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मीरा चरित्र- संत ने कहा, ” बेटी, अब ठाकुर जी तुम्हारे पास रहना चाहते है”

भाग ०२

दूसरे दिन प्रातः काल मीरा उन संत के निवास पर ठाकुर जी के दर्शन हेतु जा पहुँची। मीरा प्रणाम करके एक तरफ बैठ गई। संत ने पूजा समापन कर मीरा को प्रसाद देते हुए कहा, ” बेटी, तुम ठाकुर जी को पाना चाहती हो न!” मीरा: बाबा, किन्तु यह तो आपकी साधना के साध्य है (मीरा ने कांपते स्वर में कहा)।

बाबा : अब ये तुम्हारे पास रहना चाहते है- तुम्हारी साधना के साध्य बनकर, ऐसा मुझे इन्होने कल रात स्वप्न में कहा कि अब मुझे मीरा को दे दो। ( कहते कहते बाबा के नेत्र भर आए)। इनके सामने किसकी चले ?

मीरा: क्या सच? (आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता से बोली जैसे उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ)।

बाबा: (भरे कण्ठ से बोले ) हाँ । पूजा तो तुमने देख ही ली है। पूजा भी क्या- अपनी ही तरह नहलाना-धुलाना, वस्त्र पहनाना और श्रंगार करना, खिलाना-पिलाना। केवल आरती और l धूप विशेष है।

मीरा: किन्तु वे मन्त्र, जो आप बोलते है, वे तो मुझे नहीं आते।

बाबा :मन्त्रों की आवश्यकता नहीं है बेटी। ये मन्त्रो के वश में नहीं रहते। ये तो मन की भाषा समझते है। इन्हें वश में करने का एक ही उपाय है कि इनके सम्मुख ह्रदय खोलकर रख दो। कोई छिपाव या दिखावा नहीं करना। ये धातु के दिखते है पर है नहीं। इन्हें अपने जैसा ही मानना।

मीरा ने संत के चरणों में सिर रखकर प्रणाम किया और जन्म जन्म के भूखे की भाँति अंजलि फैला दी । संत ने अपने प्राण धन ठाकुर जी को मीरा को देते हुए उसके सिर पर हाथ रखकर गदगद कण्ठ से आशीर्वाद दिया -“भक्ति महारानी अपने पुत्र ज्ञान और वैराग्य सहित तुम्हारे ह्रदय में निवास करें, प्रभु सदा तुम्हारे सानुकूल रहें।”

मीरा ठाकुर जी को दोनों हाथों से छाती से लगाए उन पर छत्र की भांति थोड़ी झुक गई और प्रसन्नता से डगमगाते पदों से वह अन्तःपुर की ओर चली।

क्रमश: