आपद्धर्म के रूप में श्रीकृष्णाजन्मष्टमी किस प्रकार से मनाए
‘कोरोना विषाणुओं से प्रभावित क्षेत्रों में जहां संचार बंदी (लॉकडाउन) है, वहां एकत्र आकर पूजा करना संभव नहीं होगा । प्रति वर्ष अनेक स्थानों पर ‘श्रीकृष्ण जन्माष्टमी’ का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है । इसलिए एकत्र न आते हुए अपने-अपने घरों में ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पूजा कैसे कर सकते हैं, इसका इस लेख में प्रमुख रूप से विचार किया है ।
1. भगवान श्रीकृष्ण के पूजन का समय
भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का समय रात्रि 12 होता है । इसलिए उससे पहले ही पूजन की तैयारी करके रखें । संभव हो, तो रात्रि 12 बजे श्रीकृष्ण जन्म का सोहर लगाएं ।
2. श्रीकृष्ण का पूजन
2 अ. श्रीकृष्ण जन्म का सोहर समाप्त होने पर श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा चित्र की पूजा करें ।
2 आ. षोडशोपचार पूजन : जिनके लिए भगवान श्रीकृष्ण की ‘षोडशोपचार पूजा’ करना संभव है, वे उस प्रकार पूजा करें ।
2 इ. पंचोपचार पूजन : जिनके लिए भगवान श्रीकृष्ण की ‘षोडशोपचार पूजा’ करना संभव नहीं है, वे ‘पंचोपचार पूजा’ करें । पूजा करते समय ‘सपरिवाराय श्रीकृष्णाय नमः’ यह नाममंत्र बोलते हुए एक-एक उपचार भगवान श्रीकृष्ण को अर्पण करें । भगवान श्रीकृष्ण को दही-चिवडा और माखन का भोग लगाएं तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की आरती करें । (पंचोपचार पूजा : गंध/चंदन, हलदी-कुमकुम, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य, इस क्रम से पूजा करें ।)
3. श्रीकृष्ण की मानसपूजा
जो किसी कारणवश भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्यक्ष पूजा नहीं कर सकते, वे भगवान श्रीकृष्ण की ‘मानसपूजा’ करें । (‘मानसपूजा’ का अर्थ प्रत्यक्ष पूजा करना संभव न हो, तो पूजन के सर्व उपचार मानस रूप से (मन से) भगवान श्रीकृष्ण को अर्पण करना ।)
जो किसी कारणवश भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्यक्ष पूजा नहीं कर सकते, वे भगवान श्रीकृष्ण की ‘मानसपूजा’ करें । (‘मानसपूजा’ का अर्थ प्रत्यक्ष पूजा करना संभव न हो, तो पूजन के सर्व उपचार मानस रूप से (मन से) भगवान श्रीकृष्ण को अर्पण करना ।)
4. पूजन के उपरांत नामजप करना
पूजन होने के उपरांत कुछ समय तक भगवान श्रीकृष्ण का नामजप ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ करें ।
पूजन होने के उपरांत कुछ समय तक भगवान श्रीकृष्ण का नामजप ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ करें ।
5. अर्जुन के समान निस्सीम भक्ति निर्माण करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण को मनःपूर्वक प्रार्थना करना
इसके पश्चात भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में दिए हुए वचन ‘न मे भक्तः प्रणश्यति ।’ अर्थात ‘मेरे भक्त का नाश नहीं होता’ का स्मरण कर हममें अर्जुन के समान असीम भक्ति निर्माण होने के लिए भगवान श्रीकृष्ण को मनःपूर्वक प्रार्थना करें ।