सम्पादकीय

है हिंदी यूं हीन

है हिंदी यूं हीन ।।
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बोल-तोल बदले सभी, बदली सबकी चाल ।
परभाषा से देश का, हाल हुआ बेहाल ।।

जल में रहकर ज्यों सदा, प्यासी रहती मीन ।
होकर भाषा राज की, है हिंदी यूं हीन ।।

अपनी भाषा साधना, गूढ ज्ञान का सार ।
खुद की भाषा से बने, निराकार, साकार ।।

हो जाते हैं हल सभी, यक्ष प्रश्न तब मीत ।
निज भाषा से जब जुड़े, जागे अन्तस प्रीत ।।

अपनी भाषा से करें, अपने यूं आघात ।
हिंदी के उत्थान की, इंग्लिश में हो बात ।।

हिंदी माँ का रूप है, ममता की पहचान ।
हिंदी ने पैदा किये, तुलसी ओ” रसखान ।।

मन से चाहे हम अगर, भारत का उत्थान ।
परभाषा को त्यागकर, बांटे हिंदी ज्ञान ।।

भाषा के बिन देश का, होता कब उत्थान ।
बात पते की जो कही, समझे वही सुजान ।।

जिनकी भाषा है नहीं, उनका रुके विकास ।
परभाषा से होत है, हाथों-हाथ विनाश ।।

✍ डॉo सत्यवान सौरभ