पौराणिक कथाओं के आधार पर जानिए छठी इन्द्री के बारे में, इससे उत्पन्न हुई थी छठी मैया
अनूप नारायण सिंह
अभी तक आप पांच ज्ञानेंद्रियों के बारे में जानते और सुनते हैं. आज आपको हम पौराणिक कथाओं के आधार पर बताने जा रहे छठी इन्द्री के बारे में इससे उत्पन्न हुई थी छठी मैया. इसलिए इनके निराकार स्वरूप की पूजा की जाती है.
इस माता की पहली पूजा हर घर मे बच्चे के जन्म के छठे दिन होता है. मात नवजात शिशुओं की रक्षा करती है. छठ महापर्व की पुरातन गाथाओं में इसी माता का उल्लेख है. छठ पूजा को सूर्य षष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है.
सूर्य सभ्यता के इतिहास के पहले देवता माने जाते हैं. जिस तरह मिश्र में पिरामिड का निर्माण किया जाता था, उसी प्रकार निराकार देवी और सूर्य शक्ति का संचय करने के लिए भारत में पिरामिड रुपी छठी मैया के निराकार स्वरूप का निर्माण कर पूजा करने का विधान था. आज भी बिहार यूपी के कई इलाकों में पिरामिड का निर्माण कर छठी माता की पूजा की जाती है. जिसे स्थानीय बोलचाल की भाषा में सिरसोपता कहा जाता है.
बिहार के छपरा सीवान गोपालगंज मोतिहारी बेतिया इलाकों में आपको सड़क किनारे तालाब कुआ और नदी के समीप ऐसे पिरामिड छठी मैया के स्वरूप के रूप में नजर आ सकते हैं. छठ पर्व को लेकर मान्यता है कि महाराज प्रियव्रत नामक की कोई संतान नहीं थी. उन्होंने कश्यप ऋषि से संतान प्राप्ति के लिये कोई उपाय पूछा. तब ऋषि ने पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाने का सुझाव दिया.
प्रियव्रत ने यज्ञ किया जिसके बाद पत्नि मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया. लेकिन वह पुत्र मृत पैदा हुआ. तब प्रियव्रत ने भगवान से प्रार्थाना की जिसके बाद देव लोक से ब्रह्मा की मानस पुत्री प्रगट हुईं. मानस पुत्री ने बालक को स्पर्श कर उसे जीवित कर दिया.
महाराज प्रियव्रत ने देवी का आभार प्रकट करते हुए कई अनेक स्तुति की. देवी ने प्रसन्न होकर कहा- कि आप कोई ऐसी व्यवस्था करें कि पृथ्वी पर सदैव ही हमारी पूजा-अर्चना है. तभी महाराज प्रियवत ने अपने राज्य में छठ व्रत को करने की शुरूआत की जो की आज तक की जा रही है.
आज भी छठ पूजा में पूरे विधि-विधान से लोग छठी मैया को पूजा जाता है. छठ पर्व को लेकर एक अन्य कथा के मुताबिक, इस पर्व की शुरुआत अंगराज कर्ण से हुई थी. अंग प्रदेश वर्तमान भागलपुर में है जो बिहार में स्थित है.
अंगराज कर्ण के विषय में कथा है कि, यह पाण्डवों की माता कुंती और सूर्य देव की संतान है. कर्ण अपना आराध्य देव सूर्य देव को मानते थे. अपने राजा की सूर्य भक्ति से प्रभावित होकर अंग देश के निवासी सूर्य देव की पूजा करने लगे. धीरे-धीरे सूर्य पूजा का विस्तार पूरे बिहार और पूर्वांचल क्षेत्र तक हो गया.
माना जाता है कि कर्ण घंटों पानी में खड़े होकर सूर्योपासना करते थे. उसी से प्रभावित होकर छठ महापर्व मनाने की बात भी कही जाती है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व बिग गंगा चैनल के एंकर है)