कैमूरख़बरखेलबिहारराज्य

मदद की आस में टूट रही सांस

जो प्रतिभा कुश्ती के दंगल में आज बिहार व देश का नाम रोशन करती वो प्रतिभा आज भूख बेबसी के कारण कोरोना काल में दूसरे के खेतों में दिहाड़ी मजदूरी करने को विवश है.ऐसी प्रतिभाओं को संरक्षित करने के लिए ना सरकार न प्रशासन और ना कोई संगठन सामने आया है.बिहार के कैमूर जिले के दुर्गापुर प्रखंड की रहने वालीं अनु गुप्ता और प्रिया गुप्ता राष्ट्रीय स्तर की कुश्ती खिलाड़ी हैं। दोनों बहनों को ‘बिहार की दंगल गर्ल्स’ भी कहते हैं, मगर गरीबी के कारण पर्याप्त डाइट (पोषक भोजन) तक नहीं मिल पाता है। पिता भगवानशाह बेरोजगार हैं। अनु आसपास के इलाकों में दंगल लड़ती हैं और इनामी राशि से जैसे-तैसे अपने और बहन के लिए डाइट का इंतजाम करती हैं।
अनु कहती हैं, ‘कुश्ती खिलाड़ी को डाइट में दूध, अंडे, फल, सोयाबीन, काजू-बादाम जैसे पौष्टिक भोजन की जरूरत होती है, मगर यहां तो परिवार का पेट पालना मुश्किल है। किसी महीने दंगल जीतने पर हजार-डेढ़ हजार रुपये मिल जाते हैं, तो कभी-कभी दूध और फल मिल जाता है।’ घर की रोजी-रोटी चले, इसके लिए अनु गांव में ही ब्यूटी पार्लर भी चलाती हैं। साथ ही, बीए-पार्ट वन में पढ़ाई भी कर रही हैं।
अनु कहती है, ‘इंटर पास करने के बाद राज्य सरकार की ओर से आगे की पढ़ाई के लिए मिली 10 हजार रुपये की राशि से ही ब्यूटी पार्लर खोला है। हालांकि, ग्रामीण इलाका होने के कारण कम ही महिलाएं आती हैं।’ बकौल अनु, ‘गरीबी हमारे प्रदर्शन के आड़े आ रही है। हम बहनों को कुश्ती अभ्यास के लिए मैट तक की सुविधा नहीं है। गांव से थोड़ी दूरी पर बिछियां में आवासीय कुश्ती प्रशिक्षण केंद्र है, मगर वहां सिर्फ लड़कों को ही जाने की अनुमति है। इन चुनौतियों के बावजूद हमारा लक्ष्य बिहार और देश के लिए राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मेडल जीतना है।’