हाईप्रोफाइल सीट है पटना साहिब, कायस्थ मतदाताओं का होता है निर्णायक वोट
पटना, बिहार की हाईप्रोफाइल सीट में शामिल पटना/ पटनासाहिब सीट कायस्थों का गढ़ रहा है। यहां कायस्थ मतदाता तय करते हैं कि पटना का सांसद कौन होगा।
बिहार की राजधानी पटना का पुराना नाम पाटलिपुत्र था। पवित्र गंगा नदी के दक्षिणी तट पर बसे इस शहर को लगभग 2000 वर्ष पूर्व पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाता था। वर्ष 1952 के पहले आम चुनाव में पाटलिपुत्र संसदीय सीट हुआ करती थी। इसके बाद पाटलिपुत्र सीट विलोपित हो गया और वर्ष 1957 में पटना लोकसभा सीट अस्तित्व में आई। आपातकाल के निरंकुश शासन के बाद 1977 में लोकसभा का चुनाव हुआ। कांग्रेस के खिलाफ देशभर में प्रचंड लहर बह रही थी। जनता पार्टी की तरफ लोग आशा भरी नजरों से देख रहे थे। जनता पार्टी ने पटना लोकसभा सीट पर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कायस्थ कुलीन परिवार में जन्में महामाया प्रसाद सिन्हा को उम्मीदवार बनाया था। महामाया प्रसाद सिन्हा ,भाषण देने में निपुण थे। जनसभाओं में जब वे युवा वर्ग को ‘मेरे जिगर के टुकड़ों’ कह कर संबोधित करते थे। वर्ष 1977 में पटना लोकसभा चुनाव में भारतीय लोक दल उम्मीदवार महामाया प्रसाद सिन्हा ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ((भाकपा) प्रत्याशी रामावतार शास्त्री को पराजित कर उनका विजयी रथ रोक दिया। इस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा को जनता का अपार जनसमर्थन मिला था। उन्हें तीन लाख 82 हजार 363 ( 76.61) प्रतिशत वोट मिले जब कि रामावतार शास्त्री को केवल 59 हजार 238 (11.87) प्रतिशत वोट ही मिले।यह पहला अवसर था, जब कायस्थ प्रत्याशी ने पटना संसदीय सीट की सियासी रणभूमि में अपना विजयी पताका लहराया। हालांकि वर्ष 1980 के आम चुनाव में भाकपा के राम अवतार शास्त्री ने जनता पार्टी के महामाया प्रसाद सिन्हा को पराजित कर दिया।
वर्ष 1984 के आम चुनाव में कायस्थ परिवार के ताल्लुक रखने वाले निर्दलीय प्रत्याशी भाजपा समर्थित उम्मीदवार लेफ्टिनेंट जनरल. श्रीनिवास कुमार सिन्हा (एस.के.सिन्हा) ने पटना लोकसभा से चुनाव लड़ा। इस चुनाव में श्री सिन्हा तीसरे नंबर पर रहे। कांग्रेस के सी.पी.ठाकुर ने भाकपा के राम अवतार शास्त्री को पराजित किया था।श्री सिन्हा वर्ष 1943 में सेना में शामिल हुए थे।उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में वर्मा इंडोनेशिया में तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय सेना का नेतृत्व किया था। श्री सिन्हा ,जम्मू-कश्मीर और असम के राज्यपाल और नेपाल में भारत के राजदूत भी रहे हैं।
वर्ष 1989 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पहली बार पटना में ‘केसरिया’ लहराया। पटना विश्वविद्यालय के तत्कालीन प्रोफेसर कायस्थ कुलीन परिवार में जन्में भाजपा प्रत्याशी श्री शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव ने कांग्रेस के सी.पी.ठाकुर को शिकस्त दी।डॉ. शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव निबंधकार और कवि भी थे, जिन्होंने हिंदी ,अंग्रेजी और भोजपुरी में कविता, जीवनियां, निबंध, साहित्यिक आलोचना और कई पुस्तकें लिखी। उन्हें पद्म श्री सम्मान से भी अंलकृत किया गया था। वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में पटना सीट पर जबर्दस्त चुनावी धांधली का आरोप लगा।जांच में गड़बड़ी पाए जाने के बाद चुनाव आयोग ने पटना का चुनाव रद्द कर दिया। वर्ष 1993 में पटना सीट पर उपचुनाव हुये तो जनता दल के राम कृपाल यादव ने भाजपा के शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव को पराजित किया।
