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18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक रहेगा अधिकमास, जानिए क्या होता है मलमास

मलमास शब्द की व्युत्पत्ति

मलिसन् म्लोचति गच्छतीति मलिम्लुच:

अर्थात मलमास।

वस्तुतः मलमास का सम्बंध ग्रहों की चाल से है। पञ्चाङ्ग के अनुसार अधिक मास या मल मास का आधार सूर्य और चंद्रमा की चाल से स्पष्ट है। सूर्य वर्ष 365 दिन और लगभग 6 घण्टे का होता है वहीं चन्द्रवर्ष 354 दिनों का माना जाता है। इन दोनों वर्षों के बीच 11 दिनों का अंतर होता है यही अंतर तीन वर्षों में एक माह के बराबर हो जाता है हर तीन वर्ष में एक चन्द्रमास आता है इसे ही मलमास कहते हैं।

सूर्य के बृहस्पति की धनुराशि में गोचर करने से खरमास, मलमास शुरू होता है । यह स्थिति मकरसंक्रान्ति तक रहती है। इस कारण मांगलिक कार्य नहीं होते है। जैसे ही सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है तभी से मलमास आरम्भ हो जाता है और इसी के साथ शादी विवाह एवं अन्य मांगलिक कार्य निषेध हो जाते है।

मलमास में सूर्य धनु राशि का होता है। ऐसे में सूर्य का बल वर को प्राप्त नहीं होता। इस वर्ष १८ सितम्बर २०२० से १६ अक्टूबर २०२० तक मलमास रहेगा। वर को सूर्य का बल और वधू को बृहस्पति का बल होने के साथ ही दोनों को चंद्रमा का बल होने से ही विवाह के योग बनते हैं। इस पर ही विवाह की तिथि निर्धारित होती है।

मलमास शुरू हो जाने से विवाह संस्कारों पर एक माह के लिए रोक लग जाती है । साथ ही अनेक शुभ संस्कार जैसे जनेऊ संस्कार, मुंडन संस्कार, गृह प्रवेश भी नहीं किया जाएगा। हमारे भारतीय पंचांग के अनुसार सभी शुभ कार्य रोक दिए जाएंगे। मलमास को कई लोग अधिमास, मलमास, और पुरुषोत्तममास के नाम से जानते हैं।

हिन्दू धर्म ग्रंथों में इस पूरे महीने मल मास में किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही है।जब गुरु की राशि में सूर्य आते हैं तब मलमास का योग बनता है। वर्ष में दो मलमास पहला धनुर्मास और दूसरा मीन मास आता है। सूर्य के गुरु की राशि में प्रवेश करने से विवाह संस्कार आदि कार्य निषेध माने जाते हैं। विवाह और शुभ कार्यों से जुड़ा यह नियम मुख्य रूप से उत्तर भारत में लागू होता है जबकि दक्षिण भारत में इस नियम का प्रभाव शून्य रहता है। मद्रास, चेन्नई, बेंगलुरू में इस दोष से विवाह आदि कार्य मुक्त होते हैं।

मलमास में व्रत का महत्व

जो व्यक्ति मलमास में पूरे माह व्रत का पालन करते हैं उन्हें पूरे माह भूमि पर ही सोना चाहिए. एक समय केवल सादा तथा सात्विक भोजन करना चाहिए. इस मास में व्रत रखते हुए भगवान पुरुषोत्तम अर्थात श्री रामजी का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए तथा मंत्र जाप करना चाहिए. श्रीपुरुषोत्तम महात्म्य की कथा का पठन अथवा श्रवण करना चाहिए. श्री रामायण का पाठ या रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जप करना चाहिए. साथ ही श्रीविष्णु सहस्र नाम स्तोत्र का पाठ करना कोटि गुना मंगलप्रद होता है।

मल मास के आरम्भ के दिन श्रद्धा भक्ति से व्रत तथा उपवास रखना चाहिए. इस दिन पूजा – पाठ का अत्यधिक महात्म्य माना गया है. मलमास मे प्रारंभ के दिन दानादि शुभ कर्म करने का फल अक्षुण होता है. जो व्यक्ति इस दिन व्रत तथा पूजा आदि कर्म करता है वह सीधा परम् गति आप्त करता है ।और भगवान श्री राम के चरणों में स्थान पाता है.।

।।मल मास में शिवोपासना का विशेष महत्व।।

मल मास में शिवोपासना का विशेष महत्व होता है । क्यों कि भगवान शिव ही त्रिलोकी में विष का रोधन अपने कण्ठ में किया जब सम्पूर्ण त्रिलोकी हलाहल विष की विषाग्नि से भस्मी विभूत होने को उद्यत हो चुका था तब भूतभावन परम् वैष्णवाचार्य भगवान शिव ने ही विष को कण्ठ में धारण किया था तब से वे नील कण्ठ कहलाये।

मलमास या पुरुषोत्तम मास में भगवान शिव अपने आराध्य भगवान श्री राम के ध्यान में विशेष निरत रह कर उभय स्वरूप से स्वयं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड कटाह की परिरक्षा करते है। अस्तु इस पुरुषोत्तम महा में शिव वास प्रायः विचार कम किया जाता है।

इस माह में भगवान शिवकी उपासना से भगवान विष्णु विशेष प्रसन्न होते हैं ।इस माह में महामृत्युंजय , रुद्राभिषेक, शिवमहापुराण कथा श्रवण व दान शिवोपासना का अत्यधिक महत्व होता है।

इस पुरुषोत्तम माह में पुराणपुरुषोत्तमः भगवान श्री राम की नगरी अयोध्या में भगवान श्री राम के दर्शन व दुर्लभ वास एवं भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शनों का अनन्त फल शस्त्रों में बताया गया है।

मल मास की समाप्ति पर स्नान, दान तथा जप आदि का अत्यधिक महत्व होता है. इस मास की समाप्ति पर व्रत का उद्यापन करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी श्रद्धानुसार दानादि करना चाहिए. इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह है कि मलमास माहात्म्य की कथा का पाठ श्रद्धापूर्वक प्रात: एक सुनिश्चित समय पर करना चाहिए.

इस मास में रामायण, गीता तथा अन्य धार्मिक व पौराणिक ग्रंथों का श्रवण ,पाठ ,दान आदि का भी विशेष महत्व माना गया है.। द्रव्य दान,वस्त्रदान, अन्नदान, गुड़ और घी से बनी वस्तुओं का दान करना अत्यधिक शुभ माना गया है।

आचार्य स्वमी विवेकानन्द
ज्योतिर्विद वास्तुविद व सरस् श्री रामकथा ,श्रीमद्भागवत कथा प्रवक्ता श्री धाम श्री अयोध्या जी
संपर्क सूत्र:-9044741252