सम्पादकीय

प्रियंका सौरभ की कलम से कविता- अक्सर ये है पूछता ?, मुझसे मेरा वोट !!

पंचायत लगने लगी, राजनीति का मंच !
बैठे हैं कुछ मसखरे, बनकर अब सरपंच !!

घोटालों के घाट पर, नेता करे किलोल !
लिए तिरंगा हाथ में, कुर्सी की जय बोल !!

अभिजातों के हो जहाँ, लिखे सभी अध्याय !
बोलो सौऱभ है कहाँ, वह सामाजिक न्याय !!

गली-गली में मौत है, सड़क-सड़क बेहाल !
डर-डर के हम जी रहे, देख देश का हाल !!

भ्रष्टाचारी कर रहे, रोज नए अब जाप !
आंखों में आंसू भरे, राजघाट चुपचाप !!

         प्रियंका सौरभ

बच पाए कैसे भला, अपना हिन्दुस्तान !
बेच रहे है खेत को, आये रोज किसान !!

ये कैसा षड्यंत्र है, ये कैसा है खेल !
बहती नदियां सोखने, करें किनारे मेल !!

शायद जुगनूं की लगी, है सूरज से होड़ !
तभी रात है कर रही, रोज नये गठजोड़ !!

कहाँ बचे भगवान से, पंचायत के पंच !
झूठा निर्णय दे रहें, सौरभ अब सरपंच !!

जिनकी पहली सोच ही, लूट,नफ़ा श्रीमान !
पाओगे क्या सोचिये, चुनकर उसे प्रधान !!

बनकर नेता गिन रहा, सौरभ किसके नोट !
अक्सर ये है पूछता ?, मुझसे मेरा वोट !!

बिकते कैसे आदमी, आलू-गाजर भाव !
देखना है देख तू, लड़कर एक चुनाव !!

प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,