ख़बर

दिल्ली डायरी : इंद्रप्रस्थ दिल्ली

कमल की कलम से

अपनी दिल्ली !

आज हम आपको लिए चलते हैं महरौली में कुतुबमीनार के पास स्थित किला लाल कोट की सैर को.

क्या आप जानते हैं ?

दिल्ली शहर का इतिहास महाभारत के जितना ही पुराना है. इस शहर को इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था, जहां कभी पांडव रहे थे. समय के साथ-साथ इंद्रप्रस्थ के आसपास आठ शहर लाल कोट, दीनपनाह, किला राय पिथौरा, फिरोजाबाद, जहांपनाह, तुगलकाबाद और शाहजहांनाबाद बसते रहे.

हिंदू तोमर राजा अनंगपाल के इस क्षेत्र पर अधिकार करने से दिल्ली का इतिहास शुरू होता है. उसने गुड़गांव जिले में अरावली की पहाडि़यों पर सूरजकुंड के समीप अपनी राजधानी अनंगपुर बनायी. लेकिन, कुछ समय
बाद अनंगपाल ने इस स्थान को छोड़ वर्तमान कुतुब के समीप लाल कोट किला बनाया.

वर्तमान दिल्ली का सबसे पहले बनाया शहर ये ही था. दिल्ली का पहला लालकिला भी इसे ही कहते हैं. इसे आप कुतुबमीनार के आस पास देख सकते हैं. उसके उत्तरी भाग को राय पिथौरा का किला और दक्षिणी भाग को लालकोट कहा जाता है. इसे अनंगपाल ने 1060 ईस्वी में बनाया था ये अंग्रेज इतिहासकार अलेक्जेंडर कनिंघम का कहना है. कनिंघम ने दिल्ली में पुराने सात किलों के मौजूद होने की बात बतलाते हुए लाल कोट (किले) के निर्माण की बात कही है.

‘दिल्ली और उसका अंचल’ पुस्तक के अनुसार, अनंगपाल को पृथ्वीराजरासो में अभिलिखित भाट परंपरा के अनुसार दिल्ली का संस्थापक बताया गया है. यह कहा जाता है कि अनंगपाल ने लाल कोट का निर्माण किया था जो कि दिल्ली का प्रथम सुविख्यात नियमित अपने समय का पहला रक्षात्मक किला है. लाल कोट का निर्माण 773 ई0 में, तोमर शासक अनंगपाल प्रथम द्वारा करवाया गया था. यह आयताकार आकार में बना है, जो 2.25 किमी की परिधि में फैला हुआ है.

इस किले को ”किला-ए-राय पिथौरा” भी कहा जाता है, जिसमें कुल सात दरवाजे हैं. इनमें सबसे प्रसिद्ध गजनी, सोहन फतेह और रणजीत हैं. इन्हें आईएनटीएसीएच द्वारा (भारतीय कला और सांस्कृतिक विरासत के लिए नेशनल ट्रस्ट) विरासत स्मारकों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.
इसको महत्व तब मिला जब 12वीं शताब्दी में पांडववंशी अनंगपाल तोमर ने अपना तोमर राजवंश लालकोट से चलाया. यहां राजपूत तोमर वंश ने अपना शासन चलाया, जिसे बाद में अजमेर के चौहान क्षत्रिय राजपूत राजा ने मुहम्मद गोरी से जीतकर इसका नाम किला राय पिथौरा रखा. 1192 में जब क्षत्रिय राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान मुहम्मद गोरी से तराएन का युद्ध में पराजित हो गये थे, तब गोरी ने अपने एक दास को यहा का शासन संभालने हेतु नियुक्त किया. वह दास कुतुबुद्दीन ऐबक था.

वर्तमान समय में, किला टूट रहा है लेकिन फिर भी टूटे किले से राज्य की प्राचीन काल की महिमा प्रदर्शित होती है. हम पक्के मार्ग पर चल कर किले में घुसते हैं. अब यह स्थान केवल लाल कोट किले की गिरी हुई दीवार और गढ़ के साथ बचा हुआ है. हालांकि, किले की दीवार के ऊपरी हिस्से को देखकर लगता है कि इसकी मरम्मत करवाई जाती है. कुछ कदम चलने के बाद, आप कुतुब मीनार, एडम खान की कब्र और संजय वन देख सकते हैं.

किले की दीवार, जो किले में प्रवेश के लिए चिन्हित है, मेहरौली-कुटाब सड़क से दिखाई देती है क्योंकि यह सड़क दीवार के समानांतर चलती है.

बदरपुर-कुतुब रोड से भी लाल कोट गढ़ के अवशेष देख सकते हैं.

यहाँ पहुँचने के लिए आप 534 , 717 , 602 , 615 , 427 नम्बर का Dtc बस का इस्तेमाल कर सकते हैं.

निजी वाहन से आनेवाले के लिए पार्किंग की उचित व्यवस्था है.

मेट्रो स्टेशन है कुतुबमीनार.

हमारी दिल्ली शान की दिल्ली !