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खेती को कैमिस्ट्री लैब से निकाल प्रकृति की प्रयोगशाला में लाना जरूरी : प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री ने आज (16.12.2021) वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से आणंद (गुजरात) में कृषि और खाद्य प्रसंस्करण पर राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन के समापन सत्र के दौरान किसानों को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि सम्मेलन में तकनीक के माध्यम से लगभग 8 करोड़ किसान जुड़े हैं। उन्होंने ‘इलाज से पहले परहेज’ करने अर्थात समय रहते खेती-जमीन को कृत्रिम कैमिकल से बजाने का आहवान किया। उन्होंने कहा कि हमें अपनी खेती को कैमिस्ट्री की प्रयोगशाला से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला में लाना होगा।

कॉन्क्लेव का पूरे देश में होगा असर

प्रधानमंत्री ने कहा कि कॉन्क्लेव का असर सिर्फ गुजरात में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में होगा, जिसका फायदा सभी किसानों को मिलेगा। खाद्य प्रसंस्करण, प्राकृतिक खेती इन सभी मुद्दों से कृषि क्षेत्र को बदलने में मदद मिलेगी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे पहले की खेती से जुड़ी समस्याएं विकराल हो जाएं समय रहते बड़े कदम उठाना जरूरी है। हमें अपनी खेती को कैमिस्ट्री की लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ना ही होगा। उन्होंने कहा कि प्रकृति की प्रयोगशाला भी पूरी तरह से विज्ञान आधारित ही है। आज दुनिया आधुनिकता की दिशा में अपने मूल से जुड़ रही है। हम जितना अपनी जड़ों को सींचेंगे, उतना ही वनस्पति का विकास होगा।

किसान की आय को बढ़ाने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में की बात

प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद के दशकों में जिस तरह देश में खेती हुई, जिस दिशा में बढ़ी, वो हम सब हम सबने बहुत बारीकी से देखा है। अब आज़ादी के 100वें वर्ष तक का हमारा सफर नई आवश्यकताओं, नई चुनौतियों के अनुसार अपनी खेती को ढालने का है। 21वीं सदी में भारतीय कृषि के परिवर्तन में प्राकृतिक खेती महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। पिछले 6-7 सालों में किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए एक के बाद एक कई कदम उठाए गए हैं।

उन्होंने कहा कि बीते 6-7 साल में बीज से लेकर बाजार तक, किसान की आय को बढ़ाने के लिए एक के बाद एक अनेक कदम उठाए गए हैं। मिट्टी की जांच से लेकर सैकड़ों नए बीज तक, पीएम किसान सम्मान निधि से लेकर लागत का डेढ़ गुणा एमएसपी तक, सिंचाई के सशक्त नेटवर्क से लेकर किसान रेल तक, अनेक कदम उठाए हैं।

केमिकल और फर्टिलाइजर के विकल्प जरूरी

प्रधानमंत्री ने कहा कि केमिकल और फर्टिलाइजर की हरित क्रांति में अहम भूमिका को नाकारा नहीं जा सकता। लेकिन ये भी उतना ही सच है कि हमें इसके विकल्पों पर भी साथ ही साथ काम करते रहना होगा। इससे पहले खेती से जुड़ी समस्याएं भी विकराल हो जाएं उससे पहले बड़े कदम उठाने का ये सही समय है। हमें अपनी खेती को कैमिस्ट्री की लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ना ही होगा।