भारत से बाढ़ की प्राकृतिक त्रासदी,कमजोर आपदा प्रबंधन!
पानी के उत्प्लावन से दिल्ली का सदैव बुरा हाल रहा है। दिल्ली शहर में वर्षा के पानी के एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में में जल भराव से तीन युवा छात्रों की मौत ने छात्र जगत में हाहाकार मचा दिया है, सरकार अब जाकर कार्यवाही और सुधार कार्य कर रही है, नुकसान तो बड़ा हुआ है खैर जब जागो तब सवेरा हुआ ।भारत में कई वर्षों से भीषण प्राकृतिक वर्षा के फल स्वरुप बाढ़ भूस्खलन और नदियों में उफान आने से उत्तरांचल ,उत्तराखंड, दिल्ली और पंजाब भीषण त्रासदी झेल रहे हैं और बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु
भी हो गई है।विश्व में कई देशों में अतिवृष्टि से बाढ़ का प्रकोप होता है लैंडस्लाइडिंग भी होती है पर सर्वाधिक मृत्यु भारत में ही होती है। भारत में भूकंप के झटके भी लगते हैं कई बार भूकंप भी आता है और जान माल की हानि होती है।
यह ऐसा तो है नहीं कि अति वर्षा कई सालों में एक बार होती हो, वर्षा, बाढ़ तथा लैंडस्लाइडिंग का प्रकोप हर वर्ष अखबारों में हम पढ़ते हैं और लोगों की मृत्यु होती है तो ऐसे में केंद्र तथा राज्य सरकारों को आपस मैं सामंजस्य कर इस त्रासदी तथा विपदा का पहले से प्रबंध करने की आवश्यकता होनी चाहिए जिससे आमजन को जान माल का कम से कम नुकसान हो सके ।आपदा सदैव अनअपेक्षित घटना होती है। जो मानवीय नियंत्रण से बाहर तथा प्राकृतिक व मानवीय कारकों द्वारा मूर्त रूप दी जाती है। प्राकृतिक आपदा अल्प समय में बिना किसी पूर्व सूचना के घटित होती है, जिससे मानव जीवन के सारे क्रियाकलाप अवरुद्ध हो कर,जान और माल की बड़ी हानि होती है ।आपदा की गहनता, विशालता एवं निरंतरता मानव जीवन तथा समाज, देश को बड़ी हानि पहुंचाते हैं, एवं उस देश की आर्थिक स्थिति में गहरी चोट करते हैं। इन प्राकृतिक आपदाओं से देश की प्रगति पर चोट पहुंचती है। तथा राष्ट्र को आर्थिक रूप से बहुत पीछे खींच कर ले जाती है।
आपदा प्रबंधन में जापान से सीख ली जा सकती है। क्योंकि जापान आपदा प्रबंधन में विश्व में अग्रणी देश माना जाता है। जापान पृथ्वी के ऐसे क्षेत्र में अवस्थित है, जहां भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाएं सदैव आती रहती हैं। जापान में आपदा प्रबंधन की अत्याधुनिक तकनीक को याकोहामा रणनीति कहा जाता है। जापान में आपदा प्रबंधन की साल भर नियमित रूप से मॉनिटरिंग कर एक्सरसाइज की जाती रहती है, एवं आपदाओं पर निरंतर निगरानी तथा नजर रखी जाती है,एवं इसके निदान के लिए पूर्व से ही सुनियोजित योजना बनाकर नागरिकों को सुरक्षित कर लिया जाता है। भारत को भी इसी तरह आपदा प्रबंधन को अपनाकर हमें बाढ़, अतिवृष्टि, लैंडस्लाइडिंग तथा भूकंप से पूरी क्षमता कथा विशेषताओं के साथ सामना करना चाहिए।
