ज्योतिष और धर्म संसार

दीपावली महोत्सव

जीवन की पांच महत्वपूर्ण बातों के महत्व को ध्यान दिलाने वाला महापर्व दीपावली

दीपावली महोत्सव धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक चलता है। इन पाँच दिनों के त्योहारों में पहले दिन आयुर्वेद और औषधियों के देवता धनवंतरि की पूजा की जाती है। दूसरे दिन यानी चतुर्दशी तिथि पर धर्मराज यम की पूजा और दीपदान किया जाता है। इसके अगले दिन यानी कार्तिक माह की अमावस्या पर लक्ष्मी जी, की पूजा के साथ दीपावली मनाई जाती है। दिवाली के दूसरे दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर गो-वर्धन पूजा होती है। इसके अगले दिन यानी द्वितिया को भाई-दूज के त्योहार के साथ ही दीपावली महोत्सव पूरा हो जाता है।

दीपावली महाेत्सव क्यों

०५ दिनों तक चलने वाले दीपावली महोत्सव मनाने का कारण ये है कि हर व्यक्ति को जीवन की पाँच महत्वपूर्ण बातें पता हो। इस महोत्सव का हर दिन जीवन की एक महत्वपूर्ण बात समझाता है। इस महोत्सव में सेहत, मृत्यु, धन, प्रकृति, प्रेम और सद्भाव का संदेश छुपा है। ये पाँच आवश्यक बातें जीवन को पूर्ण बनाती हैं। दीपावली पर्व पर लक्ष्मी पूजा सिर्फ धन और सोना-चांदी प्राप्ति की भावना से न की जानी चाहिए।

लक्ष्मी का मतलब रुपया, पैसा, साेना-चांदी, के भण्डार से होने लगा है, लेकिन वास्तविकता इससे अलग है। महालक्ष्मी से अभिप्राय होता है सुख, शांति और समृद्धि से। यदि किसी के पास बहुत सारा धन है लेकिन सुख एवं शांति न हो तो उसे धनलक्ष्मी से सम्पन्न नहीं कहा जा सकता। यही समझाने के लिए दीपावली को पांच भागों में विभक्त किया गया है।

०१ धन्वन्तरि त्रयोदशी

दीपावली पूजन की शुरुआत धनतेरस यानी धन्वन्तरि त्रयोदशी से होती है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को समुद्र मंथन के परिणामस्वरूप भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। भगवान धन्वन्तरि की पूजा के पीछे यह रहस्य है कि सुख, शांति एवं समृद्धि की अनुभूति के लिए सर्वप्रथम स्वस्थ रहना ज़रूरी है। इसलिए मुद्रा प्राप्ति, धन प्राप्ति से पहले आरोग्य के देवता कीपूजा की जाती है ताकि हम निरोग एवं स्वस्थ रहें।

०२ रूप चौदस व हनुमान जी का जन्मोत्सव

इस दिन गृहिणियां उबटन लगाकर स्नान करती हैं। लक्ष्मी – पूजन से पूर्व गृह – लक्ष्मी का शृंगार आवश्यक है। जब घर में मेहमान आते हैं तब भी स्वयं को ठीक से रखती हैं और जिस दिन साक्षात् लक्ष्मी जी आने वाली हों उससे पहले स्वरूप को निखारकर रखना आवश्यक है। इसलिए यह दिन रूप चौदस कहलाता है। इस दिन शाम को धर्मराज यम के लिए दीपदान किया जाता है। दीपदान के साथ मृत्यु और उसके देवता यमराज को याद किया जाता है।ऐसा करने के पीछे भावना होती है कि सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य पृथ्वी पर ही रह जाता है। मृत्यु ही अन्तिम गति है। ऐसा इसलिए किया जाता है , कि हम लक्ष्मी जी से उतनी ही कामना करें जितना जीवन यापन के लिए आवश्यक है। इससे मनुष्य मन में धन – संपदा और समृद्धि के प्रति मोह उत्पन्न नहीं होता है।

आज ही के दिन रात्रि के ठीक बारह बजे श्री हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। आज जो भी मनुष्य चिरंजीवी भगवान श्री हनुमानजी का सविधि ध्यान पूजन अर्चन करता या करवाता है उसकी सारी मानो कामना बिना मांगे पूर्ण होती है।
और वह जीव प्रभु श्री राम की भक्ति को अंततः प्राप्त कर लेता है उसकी दुर्गति नष्ट हो जाती है।
यह उक्ति सत्य ही है – सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना
दूसरी – और देवता चित्त न धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई।
हो सके तो आज दुनियां में सर्व प्रथम व स्वयं भगवान श्री राम के द्वारा अयोध्या जी में रामदूत जी का प्रतिष्ठित स्थल श्री हनुमान गढ़ी का दर्शन अवश्य करें।

०३ महालक्ष्मी पूजन

दीपावली की पूजा में लक्ष्मीजी के साथ श्री गणेश और मां सरस्वती भी होती हैं। रहस्य यह है , कि लक्ष्मीजी से अभिप्राय हम धन-दौलत से ही समझते हैं लेकिन धन दौलत कभी भी सुख, शान्ति सुकून एवं समृद्धि प्रदान नहीं कर सकती। यह आवश्यक है कि हमारी बुद्धि सही रहे तथा अच्छे -बुरे का ज्ञान होता रहे। इसलिए लक्ष्मी – पूजन से पूर्व बुद्धि के देवता गणेश जी एवं ज्ञान की देवी सरस्वती जी का पूजन करते हैं ताकि सद्बुद्धि के साथ ज्ञान-पूर्वक धन का सदुपयोग कर सकें। लक्ष्मी – पूजन में भी विष्णु के साथ बैठी कमलासना लक्ष्मी की ही पूजा करते हैं। दूसरी उलूकवाहिनी लक्ष्मी होती हैं जो सदैव अंधकार चाहती हैं। अत: उलूकवाहिनी लक्ष्मी जी की पूजा नहीं करनी चाहिए।

०४ गोवर्धन पूजा

धनतेरस से स्वस्थ रहने की तथा रूप चौदस पर दरिद्रता बाहर करने की प्रेरणा ले कर महालक्ष्मी का पूजन किया जाता है। यह लक्ष्मी पृथ्वी ही है और इसके लिए प्रकृति की पूजा एवं रक्षा ज़रूरी है जिसके निमित्त इन्द्र देवता की पूजा के स्थान पर भगवान श्री कृष्ण के निर्देश से गो-वर्धन पर्वत को प्रतीक बनाकर प्रकृति एवं पर्यावरण का संरक्षण करने के मंतव्य के साथ यह पूजा की जाती है। इस दिन किसान बैल, गाय आदि की पूजा करते हैं। ये त्योहार प्रकृति का सम्मान करना सिखाता है।

०५ यम द्वितीया

कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की द्वितीया को यम द्वितीया और भैया – दूज के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथानुसार इस दिन भगवान यम बहन यमुना के घर मिलने जाया करते हैं। यमलोक के राजा यमराज के प्रमुख सहायक चित्रगुप्त की पूजा भी, इसी दिन की जाती है। चित्रगुप्त यमराज का सारा लेखा-जोखा रखते हैं इसलिए सभी व्यापारी लोग दवात कलम एवं बही खाते की पूजा इस दिन करते हैं। वर्ष-भर का हिसाब भी लिख कर रखा जाता है। इस तरह यह त्योहार प्रेम सद्भाव और सहायता का भी प्रतिक माना गया है।

 

आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी
श्री धाम श्री अयोध्या जी
9044741252