सम्पादकीय

दिल्ली के होकर रह जाना आसान नहीं, रविवारीय में आज पढ़िए “दिल्ली दूर नहीं है”

कहते हैं, “दिल्ली दिल वालों की है।” कहने सुनने में ये पंक्तियां जितनी सहज और आसान लगती हैं, इनके मायने उतने ही गंभीर अर्थ रखते हैं। समय बदला है, वैश्वीकरण ने दुनिया को सिमटा

मनीश वर्मा, लेखक और विचारक

दिया है, लेकिन दिल्ली की ओर बढ़ने की यात्रा में जो दूरी है, वह केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और मानसिक भी है। दिल्ली आना एक बात है, पर यहां के माहौल में रच बस जाना और दिल्ली का होकर रह जाना बिल्कुल अलग।

दिल्ली किसी को बाहें फैलाकर नहीं स्वीकारती ; यह शहर आपको जांचता है,परखता है। एक अदृश्य कसौटी पर कसता है। जब आप इस कसौटी पर खरे उतरते हैं, तभी आप दिल्ली की धड़कनों का हिस्सा बन पाते हैं।
यहां कदम रखते ही एक अजीब सी अनुभूति होती है—एक मिश्रित अहसास, जिसमें उम्मीदें होती हैं और अनिश्चितता भी।
यह शहर हर आगंतुक से एक सवाल पूछता है: क्या तुम सच में यहां टिक पाओगे ? अथाह फैला लोगों का सैलाब। एक डर पैदा कर देता है। ऐसा लगता है मानो कहीं हम ???? भीड़ का हिस्सा बनना तो एक अलग बात है। कहीं इन भीड़ में हम खो ना जाएं। हमारा वजूद ही ना बच पाए। मन सशंकित और आशंकित तो रहता ही है।

दिल्ली का तिलिस्म अद्भुत है। यह एक मायानगरी है, जहां खो जाना आसान है, और अपनी पहचान बनाना बहुत ही कठिन। मुंबई को मायानगरी का दर्जा दिया गया है, लेकिन जो बात दिल्ली में है, वह मुंबई में नहीं। आखिर, दिल्ली सत्ता और शक्ति का केंद्र है। यहां आकर हर व्यक्ति अपनी महत्वाकांक्षाओं को साकार होते देखना चाहता है। यह शहर सिर्फ भारत की भौगोलिक राजधानी नहीं, बल्कि सपनों की भी राजधानी है। सपने बिकते हैं यहां पर, पर चुनिंदा खरीददार ही उन्हें खरीद पाते हैं।

लुटियंस के बसाए हुए दिल्ली की गलियों में घूमते हुए यह महसूस होता है कि यहां हर ईंट में एक कहानी छुपी है। शायद लुटियंस साहब ने भी यह नहीं सोचा होगा कि उनके बनाए शहर में लोग इस तरह से जीवन जीने की जद्दोजहद करेंगे। तमाम मुश्किलों के बावजूद यहां के होकर रह जाना चाहेंगे। हर कोई इस शहर का हिस्सा बनना चाहता है, क्योंकि यहां टिक जाना मानो सफलता की अंतिम सीढ़ी चढ़ने जैसा है।

दिल्ली उन लोगों की है जिनके दिल बड़े हैं, सोच बड़ी है। तंगदिल और छोटी सोच वाले यहां टिक ही नहीं सकते। फुटपाथों पर भी उन्हें जगह मिलना मुश्किल है। यह शहर छोटे सपनों और छोटी महत्वाकांक्षाओं का नहीं है। यहां सिर्फ वे ही टिकते हैं जो खुद को साबित कर पाते हैं, जो संघर्षों से लड़कर जीतना जानते हैं।

दिल्ली का आकर्षण सिर्फ इसकी भव्यता में नहीं, बल्कि इसकी जटिलता में भी है। यहां हर कोई अपनी जगह बनाने की कोशिश करता है—चाहे वह आम आदमी हो या कोई खास। यहां टिक जाना एक उपलब्धि है, और टिक कर अपनी पहचान बना लेना, एक सपना। यही वजह है कि हर कोई यहां आकर यही चाहता है कि किसी भी तरह वह यहीं का होकर रह जाए।

दिल्ली दूर नहीं है, लेकिन दिल्ली के होकर रह जाना आसान भी नहीं। यही इस शहर की सबसे बड़ी खूबसूरती है—और यही सबसे बड़ी चुनौती भी।
हां एक बात जो मैंने व्यक्तिगत तौर पर महसूस किया है: चूंकि यहां आनेवाला हर व्यक्ति आंखों में एक सपना लिए आता है। एक महत्वकांक्षा रहती है उसकी यहां टिक कर अपना मुकाम हासिल करने की। फलस्वरूप वो इस भागदौड़ की जिंदगी में इतना मशगूल हो जाता है कि संवेदनाएं कहीं पीछे छूट जाती है। मानव स्वभाव है, वो संवेदनशील तो होता है, पर व्यक्त नहीं कर पाता है। हर कोई यहां कुछ ना पाने, कुछ कर गुजरने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। कहने को तो हमारे पास सिर्फ चौबीस घंटे ही तो हैं, हम उसे घटा या बढ़ा नहीं सकते, पर ऐसा लगता है कि हम चौबीस घंटो में कुछ ज्यादा घंटों का काम करने की आपाधापी में लगे रहते हैं।

✒️ मनीश वर्मा ‘मनु’

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