आपदाओं के प्रति मानवीय सभ्यता के संदर्भ में समाज के आर्थिक सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग को ज्यादा प्रभावित करती है। एवं समाज का सबसे संवेदनशील तबका यानी वृद्ध व्यक्ति, महिलाएं, बच्चों, दिव्यांग लोगों को प्राकृतिक आपदाओं से सबसे ज्यादा खतरा बना रहता है। आपदा के समय सबसे ज्यादा निम्न आय वर्ग का व्यक्ति तथा मजदूर तबके का व्यक्ति सबसे ज्यादा प्रभावित होकर उसकी दिनचर्या समूह रूप से छिन्न-भिन्न हो जाती है, एवं आर्थिक साधन भी नष्ट हो जाते हैं, जिससे उसे आजीविका का एक बड़ा भय सताने लगता है।
भारत के भू भाग का लगभग 58% क्षेत्र भूकंप की संभावना वाला क्षेत्र है, जिसमें हिमालयिन क्षेत्र,पूर्वोत्तर राज्य, गुजरात का कुछ क्षेत्र, अंडमान निकोबार द्वीप समूह भूकंप की दृष्टि से सबसे सक्रीय क्षेत्र रहें है। देश के 65 से 68% भूभाग पर कभी कम कभी ज्यादा भीषण रूप से सूखा पड़ता है, इसी तरह भारत के पश्चिमी और प्रायद्वीपीय राज्य में मुख्यतः शुष्क तथा अर्ध शुष्क न्यून नमी वाले क्षेत्र सूखे से सदैव प्रभावित रहते हैं। बाढ़ से प्रभावित भूमि का विस्तार क्षेत्र देश के 12% है, यानी 7 करोड़ हेक्टेयर जमीन में भूकंप आने की संभावना सदैव बनी रहती है। हिमालय क्षेत्र देश के पर्वतीय क्षेत्र मैं भूस्खलन की गंभीर समस्या की संभावना सदैव बनी रहती है। देश के विशाल तटवर्ती क्षेत्र में चक्रवात तथा सुनामी की भयावह स्थिति की संभावना सदैव बनी रहती है।अब भारत में विश्व के साथ-साथ करोना संक्रमण की भयानक महामारी से प्रभावित होकर हजारों लाखों नागरिकों की जान गवा कर इस आपदा से जंग लड़ रहा है, यह कोविड-19 की महामारी या आपदा प्राकृतिक है या मानव निर्मित यह तो भविष्य ही बताएगा, किंतु इस महामारी ने पूरे वैश्विक स्तर पर आकस्मिक रूप से मानव जीवन में मृत्यु का तांडव मचा के रख दिया है। ऐसी ही अनपेक्षित आपदाओं का पूर्वानुमान अथवा आकलन किया जाना पहले से संभव नहीं हो सकता है। ऐसे में राष्ट्रीय अन्य योजनाओं के साथ-साथ आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विषय पर अत्यधिक सावधानी पूर्वक योजना तथा विभाग बनाने चाहिए, देश में जापान जैसे देश की तरह आपदा प्रबंधन से निपटने के लिए अत्याधुनिक आपदा प्रबंधन सिस्टम को तैनात कर तैयार रखने की आवश्यकता होगी।
भारत को आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विभाग को चुस्त-दुरुस्त तथा अत्याधुनिक तकनीक से युक्त रखने की आवश्यकता है। ऐसे में भारत में मध्यम दर्जे का या निम्न दर्जे का आपदा प्रबंधन सिस्टम किसी भी काम का ना रहेगा, एवं इससे भारी जानमाल की हानि होने की संभावना सदैव बनी रहेगी। भारत में आपदा प्रबंधन के लिए 1990 में कृषि मंत्रालय के अंतर्गत डिजास्टर मैनेजमेंट सेल स्थापित किया गया था। लेकिन 1993 में लातूर के भूकंप तथा 1998 में मालपा के भूस्खलन तथा 1999 में ओडिशा में सुपर साइक्लोन तथा 2001 में भुज के भूकंप के बाद देश में एक मजबूत आपदा प्रबंधन की व्यवस्था की जरूरत को महसूस करते हुए जे,सी, पंत जी की अध्यक्षता में हाई पावर कमेटी की रिपोर्ट में एक सुव्यवस्थित तथा व्यापक सिस्टम तथा विभाग की स्थापना की आवश्यकता प्रतिवेदित की गई थी। 