वर्ष 2008 तक पटना में सिर्फ एक लोकसभा सीट हुआ करती थी लेकिन परिसीमन के बाद यहां दो सीटें हो गईं। एक पाटलिपुत्र (शहर के प्राचीन नाम पर आधारित) और दूसरी सीट पटना साहिब। परिसीमन के बाद लगातार तीन चुनाव 2009,2014 और 2019 तक पटनासाहिब संसदीय चुनाव में कायस्थ परिवार के प्रत्याशी का सिक्का चलता रहा है। वर्ष 2009 अस्तित्व में आया पटना साहिब का पहला संग्राम दो कायस्थ परिवार के प्रत्याशी के बीच सियासी संग्राम
का गवाह बना।वर्ष 2009 में पटनासाहिब सीट पर हुये चुनाव में भाजपा के टिकट पर बॉलीवुड के सुपरस्टार कायस्थ कुलीन परिवार में जन्में शत्रुध्न सिन्हा पहली बार राजधानी पटना की धरती पर चुनावी समर में उतरे। श्री सिन्हा के विरूद्ध कांग्रेस ने छोटे पर्दे के अमिताभ बच्चन कहे जाने वाले कायस्थ परिवार के ही शेखर सुमन को प्रत्याशी बना दिया। भाजपा के श्री सिन्हा ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद)के विजय कुमार को पराजित किया। कांग्रेस के शेखर सुमन तीसरे नंबर पर रहे। बिहारी बाबू के नाम से मशहूर शत्रुघ्न सिन्हा बिहार ही नहीं पूरे देश में भीड़ जुटाने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं। वर्ष 1992 में नई दिल्ली के उपचुनाव में भाजपा ने शत्रुघ्न सिन्हा को चुनाव में उतारा था। कांग्रेस ने फिर से राजेश खन्ना को ही चुनाव में उतारा।शत्रुध्न सिन्हा इस चुनाव में पराजित हो गये।इस तरह, अपने पहले चुनाव में शत्रुघ्न सिन्हा को हार का मुंह देखना पड़ा। शत्रुध्न सिन्हा ,अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और जहाजरानी मंत्री थे । श्री सिन्हा राज्यसभा सांसद भी रहे हैं।
वर्ष 2014 के आम चुनाव में भाजपा के श्री सिन्हा फिर चुनावी रणभूमि में उतरे। कांग्रेस ने यहां भोजपुरी सिनेमा के महानायक पूर्व मंत्री बुद्धदेव सिंह के पुत्र कुणाल सिंह को उम्मीदवार बनाया। जदयू इस चुनाव में राजग से अलग थी। जदयू ने मशहूर चिकित्सक कायस्थ परिवार से ही ताल्लुक रखने वाले पद्मश्री गोपाल प्रसाद सिन्हा को प्रत्याशी बना दिया। त्रिकोणीय मुकाबले में श्री सिन्हा फिर बाजी मार ले गये। कुणाल सिंह दूसरे जबकि गोपाल प्रसाद सिन्हा तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 2019 का चुनाव बेहद दिलचस्प साबित हुआ। पटनासाहिब संसदीय सीट एक बार फिर दो दिग्गज कायस्थ प्रत्याशी के बीच सियासी जंग का गवाह बना। एक तरफ थे कांग्रेस प्रत्याशी शत्रुध्न सिन्हा तो दूसरी तरफ थे बिहार में जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे स्वर्गीय ठाकुर प्रसाद के पुत्र रविशंकर प्रसाद।स्व. ठाकुर प्रसाद वर्ष 1977 में कर्पूरी ठाकुर मंत्रिमंडल में सदस्य भी थे। वर्ष 2019 में जब भाजपा ने श्री सिन्हा को पटनासाहिब से उम्मीदवार नहीं बनाया तो उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ कांग्रेस का हाथ थाम लिया। वहीं भाजपा ने यहां पूर्व केन्द्रीय मंत्री और अपने कद्दावर नेता रविशंकर प्रसाद को प्रत्याशी बना दिया। पटना लोकसभा सीट को कायस्थों का गढ़ माना जाता था। दोनों राजनेताओं के बीच सियासी लड़ाई काफी रोचक रही।श्री सिन्हा को उम्मीद थी उनका जलवा इस बार भी पटनासाहिब के मतदाताओं के बीच सर चढ़कर बोलेगा।वहीं, रविशंकर प्रसाद पहली बार चुनावी मैदान में उतरे थे, ऐसे में कायस्थों मतों के साधने के साथ-साथ भाजपा के परंपरागत वोटों को भी साधने की बड़ी चुनौती सामने थी। पहली बार लोकसभा के रण में उतरे श्री रवि शंकर प्रसाद ने श्री सिन्हा को पराजित कर सबकों चौका दिया।इस चुनाव में शत्रुघ्न सिन्हा को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। अपने विरोधियों को ‘खामोश’ करने वाले शत्रध्न सिन्हा को यहां की जनता ने ‘खामोश’ कर दिया। रविशंकर प्रसाद को छह लाख 07 हजार 506 वोट मिले थे। करीबी प्रतिद्वंदी शत्रुघ्न सिन्हा को श्री प्रसाद के मुकाबले में तीन लाख 22 हजार 849 वोट ही मिल पाए थे। बिहार के चर्चित चारा घोटाला में एक अधिवक्ता के रूप में मजबूती से पक्ष रखने के कारण देशभर में रवि शंकर प्रसाद की पहचान बनी। आयोध्या रामलला मुकदमे के तीन अधिवक्ताओं में से एक रविशंकर प्रसाद भी रहे हैं।रविशंकर प्रसाद संगठन से लेकर सरकार तक महत्वपूर्ण ओहदों पर रह चुके हैं। भाजपा की युवा शाखा से लेकर राष्ट्रीय प्रवक्ता बने। रविशंकर प्रसाद ,अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में कोयला एवं खनन, कानून और न्याय,और सूचना और प्रसारण मंत्री बने। वह नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में कानून और न्याय , संचार ,और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री भी रहे। वह राज्यसभा सांसद भी रहे हैं।
वर्ष 2024 के आम चुनाव में भाजपा के वर्तमान सांसद रवि शंकर प्रसाद एक बार फिर चुनावी संग्राम में उतरे हैं।हालांकि इस बार उनके सामने श्री शत्रुध्नन सिन्हा नहीं हैं। श्री सिन्हा आसनसोल से वर्ष 2022 में हुये उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस के सांसद बने थे। श्री सिन्हा ने इस बार भी आसनसोल सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा है।पटना साहिब संसदीय सीट कायस्थों का गढ़ कही जाती है। इसे भाजपा का वोट बैंक भी माना जाता है। क्षेत्र के दीघा, बांकीपुर, कुम्हरार एवं पटना साहिब में बड़ी संख्या में कायस्थ मतदाता हैं।बांकीपुर एवं कुम्हरार से भाजपा विधायक भी कायस्थ हैं। श्री रविशंकर प्रसाद के विरूद्ध पूर्व उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम के नाती, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और पूर्व सांसद मीरा कुमार के पुत्र अंशुल अभिजीत प्रत्याशी हैं। श्री अभिजीत की दादी भी राजनीतिक पृष्ठभूमि से आती थी।वह बिहार में छह बार विधायक और मंत्री भी रही है।
पटना लोकसभा सीट हीं नही बल्कि पटना की विधानसभा सीट पर भी कायस्थ परिवार के प्रत्याशी का सिक्का जोर से खनकता है। वर्ष 1952 के पहले
विधानसभा चुनाव में पटनासिटी-नौबतपुर कांग्रेस के बद्रीनाथ वर्मा विधायक बने। वह बिहार के पहले शिक्षा मंत्री भी रहे। अपने समय के महान साहित्य–सेवी, पत्रकार, प्राध्यापक, स्वतंत्रता सेनानी और बिहार के प्रथम शिक्षामंत्री आचार्य बदरी नाथ वर्मा का व्यक्तित्व और चरित्र अत्यंत प्रेरणास्पद और अनुकरणीय है। वे राजनीति में एक सशक्त साहित्यिक हस्तक्षेप थे। वर्ष 1957 में पटना साउथ से एक बार फिर ब्रदी नाथ वर्मा विधायक चुने गये। इसी वर्ष दानापुर से जगतनारायण लाल विधायक बने। वर्ष 1962 में पटना साउथ से एक बार फिर ब्रदी नाथ वर्मा विधायक चुने गये।पटना साउथ से कृष्ण बल्लभ सहाय (पूर्व मुख्यमंत्री) विधानसभा पहुंचे। वर्ष 1967 में पटना पश्चिम का चुनाव बेहद रोचक रहा। दो कायस्थ कुलीन परिवार के बीच राजनीतिक लड़ाई हुयी। जनक्रांति दल उम्मीदवार महामाया प्रसाद सिन्हा ने पूर्व मुख्यमंत्री कृष्ण बल्लभ सहाय को पराजित किया। महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री भी रहे हैं। वह वर्ष 1977 में भारतीय दल के टिकट पर पटना के सांसद भी बने। वर्ष 1969 में ए.