कामदा एकादशी व्रत २३ अप्रैल २०२१ शुक्रवार को रखें, पढ़ें पूजा विधि, मुहूर्त, पारण समय और महत्व
कामदा एकादशी व्रत
हिन्दू नववर्ष की पहली एकादशी कामदा एकादशी व्रत एवं पूजा विधि, मुहूर्त, पारण समय और महत्व
एकादशी तिथि शुरुआत
२२ अप्रैल २०२१, गुरुवार को रात्रि ११:३५ मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त
२३ अप्रैल २०२१, शुक्रवार को रात्रि में ०९:४७ मिनट पे
एकादशी व्रत पारण का समय
२४ अप्रैल २०२१, शनिवार को सुबह ०५:४७ से ०८:२४ तक
विशेष
एकादशी का व्रत सूर्योदय तिथि २३ अप्रैल २०२१, शुक्रवार को ही रखें
हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। ऐसे में हिन्दू नव संवत्सर की पहली एकादशी चैत्र शुक्ल जो २३ अप्रैल २०२१ दिन शुक्रवार को है।
चैत्र शुक्ल एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है ।
कामदा एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है और एकादशी की कथा सुनते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कामदा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा से प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। काम, क्रोध, लोभ और मोह जैसे पापों से मुक्ति के लिए चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत किया जाता है। कामदा एकादशी का व्रत बहुत ही फलदायी होता है, इसलिए इसे *फ़लदा एकादशी* भी कहते हैं।
कामदा एकादशी व्रत का महत्व
कामदा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु की कृपा से कामदा एकादशी का व्रत करने वाले को बैकुण्ठ जाने का सौभाग्य मिलता है। इस व्रत को करने से प्रेत योनी से भी मुक्ति मिलती है।
कामदा एकादशी व्रत पूजा विधि
एकादशी के अगले दिन यानी कि दसवीं के शाम को सूर्यास्त से पहले खाना खा ले और एकादशी व्रत का मन से संकल्प लें. फिर एकादशी के दिन प्रात: काल में स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ सुथरे वस्त्र पहन लें। फिर दाहिने हाथ में जल लेकर कामदा एकादशी व्रत का संकल्प लें। इसके पश्चात पूजा स्थान पर आसन ग्रहण करें और एक चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें। फिर चंदन, अक्षत्, फूल, धूप, गंध, दूध, फल, तिल, पंचामृत आदि से विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा करें। अब कामदा एकादशी व्रत की कथा सुनें। पूजा समापन के समय भगवान विष्णु की आरती करें। बाद में प्रसाद लोगों में वितरित कर दें।
स्वयं दिनभर फलाहार करते हुए भगवान श्रीहरि का स्मरण करें। शाम के समय भजन कीर्तन करें तथा रात्रि जागरण करें।एकादशी के पूरे दिन एवं रात्रि को।
अगले दिन द्वादशी को स्नान आदि के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। किसी ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दें। इसके पश्चात पारण के समय में
पारण कर व्रत को पूरा करें।
कामदा एकादशी से जुड़ी कथा
एक बार राजा युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कामदा एकादशी के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की। तब राजा की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने
उन्हें विधिवत कथा सुनाई।
एकादशी कथा
प्राचीन काल में एक नगर था, उसका नाम रत्नपुर था। वहां के राजा बहुत प्रतापी और दयालु थे, जो पुण्डरीक
के नाम से जाने जाते थे। पुण्डरीक
के राज्य में कई अप्सराएं और गंधर्व निवास करते थे।इन्हीं गंधर्वों में एक जोड़ा ललित और ललिता का भी था।
ललित तथा ललिता में अपार स्नेह था।
एक बार राजा पुण्डरीक की सभा में नृत्य का आयोजन किया गया जिसमें अप्सराएं नृत्य कर रही थीं,और गंधर्व गीत गा रहे थे। उन्हीं गंधर्वों में ललित भी था जो अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा था। गाना गाते समय वह अपनी पत्नी को याद करने लगा जिससे उसका एक पद खराब हो गया।
कर्कोट नाम का नाग भी उस समय सभा में ही बैठा था। उसने ललित की इस गलती को पकड़ लिया और राजा पुण्डरीक को बता दिया।
कर्कोट की शिकायत पर राजा पुंडरीक ललित पर बहुत क्रुद्ध हुए और उन्होंने उसे राक्षस बनने का श्राप दे दिया।
राक्षस बनकर ललित जंगल में घूमने लगा। इस पर ललिता बहुत दुखी हुयी और वह ललित के पीछे जंगलों में विचरण करने लगी।जंगल में भटकते हुए ललिता श्रृंगी ऋषि के आश्रम में पहुंची।तब ऋषि ने उससे पूछा तुम इस वीरान जंगल में क्यों परेशान हो रही हो। इस पर ललिता ने अपनी व्यथा सुनाई।
श्रंगी ऋषि ने उसे कामदा एकादशी का व्रत करने को कहा।
कामदा एकादशी के व्रत से ललिता का पति ललित श्राप मुक्त हो गया और वापस गंधर्व रूप में आ गया। इस तरह दोनों पति-पत्नी फिर स्वर्ग लोक जाकर वहां खुशी-खुशी रहने लगे।
वशिष्ठ मुनि कहते हे की राजन्! इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है. संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है. इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी
ज्योतिर्विद, वास्तुविद
श्रीरामकथा व्यास श्री धाम श्री अयोध्या जी
संपर्क सूत्र:-9044741252