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गर्मी के मौसम में इस तरह  करें मिल्की मशरूम की खेती, लागत से 10 गुणा अधिक होगी कमाई

मशरूम की खेती की तरफ लोगों को रुझान काफी तेजी से बढ़ रहा है. सबसे खास बात है कि बिना खेत के भी आप मशरूम उगा सकते हैं. कम जगह में खेती और लागत से कई गुना अधिक मुनाफा होने के चलते किसान मशरूम की खेती की तरफ रुख कर रहे हैं. बेहतर प्रबंधन और प्रशिक्षण के साथ अगर आप मशरूम की खेती करते हैं तो यह आपके लिए कमाई का शानदार जरिया बन सकता है. मशरूम की खेती के लिए आप कृषि विज्ञान केंद्र से मदद और प्रशिक्षण ले सकते हैं.

वैसे तो मशरूम की हजारों की किस्में हैं, लेकिन उसमें कुछ खास ही खाने लायक हैं. अलग-अलग राज्यों के लिए वहां की जलवायु के हिसाब से कुछ किस्मों को उत्पादन के लिए सबसे अच्छा माना जाता है.

अगर बिहार की बात करें तो यहां पर ओयस्टर मशरूम, बटन मशरूम और मिल्की मशरूम की खेती अच्छी होती है. ओयस्टर मशरूम की खेती मार्च और अप्रैल के बाद नहीं होती है. इसीलिए हम आज आपको गर्मी के मौसम में खेती के लिए उपयुक्त मिल्की मशरूम के बारे में बताने जा रहे हैं.

मिल्की या दूधिया मशरूम

गर्मी के मौसम में मिल्की या दूधिया मशरूम की खेती आसानी से की जा सकती है. अगर आप व्यायवसायिक रूप से इसकी खेती करते हैं तो अच्छी कमाई भी होगी. मिल्की मशरूम को कैलोसाइबी इंडिका भी कहा जाता है. इसके फैलाव के लिए 28-38 डिग्री सेल्सियस तापमान और नमी 80 से 90 प्रतिशत होनी चाहिए. ऊंचे तापमान में भी यह अच्छी पैदावार देता है.

मशरूम उत्पादन के लिए जरूरी सामग्री

दूधिया मशरूम के उत्पादन के लिए एक अंधेरे कमरा, स्पॉन यानी बीज, भूसा/कुटी (पुआल), हाइड्रोमीटर, स्प्रेइंग मशीन, वजन नापने वाली मशीन, कुट्टी काटने वाली मशीन, प्लास्टिक ड्रम एवं शीट, वेबिस्टीन एवं फॉर्मलीन, पीपी बैग और रबड़ बैंड इत्यादि की जरूरत पड़ती है.

दूधिया मशरूम की खेती की तैयारी?

मशरूम की इस किस्म को भूसा, पुआल, गन्ने की खोई आदी पर आसानी से उगाया जा सकता है. आपको एक बात का ध्यान रखना होता है कि यह बरसात में भिगा हुआ न हो, वरना पैदावार प्रभावित हो सकती है.

दूधिया मशरूम को उगाने के लिए गेहूं का भूसा या धान के पुआल को सबसे उपयुक्त माना जाता है. इस्तेमाल से पहले भूसा या पुआल को उपचारित करना जरूरी है. भूसा या पुआल को काट कर आप जूट या कपड़े की छोटी थैलियों में भरकर गर्म पानी में कम से कम 12 से 16 घंटे तक डुबोकर रखते हैं ताकि भूसा या पुआळ पानी अच्छी तरह से सोख ले. इसके बाद गर्मा पानी में इसे डाल देते हैं.

खेती की जगह पर भूसा डालने से पहले फर्श को धोकर या पॉलीथीन शीट बिछाकर 2 प्रतिशत फॉर्मलीन के घोल का छिड़काव किया जाता है.

अगर आप इस विधि से भूसा को उपचारित नहीं करना चाहते हैं तो आप रासायनिक तरीका भी अपना सकते हैं. ज्यादा मात्रा में भूसा को उपचारित करने पर गर्म पानी वाले विधि में खर्च ज्यादा आता है. रासायनिक विधि उसके मुकाबले कम खर्च वाली है.

रासायनिक उपचार के लिए किसी सीमेंट के नाद या ड्रम में 90 लीटर पानी में 10 किलो ग्राम भूसा भिगा दें. एक बाल्टी में 10 लीटर पानी लें और उसमें 10 ग्राम वेबिस्टीन व 5 मिली फार्मलीन मिलाएं. इस घोल को ड्रम में भिगोए गए भूसा में डाल दें. ड्रम को पॉलीथीन से ढककर उस पर कोई वजनी सामान रख दें. 12 से 16 घंटे बाद ड्रम से भूसा को बाहर निकाल कर फर्श पर फैला दें ताकि अतिरिक्त पानी निकल जाए. इसके बाद आपका भूसा दूधिया मशरूम की खेती के लिए तैयार हो जाता है.

बुआई के लिए एक किलो ग्राम उपचारित भूसा में 40 से 50 ग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. 16 सेंटी मीटर चौड़ा और 20 सेंटी मीटर ऊंचा पीपी बैग में पहले उपचारित भूसा डाल दें. बीज डालने के बाद इसे उपचारित भूसा से ढक दें. एक पीपी बैग में दो तीन सतह बुआई की जा सकती है. यह प्रक्रिया पूरी करने के बाद आप पीपी बैग को बांध कर अंधेरे कमरे में रख दें. ध्यान रखें कि 2 से 3 सप्ताह तक तापमान 28-38 डिग्री तक रहे और 80-90 प्रतिशत नमी बनाएं रखें.

कुछ दिन आप देखेंगे कि आपका बैग कवक जाल से भर गया होगा. इसके बाद आप इस पर केसिंग कर दें. केसिंग के लिए पुराना गोबर सबसे उपयुक्त माना जाता है. केसिंग प्रक्रिया के बाद देखरेख करना जरूरी हो जाता है. नमी बनाए रखने के लिए पानी का छिड़काव भी कर सकते हैं.

उपज की कटाई

मशरूम का छत्ता जब 5 से 7 सेंटी मीटर हो जाए तो इसे तोड़ लें. तैयार मशरूम को पीपी बैग में रख लें. एक किलो ग्राम उपचारित भूसा से आपको एक किलो ग्राम ताजा दूधिया मशरूम प्राप्त हो जाता है. अच्छी पैदावार के प्रति किलो ग्राम 20 से 25 रुपए खर्च आता है. वहीं बिक्री 200 से लेकर 400 रुपए प्रति किलो के भाव पर होती है. इस तरह किसान मिल्की मशरूम की खेती से काफी मुनाफा कमा सकते हैं.