के.सेन पटना पश्चिम से विधायक बनें। वर्ष 1972 में ठाकुर प्रसाद विधायक बनें। वह कर्पूरी ठाकुर की सरकार में मंत्री भी बनें। श्री ठाकुर प्रसाद के पुत्र रवि शंकर प्रसाद केन्द्र सरकार मंत्री, राज्यसभा सांसद और लोकसभा सांसद भी रहे हैं। वर्ष 1980 में पटना सेंट्रल से शिक्षाविद् शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव और पटना पश्चिम से रंजीत सिन्हा विधायक बनें। श्री शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव वर्ष 1989 में पटना के सांसद भी बने।पटना विश्वविद्यालय के तत्कालीन प्रोफेसर भाजपा प्रत्याशी श्री शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव ने कांग्रेस के सी.पी.ठाकुर को शिकस्त दी।डॉ. शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव निबंधकार और कवि भी थे, जिन्होंने हिंदी ,अंग्रेजी और भोजपुरी में कविता, जीवनियां, निबंध, साहित्यिक आलोचना और कई पुस्तकें लिखी। उन्हें पद्म श्री सम्मान से भी अंलकृत किया गया था। रंजीत सिन्हा बिहार सरकार में मंत्री भी रहे। वह ख्यातिप्राप्त डॉक्टर स्व डा आरएचपी सिन्हा के सुपुत्र हैं। वर्ष 1995 में पटना पश्चिम से नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा विधायक चुने गये। वर्ष 2000 में पटना पश्चिम से नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा फिर विधायक चुने गये। वर्ष 2005 फरवरी में पटना पश्चिम से तीसरी बार नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा विधायक चुने गये। पटना सेंट्रल से अरूण कुमार सिन्हा विधायक बनें।वर्ष 2005 अक्टूबर में भी पटना पश्चिम से नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा चौथी बार विधायक चुने गये। पटना सेंट्रल से अरूण कुमार सिन्हा दूसरी बार विधायक बनें। वर्ष 2010 में नवीन प्रसाद सिन्हा के पुत्र नितिन नवीन बांकीपुर से जबकि कुम्हरार से अरूण कुमार सिन्हा विधानसभा पहुंचे। वर्ष 2015 और वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में भी नितिन नवीन बांकीपुर से जबकि कुम्हरार से अरूण कुमार सिन्हा विधानसभा पहुंचे। श्री नितीन नवीन नीतीश सरकार में मंत्री हैं।
भारत की पुरातन संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन में कायस्थ समाज का अहम योगदान रहा है। कायस्थ समाज के राजनेता सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति समर्पित है। वे अपनी बुद्धि, कर्म, कौशल और ज्ञान के साथ देश की प्रगति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। बिहार में कायस्थ लंबे समय से भाजपा के परंपरागत वोटर माने जाते रहे हैं। भाजपा समय-समय पर कायस्थ समुदाय को संगठन में भी जगह देती रही है। बिहार में कृष्णवल्लभ सहाय पहले नेता थे, जो 1963 में बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे। कृष्णवल्लभ सहाय के बारे में कहा जाता है कि वह बिहार के सबसे अच्छे प्रशासनिक मुख्यमंत्री थे, लेकिन उसी दौर में राममनोहर लोहिया का गैर कांग्रेसवाद बिहार में तेजी पर था और 1967 के चुनाव में उनकी हार हो गई। बाद में एक और कायस्थ नेता महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बने। उमेश्वर प्रसाद वर्मा लंबे अरसे तक बिहार विधान परिषद के सभापति रहे ।