दूसरे दलों के नेताओं के आने का सिलसिला लगातार जारी – जाप स्वार्थ की राजनीति से अलग हटकर सेवा की राजनीति से ही समाज को विकल्प दिया जा सकता – पप्पू यादव
दूसरे दलों के नेताओं के आने का सिलसिला लगातार जारी – जाप स्वार्थ की राजनीति से अलग हटकर सेवा की राजनीति से ही समाज को विकल्प दिया जा सकता – पप्पू यादव
पटना 4 नवंबर 2019: जन अधिकार पार्टी लोकतांत्रिक के प्रति लोगों का आकर्षण दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहा है और समाज के सभी वर्ग इससे जुड़ रहे हैं, आज इसी क्रम में राष्ट्रीय जनता दल अति पिछड़ा प्रकोष्ठ के प्रदेश महासचिव तथा पंचायती राज प्रकोष्ठ के प्रदेश महासचिव विमल कुमार महतो , मोहम्मद इश्तियाक अहमद एवं संदीप कुमार सिंह अपने समर्थकों के जाप ( लो0 ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह पूर्व सांसद श्री राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के समक्ष जन अधिकार पार्टी लोकतांत्रिक की सदस्यता ग्रहण की।
इस अवसर पर पार्टी के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव एजाज़ अहमद, प्रदेश प्रधान महासचिव सूर्य नारायण साहनी, प्रदेश महासचिव सदस्यता सह प्रभारी संदीप सिंह समदर्शी ने माला पहनाकर सभी का पार्टी में स्वागत किया, और कहा कि इनके आने से पार्टी को मजबूती मिलेगी ।
राजद अति प्रकोष्ठ के प्रदेश महासचिव विमल कुमार महतो ने आरोप लगाया कि राजद में अति पिछड़ा को उपेक्षित भाव से देखा जाता है और वहां पर न तो राजनीतिक सम्मान है और न ही सामाजिक सम्मान सिर्फ दिखावे के लिए ही अति पिछड़ा समाज का संगठन मात्र है। इन्होंने कहा कि जिस तरह से पप्पू यादव लोगों के बीच हर दुख दर्द में शामिल होते रहे हैं और बिना किसी भेदभाव के सभी के मदद के लिए खड़े रहते हैं ,आज बिहार को ऐसे ही नेता की आवश्यकता है ।इन्होंने जिस प्रकार से पटना में जलजमाव के समय लोगों के लिए राहत का कार्य किया है यह राजनीति को एक नई दिशा का संकेत है और इसी काय॔ से प्रभावित होकर हम सभी आज जन अधिकार पार्टी लोकतांत्रिक में शामिल हुए हैं।
इस अवसर पर पप्पू यादव ने कहा कि पार्टी के एक एक नेता और कार्यकर्ता के मान सम्मान और उनको सामाजिक और राजनीतिक अधिकार दिलाने के लिए वह हर स्तर तक साथियों के साथ खड़े रहते हैं। साथ ही साथ कार्यकर्ताओं को भी आम जनों के दुख दर्द में अपने परिवार से अधिक जुड़कर उनके साथ सेवा और समर्पण के भाव से काम करना होगा तभी समाज को एक बेहतर राजनीतिक विकल्प मिल सकता है क्योंकि आज की राजनीति में सिर्फ स्वार्थ की बातें होती हैं जिस कारण लोगों का विश्वास राजनीतिक दलों से घटता जा रहा है।