कैसे हुई देशभर में सांसों को लेकर दौड़ती ‘ऑक्सीजन एक्सप्रेस’ की कहानी शुरू….
कोरोना महामारी के इस दौर में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन (एलएमओ) एक ‘संजीवनी’ के रूप में सामने आई है। देशभर में बढ़ रही ऑक्सीजन की मांग के बाद ऑक्सीजन पैदा करने वाले प्लांट्स में एलएमओ के उत्पादन में तेजी आई। इसी के तहत, सभी तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए भारतीय रेलवे द्वारा ‘ऑक्सीजन एक्सप्रेस’ शुरू की गई। ये एक विशेष ट्रेन है, जिसे रोल-ऑन, रोल ऑफ (आरओ-आरओ) सर्विस के रूप में शुरू किया गया। ट्रेन सही समय पर बिना किसी रुकावट के गंतव्य तक पहुंचे इसके लिए विशेष ‘ग्रीन कॉरिडोर’ बनाये गए हैं।
दरअसल, ट्रेनों के माध्यम से ऑक्सीजन को पहुंचाना आसान है बजाय सड़क के माध्यम से। रेल के माध्यम से जिसमें 2 दिन लगते हैं, वहीं सड़क मार्ग से उसे 3 दिन लगते हैं। ट्रेनें चौबीसों घंटे चल सकती हैं, लेकिन ट्रक ड्राइवरों को रुकना पड़ता है।
3,300 से 3,400 मि.मी ऊंचाई वाले रोड टैंकर पाए गए परफेक्ट
एलएमओ को जरूरतमंदों तक पहुंचाना एक बड़ी चुनौती भरा काम है। इसके लिए उसे फ्लैट वैगनों पर रखे रोड टैंकरों के साथ रोल-ऑन रोल-ऑफ (आरओ आरओ) सेवा के माध्यम से ले जाया जाना बेहतर समझा गया। वहीं, कुछ स्थानों पर रोड ओवर ब्रिज और ओवर हेड इक्विपमेंट की ऊंचाई को लेकर भी प्रतिबंधों के कारण, 3,300-3,400 मिलीमीटर ऊंचाई वाले रोड टैंकर का मॉडल परफेक्ट पाया गया। यह सुनिश्चित किया गया कि पूरी ऊंचाई 4,500-4,600 मिलीमीटर से अधिक न हो।
एफओआईएस पोर्टल के माध्यम से किया जा रहा है ट्रेनों को ट्रैक
पश्चिम मध्य रेलवे द्वारा जारी बयान के अनुसार, ऑक्सीजन एक्सप्रेस के लिए विशेष ओडिसी ऑक्सीजन एक्सप्रेस सेल भी बनाई गई है। इस सेल की स्थापना राज्य सरकार, लोडिंग रेलवे / ऑक्सीजन प्लांट, गंतव्य रेलवे से जुड़े विभागों के विभिन्न अधिकारियों के साथ मिलकर की गई। वहीं, भारतीय रेल की माल परिचालन सेवा, एफओआईएस पोर्टल का उपयोग ऑक्सीजन एक्सप्रेस की आवाजाही के वास्तविक समय की निगरानी के लिए किया जा रहा है।
लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की होती हैं कईं सीमाएं
नीति आयोग के वरिष्ठ सलाहकार (स्वास्थ्य) डॉ. मदन मोहन ने प्रसार भारती से बात करते हुए कहा कि लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में भी कई चुनौतियां होती हैं। लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन, क्रायोजनिक कार्गो टैंक में रखकर भेजी जाती है, इसलिए इसे एक जगह से दूसरी जगह भेजना चुनौती भरा काम है।
बता दें, क्रायोजेनिक टैंक ऐसे टैंक होते हैं, जिसमें बहुत अधिक ठंडे लिक्विड रखे जाते हैं, उदाहरण के लिए लिक्विड ऑक्सीजन और लिक्विड हाइड्रोजन। लिक्विड ऑक्सीजन का टेम्परेचर माइनस 185 डिग्री होता है और यह बहुत अधिक ठंडी होती है। क्रायोजेकिन टैंक में उन गैसों को रखा जाता है, जिनका बोइलिंग पॉइंट -90 डिग्री से अधिक होता है, जैसे ऑक्सीजन। एलएमओ को ले जाते समय इसकी अधिकतम गति, लोडिंग, किस टैंकर में ले जानी है आदि बातों का भी ध्यान रखना होता है।
100 से अधिक ऑक्सीजन एक्सप्रेस कर चुकी हैं अपनी यात्रा पूरी
रेल मंत्रालय के अनुसार, 100 से अधिक ऑक्सीजन एक्सप्रेस की यात्रा पूरी हो चुकी है। इसके अंतर्गत विभिन्न राज्यों को राहत पहुंचाई गई है। मंत्रालय द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार, 14 मई, 2021 तक देश के विभिन्न राज्यों में लगभग 500 टैंकरों में लगभग 7900 मीट्रिक टन चिकित्सा उपयोग हेतु लिक्विड ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा चुकी है।
24 अप्रैल को चली थी पहली ‘ऑक्सीजन एक्सप्रेस’
बता दें, ऑक्सीजन एक्सप्रेस की पहली यात्रा 24 अप्रैल, 2021 को शुरू हुई थी, जिसमें 126 मीट्रिक टन लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति महाराष्ट्र को की गई थी। मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि ऑक्सीजन एक्सप्रेस की ढुलाई एक जटिल प्रक्रिया है फिर भी लंबी दूरी वाले मार्गों पर ऑक्सीजन एक्सप्रेस ज्यादातर मामलों में 55 किमी प्रति घंटे की दर से चल रही है। विभिन्न खंडों पर चालक दल के सदस्यों की अदला बदली के लिए इन गाड़ियों के ठहराव के समय को घटाकर 1 मिनट कर दिया गया है।