दिल्ली डायरी : सावन में महादेव
कमल की कलम से !
दिल्ली के शिव मंदिरों की सैर की अगली कड़ी.
आज हम आपको दिल्ली के एक ऐसे मन्दिर की सैर करा रहे हैं जो है तो बहुत ही महत्वपूर्ण शिव मन्दिर पर इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है.
नीली छतरी मन्दिर
दिल्ली के निगम बोध घाट पर स्थित नीली छतरी शिवालय को देश के प्राचीन और ऐतिहासिक शिव मंदिरों में से एक माना जाता है. इसका संबंध पांडवों से बताया जाता है. कहते हैं कि महाभारत युद्ध के बाद जब युधिष्ठिर सम्राट हुए तब भारतवर्ष को एक सूत्र में बांधना उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी. समस्या का समाधान निकालने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अश्वमेध यज्ञ करने की सलाह दी. भगवान श्रीकृष्ण की सलाह और सहयोग से युधिष्ठिर ने युमना नदी के तट पर शिवलिंग की स्थापना की और हवन कुंड का निर्माण किया. यहीं पर उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया.
यहाँ पर ही युधिष्ठिर ने महादेव का शिवलिंग स्थापित किया और हवन कुंड बनवाया. इसी मंदिर में अश्वमेध यज्ञ को पूरा करके युधिष्ठिर चक्रवर्ती सम्राट हुए जिसकी सीमा वर्तमान पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक थी.
कश्मीरी गेट में रिंग रोड पर सलीमगढ़ किले के पास यमुना बाजार खंड में स्थित नीली छतरी मन्दिर तक पहुंचना एक दुरूह कार्य है. यह मंदिर यमुना नदी के तट के किनारे और सड़क के किनारे स्थित है. सड़क पर चल रहे यातायात के कारण मंदिर दोनों तरफ से ढंका हुआ प्रतीत होता है. मंदिर में प्रवेश करने के लिए या तो सड़कों का उपयोग किया जाता है या बाजार का. एक तरफ महात्मा गांधी सड़क आपको मंदिर के शीर्ष पर गुंबद तक ले जाता है जबकि दूसरी सड़क लोहा (लोहेला ब्रिज) सड़क के रूप में जाना जाता है.
मंदिर का मुख्य प्रवेश सड़क पर है.
मंदिर में कारों के लिए कोई पार्किंग स्थान नहीं है और यदि कोई अपने वाहन से मंदिर जाता है तो उन्हें हनुमान के श्मशान के पास पार्किंग में कार पार्क करना होगा. यह मन्दिर से लगभग 200 मीटर की दूरी पर है.
कहा जाता है कि नीली छतरी मंदिर की स्थापना युधिष्ठिर ने अपने भाईयों संग की थी.
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में अश्वमेघ्यग का आयोजन किया गया था.
मंदिर के इतिहास के बारे में वहां पर किसी तरह की खास बात कोई नहीं बता सका.
हालांकि, इस मंदिर को पांडवन आयु मंदिर कहा जाता है.
नीली छतरी एक गुंबद है जो नीली रंगीन टाइल्स से ढकी हुई है. इसलिए इसे नीली छतरी मंदिर कहा जाता है.
मंदिर की नीली छतरी को लेकर ऐसी भी कहानी है कि पहले इस पर टाइल्ल की जगह नीलम पत्थर जड़ा हुआ था. इस पर जब चांद की दूधिया रोशनी पड़ती थी तो नीले रंग की किरण निकलती थी जिससे इसे नीली छतरी के नाम से प्रसिद्धि मिली हुई थी.
मुझे यह नीला रंग देख कर कामाख्या मन्दिर की याद आ गयी। उसके गुम्बद भी नीले रंग के ही हैं.
इस मंदिर की एक विशेषता यह है कि मंदिर के गुंबद के नीचे भगवान शिव की पूजा की जाती है और मंदिर के ऊपर अन्य देवता की पूजा की जाती है.
ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को भगवान और देवी की प्राथमिकता होती है इसलिए भगवान केशवमल बावली को भगवान नीली छतरी के नाम से जाना जाता है.
यह भी माना जाता है कि यदि किसी व्यक्ति ने पांच लाडो और सिगरेट की पेशकश की तो उसकी इच्छा सच हो जाती है.
पुजारी ने बताया कि मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय महा शिवरात्रि के त्यौहार का समय है जब इसे शानदार ढंग से सजाया जाता है.
इसके आस पास कई मंदिर हैं जो जमुना के किनारे स्थित हैं.
यहाँ जाने के लिए आप पुरानी दिल्ली रेल स्टेशन से या लाल किला के पास लाल किला बस स्टैंड से पैदल भी जा सकते हैं.
100 रुपये लेकर ऑटो रिक्शावाला भी आपको यहां पहुंचा देता है. यद्यपि बाद में पता चला कि लाल किला से यहाँ तक का ऑटो किराया सिर्फ 40 रुपये ही है.
इसके लिए नजदीकी मेट्रो स्टेशन रेड फोर्ट ही है. वहाँ से आप पैदल ही यहाँ पहुंच सकते हैं.
यहाँ से 706 नम्बर की बस गुजरती है.
जय महादेव !