरिष्ठ कवि आचार्य विजय गुंजन को ‘कवि विशुद्धानंद स्मृति सम्मान’ से अलंकृत किया गया। विशुद्धानंद जी द्वारा स्थापित सांस्कृतिक संस्था ‘आनन्दाश्रम’ के सौजन्य से आचार्य गुंजन को पाँच हज़ार एक सौ रूपए की सम्मान-राशि के साथ, वंदन-वस्त्र, पुष्प-हार और स्मृति-चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
स्व विशुद्धानंद के कवि-पुत्र प्रणव कुमार ने कहा कि मेरे पिता ने ही मुझमें सांस्कृतिक और साहित्यिक संस्कार डाले। छात्र-जीवन से ही उन्होंने मुझे गीत और नाटक लिखने की प्रेरणा दी और मेरी रचनाओं को परिमार्जित किया। उन्होंने जीवन में अनेक पीड़ाएँ झेली। आर्थिक-संकट झेलते हुए भी उन्होंने अपने सृजन को जारी रखा। उनकी अनेक कृतियाँ अप्रकाशित रह गयीं, जिन्हें ‘आनन्दाश्रम’ के माध्यम से प्रकाश में लाया जा रहा है।

आकाशवाणी में उच्च अधिकारी रहे वरिष्ठ कवि डा किशोर सिन्हा ने कहा कि विशुद्धानन्द जी के संघर्ष और वेदना को अत्यंत निकट से जानने का अवसर मिला। उनके आय का कोई निश्चित स्रोत नहीं था। लेखन ही एक मात्र साधन था। किस प्रकार उन्होंने अपने परिवार का पोषण और संतानों को शिक्षा दिलाकर योग्य बनाया, एक संघर्षपूर्ण कथा है। आकाशवाणी के लिए उन्होंने बहुत लिखा। वे अपनी रचनाओं के पात्रों के प्रति अत्यंत सजग रहते थे। वे अपने पात्रों में डूब कर लिखते थे। फ़िल्मों के लिए भी बहुत कुछ लिखा। पर प्रायः ही लोगों ने उनके साथ छल किया।
वरिष्ठ साहित्यकार डा रमेश पाठक, विशुद्धानन्द जी के दूसरे पुत्र प्रवीर विशुद्धानंद, अवध बिहारी सिंह, डा पंकज वासिनी, प्रो सुशील कुमार झा, बाँके बिहारी साव तथा डा आभा रानी ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि जय प्रकाश पुजारी, कुमार अनुपम, डा मीना कुमारी परिहार, ऋचा वर्मा, नरेंद्र कुमार, युगेश कुशवाहा ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डा नागेश्वर प्रसाद यादव ने किया।
सम्मेलन के प्रबंध मंत्री कृष्णरंजन सिंह, डा अशोक प्रियदर्शी, प्रो राम ईश्वर पंडित, राम प्रसाद ठाकुर, विजय कुमार दिवाकर, कल्पा जायसवाल, राज आनन्द, ओम् प्रकाश पाण्डेय, सुरेंद्र साह, मोहम्मद फ़हीम, नन्दन कुमार मीत, प्रभात कुमार, श्रीबाबू, संजय कुमार दिगम्बर जायसवाल समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।