2002 में आपदा को देश की आंतरिक सुरक्षा का मामला मानते हुए आपदा को गृह मंत्रालय के अंतर्गत समाविष्ट किया गया। आपदा प्रबंधन के इतिहास में 2005 में एक बड़ा परिवर्तन लाया गया भारत सरकार ने आपदा को अपनी कार्ययोजना के एक चक्रीय क्रम के रूप में प्रबंधित किया, जिसमें आपदा आ जाने के बाद इसके बचाव, नुकसान की भरपाई, निदान तथा आपदा आने के पूर्व की तैयारी तथा योजना को मूर्त रूप देने का एक सुनियोजित तरीका तैयार किया गया था। आपदा से खतरे का स्तर सभी इंसानों के लिए सदैव एक जैसा होता है। किंतु समाज के विभिन्न वर्गों में खतरे से निपटने तथा जूझने की क्षमता अलग-अलग होती है। निम्न वर्ग का तबका अन्य लोगों की अपेक्षा आपदा से ज्यादा प्रभावित होता है। अतः सरकार को गरीब तथा वंचित वर्ग के तबके के लिए आपदा प्रबंधन में विशेष प्रावधान दिया जाना चाहिए। आपदाओं के प्रबंधन एवं अनुसंधान व त्वरित कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान तथा राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई बल का गठन किया गया है। किसी खतरनाक आपदा की स्थिति में रासायनिक, जैविक, परमाणु विकिरण तथा अन्य प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदा के संबंध में विशिष्ट कार्यवाही के निर्वहन का उत्तरदायित्व है। इस संस्था ने बंगाल तथा उड़ीसा के तटीय क्षेत्र में आई सुनामी में काफी बड़ी संख्या में लोगों की जान भी बचाई है। चक्रवाती तूफान से निपटने में हमारे समुचित प्रयासों ने यह सिद्ध कर दिया है कि हाल के वर्षों में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। आपदा प्रबंधन सिस्टम को पहले से ही सावधान तथा सचेत रहकर पूरी की पूरी तैयारी कर लेनी चाहिए थी ।अगर आपदा प्रबंधन सिस्टम को लगातार मॉनिटर किया जाता रहना चाहिए।भारत को आपदा प्रबंधन के सिस्टम पर फिर से आंकलन कर एक नई व्यूह रचना बनाकर गरीब तबके निचले व्यक्ति तथा समग्र रूप से मानव जाति की सुरक्षा के लिए नए-नए उपाय करने चाहिए।
संजीव ठाकुर, स्तम्भकार,चिंतक, रायपुर छत्तीसगढ़,
कविता,
संजीव-नी।।
नफरतों से प्यार का नही रास्ता बनता ,
लालच,लोभ से कोई नही वास्ता बनता।
जहां राग, द्वेष और दुश्मनी व्याप्त हो,
ऐसे में कोई सच्चा नही रिश्ता बनता।
कौन किसी का दुखड़ा सुनता है यहां,
ऐसे में कोई किसी से नही वास्ता बनता।
ऊपरी तौर पर मिलते , सब अच्छे से,
दिलों से दिल का रास्ता नहीं मिलता।
हर तरफ सन्नाटा अकेलापन क्यों है,
भाई भाई से खास नही रिस्ता रखता।
रिश्ते, प्यार, सहानुभूति अब हवा हो गई ,
दो मीठे शब्द बोलने वाला नही सच्चा मिलता।
कैसे दिखावटी रिश्ते बच गए हैं,
अपनों से सच्चा कोई नही वास्ता रखता।
प्यार, मोहब्बत,नाते, रिश्ते खो गए सब।
मोहब्बत का कोई शब्द अब सस्ता नहीं मिलता।
बूढ़ा आदमी भी तरसता सुनने को बच्चों के शब्द,
मौत तो आनी ही है,पर जिंदगी का नही रास्ता मिलता।
संजीव ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़,
नोट- आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं।