कल है अखंड सौभाग्य के व्रत हरतालिका तीज, जानिए व्रत का नाम हरतालिका क्यों पड़ा
अखंड सौभाग्य के व्रत हरतालिका तीज की महिमा अपरंपार है। विशेषकर विवाहित महिलाओं में इस व्रत को लेकर अत्यधिक उत्सुकता होती है। इस व्रत का साल भर इंतजार किया जाता है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका व्रत रखा जाता है। इस वर्ष यह व्रत 21 अगस्त 2020 को मनाया जाएगा। इस दिन सुहागिनें अपने पतियों की दीर्घायु के लिए व्रत करती हैं। दरअसल, भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए यह व्रत किया था। वहीं, इस दिन कुंवारी कन्याएं भी अच्छा पति पाने के लिए यह व्रत रखती हैं। हरतालिका तीज व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है। यह त्यौहार खासतौर से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड और राजस्थान में मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, हरितालिका तीज को सबसे बड़ी तीज माना जाता है। हरतालिका तीज व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
हरियाली तीज और कजरी तीज की तरह ही हरतालिका तीज के दिन भी गौरी-शंकर की पूजा की जाती है। यह व्रत सावन की हरियाली तीज से अलग है। हरतालिका तीज का व्रत बेहद कठिन है। इस दिन महिलाएं 24 घंटे से भी अधिक समय तक निर्जला व्रत करती हैं। यही नहीं, रात के समय महिलाएं जागरण करती हैं और अगले दिन सुबह विधिवत्त पूजा-पाठ करने के बाद ही व्रत खोलती हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए तो कुंवारी कन्याएं अच्छा वर पाने के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखती है। इस दिन भगवान शंकर का पूजन और आरती प्रत्येक पहर में होती है। कई क्षेत्रों की परंपरा के अनुसार, इस दिन पंचामृत भी बनाया जाता है। इसमें घी, दही, शक्कर, दूध, शहद का उपयोग किया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाओं को सिंदूर, मेहंदी, बिंदी, चूड़ी, काजल आदि भी दिए जाते हैं। कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इस व्रत को “गौरी हब्बा” के नाम से जाना जाता है।
चार तीजों में हरतालिका तीज का विशेष महत्व है। हरतालिका दो शब्दों से मिलकर बना है- हरत और आलिका। हरत का मतलब है ‘अपहरण’ और आलिका यानी ‘सहेली’। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिवजी का रहन-सहन और उनकी वेशभूषा राजा हिमाचल को बिल्कुल भी पसंद नहीं था। राजा हिमाचल ने इस बात की चर्चा नारद जी से की। इस पर उन्होंने उमा का विवाह भगवान विष्णु से करने की सलाह दी। वहीं, माता पार्वती भगवान शिव को पहले ही अपने मन में अपना पति मान लिया था। ऐसे में उन्होंने विष्णु जी से विवाह करने से इंकार कर दिया। प्राचीन मान्यता के अनुसार मां पार्वती की सहेली उन्हें घने जंगल में ले जाकर छिपा देती हैं ताकि उनके पिता भगवान विष्णु से उनका विवाह न करा पाएं। शिव को पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने जंगल में तप किया और फिर शिवजी ने उन्हें दर्शन दिए और माता पार्वती को उन्होंने पत्नी के रूप में अपना लिया। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सुहागिन स्त्रियों को शिव-पार्वती अखंड सौभाग्य का वरदान देते हैं, वहीं कुंवारी लड़कियों को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।
इस बार जन्माष्टमी की ही तरह हरतालिका तीज की तिथि को लेकर असमंजस की स्थिति बन गई है। हरितालिका तीज पूजा का मुहूर्त सुबह 5 बजकर 54 मिनट से सुबह 8 बजकर 30 मिनट तक, शाम को 6 बजकर 54 मिनट से रात 9 बजकर 6 मिनट तक है। तृतीया तिथि 21 अगस्त की रात 02 बजकर 13 मिनट से प्रारंभ हो के 22 अगस्त रात 11 बजकर 2 मिनट पर ख़त्म होगी।