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जगदगुरु शंकराचार्य के नाम पर फर्जीवाड़ा, पुरी पीठ परिषद ने की पुलिस-प्रशासन से कार्रवाई की मांग

पूर्वाम्नाय गोवर्धन मठ पुरी पीठ का पीठाधीश्वर यानी शंकराचार्य के पदनाम पर फर्जीवाड़ा का मामला सामने आया है। अधोक्षजानंद देव तीर्थ नामक एक व्यक्ति द्वारा पुरी का शंकराचार्य बताकर पटना और देवघर में कुछ कार्यक्रमों में शामिल होने की सूचना प्राप्त हुई है। इस सबंध में एक कथित पत्र के आधार पर पुरी पीठ परिषद की ओर से पुलिस-प्रशासन से विधि सम्मत कार्रवाई की मांग की गई है। उक्त पत्र श्री आद्य शंकराचार्य धर्मोत्थान संसद के कथित सचिव रामकृपाल की ओर से जारी किया गया है। बिहार और झारखंड के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को एक साथ संबोधित उक्त पत्र में पुरी पीठ के कथित शंकराचार्य अधोक्षजानंद देव तीर्थ के प्रयागराज से 13 फरवरी की सुबह पटना पहुंचने की सूचना दी गई है। पटना से देवघर और वापस पटना लौटकर यहां कुछ कार्यक्रमों में शामिल होने के बाद प्रयागराज लौटने की सूचना दी गई है। उक्त पत्र में कथित पुरी शंकराचार्य को यात्रा पर्यन्त दो वीआईपी कार, पुलिस एस्कॉर्ट, पायलट, पीएसओ, हाउसगार्ड आदि प्रबंध करने का अनुरोध किया गया है। इस संबंध में पूर्वाम्नाय गोवर्धन मठ पुरी पीठ परिषद की बिहार इकाई ने शुक्रवार को पटना में प्रेस कांफ्रेंस कर कड़ी कार्रवाई की मांग की। पुरी पीठ परिषद की ओर से राज्य के मुख्य सचिव, गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और पटना के डीएम-एसएसपी को पत्र दिया गया है। पुरी पीठ परिषद की बिहार इकाई के अध्यक्ष अशोक कुमार सिंह ने बताया कि आद्य शंकराचार्य धर्माेत्थान संसद नाम की जिस संस्था के लेटर हेड पर कथित पत्र जारी किया गया है वह कथित संस्था 2008 में मथुरा से निबंधित दर्शायी गई है। जबकि पुरी पीठ समेत चार पीठों की स्थापना आद्य शंकराचार्य द्वारा सनातन धर्म के पुनरुत्थान के लिए ईसा पूर्व 484 में किया गया था। इसी शंकराचार्य परंपरा में 145 वें क्रम में स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती चार अप्रैल 1992 से पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य पद पर आसीन हैं। सनातन धर्म के धर्म गुरु के रुप में मान्य शंकराचार्य का पट्टाभिषेक एक मान्य परंपरा और प्रक्रिया से होता है। ऐसे में बिना पद रिक्त हुए किसी अन्य व्यक्ति के स्वयंभू शंकराचार्य होने का दावा हास्यास्पद और घोर आपत्तिजनक है। उन्होंने कहा कि उक्त पत्र की पुरी पीठ परिषद कोई पुष्टि नहीं कर रहा। लेकिन यदि इस तरह के फर्जी शंकराचार्य के पदनाम का अवैध इस्तेमाल कर कोई कार्यक्रम होता है तो ऐसी गतिविधियोें से करोड़ों सनातन धर्मावलंबियों की भावनाएं आहत होंगी। पुरी पीठ परिषद ने सनातन धर्मावलंबियों से ऐसे फर्जी शंकराचार्य का बहिष्कार करने की अपील करते हुए शासन-प्रशासन से ऐसे फर्जी गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ विधि सम्मत कार्रवाई की मांग की।

उड़ीसा उच्च न्यायालय ने लगाई थी रोक

पीठ परिषद के बिहार प्रांत अध्यक्ष ने बताया कि इस संबंध में उड़ीसा उच्च न्यायालय ने पूर्व में एक आदेश पारित कर शंकराचार्य के पदनाम के दुरुपयोग पर रोक लगाई थी। इस अवसर पर पीठ परिषद की बिहार इकाई के संरक्षक अमर अग्रवाल ने कहा कि अनधिकृत व्यक्ति द्वारा शंकराचार्य के पदनाम का इस्तेमाल सीधे तौर पर फर्जीवाड़ा है और राज्य पुलिस-प्रशासन को ऐसे लोगों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता अमित कुमार पाण्डेय ने कहा कि उड़ीसा उच्च न्यायालय का पूर्व का आदेश सभी स्थानों के लिए मान्य है। यदि कोई व्यक्ति उड़ीसा में पुरी पीठ के शंकराचार्य पदनाम का अवैध उपयोग नहीं कर सकता तो फिर बिहार अथवा किसी अन्य प्रदेश में कैसे कर सकता है? इस अवसर पर आदित्यवाहिनी के विवेक विकास, संजय सहाय, सुयश कुमार, अरूण सिंह, अनुज कुमार, अक्षय अग्रवाल, शैलेश तिवारी आदि उपस्थित थे।

आद्य शंकराचार्य ने की थी चार पीठों की स्थापना

आद्य शंकराचार्य ने भारतवर्ष के चार धार्मिक केंद्रों में मठों की स्थापना की थी। पूर्व में ऋग्वेद से संबंधित पूर्वाम्नाय गोवर्धन मठ की स्थापना पुरी में की गई। पश्चिम में द्वारिकापुरी, उत्तर में बद्रीनाथ और दक्षिण में श्रृंगेरी में मठों की। चारों पीठों के आचार्य को शंकराचार्य की पदवी से विभूषित किया गया। आद्य शंकराचार्य ने पुरी में पद्मपाद महाभाग को पहला शंकराचार्य के पद पर प्रतिष्ठित किया।
बिहार के ही हैं पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती

बिहार के मधुबनी जिला के हरिपुर बख्शीटोल में 30 जून 1943 को जन्मे जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती 200 से अधिक ग्रन्थों और पुस्तकों की रचना कर चुके हैं। इनमें वैदिक गणित पर लिखी किताब समेत कई पुस्तकों के आधार पर दूनिया के अनेक देशों में शोध हो रहे हैं। आईआईटी, आईआईएम, इसरो, भाभा एटॉमिक रिसर्च इंस्टिच्युट समेत विज्ञान के प्रमुख संस्थानों में स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती के प्रबोधन कार्यक्रम हो चुके हैं। भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने उन्हें जेड श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की है।