कोरोना काल में डॉ मनुमुक्त ‘मानव’ की स्मृति में ऑनलाइन आयोजित की गयी कवि सम्मेलन और गोष्ठियां
क्या कोरोना काल में चल रही आभासी कवि सम्मेलनों की व्यवस्था तदर्थ ही है। कब तक इसका स्थाई स्वरूप ले पाना मुश्किल होगा। दिवंगत आईपीएस अधिकारी डॉ मनुमुक्त ‘मानव’ की स्मृति में गत शाम एक वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय कवि-सम्मेलन जिसमें भारत, नेपाल, कतर, यूएई, रूस, ब्रिटेन, नार्वे, कनाडा, अमेरिका, फिजी, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड सहित एक दर्जन देशों के कवियों ने काव्य-पाठ किया, एक ऐतिहासिक कदम है।
कोरोना काल में कवि सम्मेलन और गोष्ठियां भी ऑनलाइन आयोजित की जा रही
कोरोना काल में जिस तरह कार्यालयों की बैठकें और चर्चाएं ऑनलाइन होने लगी हैं, उसी तरह मनोरंजन का एक बड़ा साधन रहे कवि सम्मेलन और गोष्ठियां भी ऑनलाइन आयोजित की जा रही हैं। हरियाणा के मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट ने कोरोना काल में भी एक नया इतिहास रच दिया है। मनुमुक्त ट्रस्ट द्वारा दिवंगत आईपीएस अधिकारी डॉ मनुमुक्त ‘मानव’ की स्मृति में गत शाम एक वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें भारत, नेपाल, कतर, यूएई, रूस, ब्रिटेन, नार्वे, कनाडा, अमेरिका, फिजी, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड सहित एक दर्जन देशों के कवियों ने काव्य-पाठ किया।
कवि नरेश नाज़ अध्यक्ष, केबीएल सक्सेना मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे
आईबी के पूर्व सहायक निदेशक तथा पटियाला (पंजाब) के वरिष्ठ कवि नरेश नाज़ की अध्यक्षता में आयोजित इस कवि-सम्मेलन में ब्रिटिश गृहमंत्री के पूर्व सलाहकार तथा यूके हिंदी समिति, लंदन के अध्यक्ष केबीएल सक्सेना मुख्य अतिथि और वीबीएस पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर (उप्र) की कुलपति डॉ निर्मला एस मौर्य तथा सिंघानिया विश्वविद्यालय, पचेरी बड़ी (राज) के कुलपति डॉ उमाशंकर यादव विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
नारनौल के डॉ जितेंद्र भारद्वाज, चीफट्रस्टी डॉ रामनिवास ‘मानव’, डॉ पंकज गौड़, भिवानी (हरि) के प्रख्यात कवि डॉ रमाकांत शर्मा, जौनपुर (उप्र) की डॉ निर्मला एस मौर्य (न्यूजीलैंड) से प्रकाशित ‘भारत दर्शन’ वैब पत्रिका के संपादक रोहितकुमार हैप्पी,काठमांडू (नेपाल) की सुविख्यात कवयित्री और ‘हिमालिनी’ पत्रिका की यशस्वी संपादिका डॉ श्वेता दीप्ति, सिएटल (अमेरिका) की कवयित्री डॉ मीरा सिंह, पटियाला (पंजाब) के वरिष्ठ कवि नरेश नाज़, ऑस्लो’, नार्वे से जुड़े सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’, जाने-माने दोहाकार डॉ रामनिवास ‘मानव’ काठमांडू (नेपाल) की डॉ श्वेता दीप्ति और महेंद्रनगर (नेपाल) के हरीशप्रसाद जोशी, ओस्लो (नार्वे) के डॉ सुरेशचंद्र शुक्ल जुड़े।
अगर दूसरा पहलूँ देखे तो प्रत्यक्ष श्रोताओं से मिलनेवाली वाहवाही की कमी तो ऐसे सम्मेलन में अखरती है। लेकिन तकनीक से तालमेल बैठाकर समय के साथ कदमताल करना भी जरूरी है। आज घरों में बंद लोग ज़ूम-फेसबुक लाइव के जरिए हास्य कविताओं का आनंद ले रहे हैं, और कवियों को पारिश्रमिक भी ऑनलाइन मिल रहा है। ऐसे बड़े और पेड कार्यक्रम ज्यादातर सरकारी-अर्द्धसरकारी या निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा अपने कर्मचारियों का मनोरंजन करने के लिए किए जाते हैं। जिनका आनंद ज़ूम या फेसबुक लाइव पर लोग घर बैठे ले सकते हैं।
हाल ही में करीब एक दर्जन देशों के कवियों की गूगल गोष्ठी आयोजित कर चुके मनुमुक्त मानव मेमोरैल ट्रस्ट के चीफ डॉ रामनिवास मानव मंचीय कविताओं को गोष्ठी में पढ़ी जानेवाली कविताओं से अलग मानते हैं। उनका मानना हैं कि जिस तरह शास्त्रीय संगीत प्रस्तुत करनेवाले अक्सर आंखें मूंदकर मन से आनंद लेते हैं और उन्हें सामने सभागार में बैठे लोगों से मतलब नहीं रह जाता। ठीक उसी तरह अच्छी कविता भी अंतर्मन से निकलती है। वह किसी की तालियों की मोहताज नहीं होती।