पटना में हार्ट फेल्योर के मरीज की जान मैकेनिकल हार्ट से बचाई गई
पटना : हृदय रोग विज्ञान के क्षेत्र की तरक्की आखिरी चरण की हृदयरोग समस्या से पीड़ित मरीजों और यहां तक कि हार्ट फेल्योर मरीजों के लिए भी वरदान साबित हुई है। हाल की तकनीक में आए बदलाव, तरह – तरह के हार्ट फेल्योर डिवाइसेज का आविष्कार इस रोग से होने वाली मृत्युदर में कमी लाने में काफी मददगार हुए हैं। एडवांस्ड हार्ट फेलेर केयर की उपलब्धता और सही समय पर इसके सदुपयोग से कई मरीजों की जान बचाई जा सकती है, इसी बारे में जानकारी देने के लिए मैक्स स्मार्ट हॉस्पिटल साकेत, नई दिल्ली आज एक जन जागरूकता सत्र का आयोजन किया। इस सत्र का संचालन मैक्स स्मार्ट हॉस्पिटल, साकेत में वरिष्ठ निदेशक और कार्डियक साइंस के प्रमुख डॉ. राजीव अग्रवाल ने किया। उन्होंने ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस तरह की तरक्की के बारे में जानकारी देने और जागरूकता बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया ताकि कई लोगों की जिंदगी बचाई जा सके। उन्होंने पटना के दो मरीजों के जटिल मामलों का भी जिक्र किया जिन्हें इन एडवांस्ड हार्ट फेल्योर डिवाइस की बदौलत नई जिंदगी पाई है।
डॉ. अग्रवाल ने कहा, पटना के 60 वर्षीय अनिल (परिवर्तित नाम) बार – बार हार्ट अटैक से जूझ रहे थे और अतीत में उनकी चार एंजियोप्लास्टी हो चुकी थी। इसके बावजूद बहुत निम्न स्तर पर एजेकुलेशन फ्रैक्शन (ईएफ – 15 फीसदी) होने के कारण जानलेवा स्थिति में उन्हें नियमित रूप से आईसीयू में ही भर्ती रहना पड़ता था। बार- बार हार्ट फेल्योर की गंभीर स्थिति को देखते हुए उनकी जिंदगी बचाने का एकमात्र विकल्प हार्ट ट्रांसप्लांट ही रह गया था, जिसके लिए उन्हें किसी दानकर्ता की मृत्यु की बाट जोहनी पड़ती। हाल ही में लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्टेड डिवाइस (एलवीएडी) की प्रगति ऐसी ही एक जीवनरक्षक टेक्नोलॉजी है जो हार्ट ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे मरीजों के लिए वरदान साबित हुई है। उन्हें सफलतापूर्वक एलवीएडी लगाया गया जो स्थायी रूप से एक कृत्रिम हार्ट पंप की तरह काम करता है और पूरी तरह शरीर के अंदर रहता है जिससे मरीज आसानी से कोई भी काम करते हुए सामान्य जीवन जी सकता है। मरीज इस डिवाइस को लगाने के तीन महीने बाद अच्छी तरह जीवनयापन कर रहा है।’
एलवीएडी कृत्रिम हार्ट से अलग होता है। कृत्रिम हार्ट पूरी तरह से खराब हार्ट की जगह ले लेता है जबकि एलवीएडी हार्ट कम श्रम से ही अधिक खून को पंप करने में मदद के लिए हार्ट के साथ ही काम करता है। ऐसा यह लेफ्ट वेंट्रिकल से खून लेकर महाधमनी तक पहुंचाने से करता है जिससे पूरे शरीर में आॅक्सीजन से भरपूर खून पहुंच पाता है। आजकल मिलने वाला एलवीएडी हल्के वजन का और पहले की तुलना में छोटा होता है जिससे आप बड़ी आसानी से कहीं भी आकृजा सकते हैं।
डॉ. राजीव ने बताया, ’दूसरा मरीज 50 साल का था और वह भी पटना से ही था। उसे बार – बार बेहोश हो जाने की शिकायत थी जिसकी डायग्नोसिस से पता चला कि ईएफ 35 फीसदी हो जाने के कारण उसका हृदय बहुत कमजोर हो चुका था। परंपरागत पेसमेकर लगाने से उसका हृदय और ज्यादा कमजोर हो सकता था, लिहाजा हमने तय किया कि उसकी ईसीजी पैटर्न को सामान्य स्थिति में लाने के लिए लेफ्ट बंडल पेसिंग दिया जाए और खर्च बचाने के साथ ही उसके हृदय की भी रक्षा की जाए। यह तकनीक ज्यादातर संस्थानों में उपलब्ध नहीं है। हमने उसे आधुनिक दवाइयां भी दीं और अब दो साल बाद भी मरीज पूरी तरह स्वस्थ है। हार्ट फेल्योर के अलगकृअलग चरणों में पहुंच चुके ऐसे कई मरीजों की जान दौरा पड़ने से बचाव और इसके तुरंत बाद ही इलाज शुरू कराने से बचाई जा सकती है और अलगकृअलग तरह के हार्ट फेल्योर डिवाइस लगाने से उसकी सेहत सुधारी जा सकती है। हार्ट फेल्योर के इलाज में बेहतर सेवा देने के लिए हम स्थानीय कार्डियोलॉजिस्टों के साथ भागीदारी करने के इच्छुक हैं।’
कई तरह के कैंसर के मुकाबले हार्ट फेल्योर ज्यादा खतरनाक माना जाता है जिसमें पांच साल के अंदर 50 फीसदी मरीजों की जान चली जाती है। ऐसा हार्ट अटैक के कारण भी हो सकता है लेकिन हमेशा नहीं। वाल्व डिजीज, कार्डियोमायापैथी, पोस्ट वायरल, प्रेग्नेंसी इंड्यूस्ड फेल्योर सहित कई अन्य स्थितियां भी गंभीर हार्ट फेल्योर का कारण बन सकती हैं। भारतीय आबादी में इस तरह के मामले बढ़ रहे हैं क्योंकि उनकी उम्र बढ़ रही है और इसके विपरीत हार्ट अटैक के ज्यादातर मरीजों का हृदय कमजोर होता जा रहा है। लोगों में यह गलत धारणा है कि दिल की बीमारी और हार्ट फेल्योर सिर्फ बुजुर्ग आबादी को ही प्रभावित करती है और यह सिर्फ महानगर के लोगों में ही होता है। डॉक्टरों ने छोटे शहरों और कस्बों में भी विभिन्न प्रकार के हृदय रोगों, जन्मजात गड़बड़ी, वॉल्व समस्या और दिल की आर्टरी में ब्लॉकेज, लाइफस्टाइल डिसआॅर्डर तथा वायरल इंफेक्शन जैसी बीमारियों से पीड़ित मरीजों की बढ़ती संख्या पर गौर किया है। ये सभी समस्याएं युवाओं के हृदय को भी उतना ही प्रभावित करती हैं, जितनी कि अधेड़ और बुजुर्ग आबादी को। इस तरह की बीमारियों का इलाज कुछ हद तक अनुकूल है और हमें नई चिकित्सा के साथ – साथ गंभीर मामलों में निगरानी, पेसमेकर डिवाइस तथा कृत्रिम हार्ट पंप की भी मदद लेनी चाहिए। ये सभी प्रक्रियाएं व्यवस्थित तरीके से होनी चाहिए।