मत्स्य उद्योग को बढ़ावा देने के लिए WTO में भारत ने रखा अपना पक्ष, कहा-पुरानी तर्कहीन नीति मंजूर नहीं
किसान कल्याणकारी नीतियों के साथ ही भारत सरकार का पूरा ध्यान छोटे मछुआरों और उससे जुड़े उद्योगों को आगे बढ़ाने पर भी है। नीली क्रांति या ब्लू इकोनॉमी के जरिए मत्स्य पालन क्षेत्र के विकास के लिए सरकार वैश्विक स्तर पर फैसले लेने लगी है। इसी के तहत वाणिज्य एवं उद्योग, उपभोक्ता मामले और खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण और कपड़ा मंत्री पीयूष गोयल ने विश्व व्यापार संगठन की मंत्रिस्तरीय बैठक में शामिल हुए, जहां केंद्रीय मंत्री ने कासशील देशों के अधिकारों के लिए मजबूती से अपनी बात रखी। बैठक में विश्व व्यापार संगठन के अन्य सदस्यों के मंत्रियों, राजदूतों और विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक डॉ. नगोजी भी शामिल रहे।
तर्कहीन सब्सिडी का भारत नहीं करता समर्थन
भारतीय प्रतिनिधि और केन्द्रीय मंत्री गोयल ने भारत की ओर से एक सख्त बयान देते हुए कहा कि भारत समझौते को अंतिम रूप देने के लिए बहुत उत्सुक है क्योंकि तर्कहीन सब्सिडी और कई देशों द्वारा अधिक मछली पकड़ने से भारतीय मछुआरों और उनकी आजीविका को नुकसान हो रहा है। उन्होंने इस बात पर भी निराशा व्यक्त की कि सदस्यता कम होने से समझौते में उचित संतुलन और निष्पक्षता की कमी है। प्रधान मंत्री द्वारा मछली पकड़ने के क्षेत्र को बढ़ावा देने और छोटे मछुआरों की सुरक्षा पर खास जोर देने के विजन पर उन्होंने खासा जोर दिया है।
भारत को अब पुरानी व्यवस्था मंजूर नहीं
भारत ने आगाह करते हुए कहा कि हमें तीन दशक पहले उरुग्वे दौर के दौरान की गई गलतियों को नहीं दोहराना चाहिए। उस समय विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में चुनिंदा विकसित सदस्य देशों को असमान और व्यापार-विकृत अधिकारों की अनुमति दी थी। उस वक्त कम विकसित सदस्य, जिनके पास अपने उद्योग या किसानों का समर्थन करने की क्षमता और संसाधन नहीं था, वह इन्हें मानने को विवश थे। इस पर चिंता व्यक्त करते हुए भारत ने कहा कि अब कोई भी असंतुलित या असमान समझौता, जो हमारी भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है, वह हमें मछली पकड़ने की वर्तमान व्यवस्था में बांध नहीं सकता है। भारत ने वार्ता में इस बात पर भी जोर दिया कि यह जरूरी है कि बड़ी मात्रा में सब्सिडी देने वाले देश, जिम्मेदारी उठाते हुए सब्सिडी और मछली पकड़ने की क्षमता में कमी लाए, जो कि “प्रदूषणकर्ता की जिम्मेदारी” और समान लेकिन अलग-अलग उत्तरदायित्व के सिद्धांतों” के आधार पर लागू हो।
व्यापार संगठन द्वारा उन्नत राष्ट्रों को अनुदान देना है गलत
भारत ने कहा कि किसी भी समझौते को इस तरह तैयार करना चाहिए, जिसमें विकास के विभिन्न चरणों से गुजर रहे देशों और उनकी वर्तमान मछली पकड़ने की व्यवस्था और आर्थिक क्षमताओं का भी ध्यान रखा जाए। समझौते को वर्तमान और भविष्य की जरूरतों को पूरा करने वाला होना चाहिए। भारत ने अपनी मांगों को रखते हुए कहा कि अधिकांश विकासशील देशों द्वारा दी जाने वाली प्रति व्यक्ति मत्स्य पालन सब्सिडी उन्नत मछली पकड़ने वाले देशों की तुलना में बहुत कम है। भारत जैसे देश, जिन्हें अभी मछली पकड़ने की क्षमता विकसित करनी है, वे अपनी भविष्य की महत्वाकांक्षाओं का त्याग नहीं कर सकते। भारत ने स्पष्ट कहा विश्व व्यापार संगठन द्वारा उन्नत राष्ट्रों को अनुदान जारी रखने की अनुमति देना असमान, अनुचित और अन्यायपूर्ण है।
‘स्पेशल एंड डिफरेन्शियल ट्रीटमेन्ट’ है आवश्यक
विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक के द्वारा मंत्रियों से पूछे गए विशेष प्रश्नों का उत्तर देते हुए, भारतीय प्रतिनिधि पीयूष गोयल ने कहा ‘स्पेशल एंड डिफरेन्शियल ट्रीटमेन्ट’ (एसएंडडीटी) को गरीब और मछुआरों से दूर करना, न तो उचित है और न ही स्वीकार्य है। एसएंडडीटी न केवल गरीब मछुआरों की आजीविका की रक्षा करने के लिए बल्कि खाद्य सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए भी आवश्यक है। मत्स्य पालन क्षेत्र के विकास के लिए ऐसी नीति की जरूरत है, जो क्षेत्र में हो रहे बदलाव के लिए ज्यादा समय उपलब्ध करा सके।
इन शर्तों पर भारत है तैयार
भारतीय प्रतिनिधि पीयूष गोयल ने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री ने बार-बार जोर दिया है कि पर्यावरण की सुरक्षा सदियों से भारतीय परंपरा में निहित है। उन्होंने आगे कहा कि जब तक वार्ता वर्तमान और भविष्य की मछली पकड़ने की जरूरतों को संतुलित करने, क्षेत्र को संरक्षण प्रदान करने और क्षमता में समान बढ़ोतरी और किसी असंतुलन के लिए प्रभावी एसएंडडीटी लागू करती है, तो भारत वार्ता को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
क्या करता है विश्व व्यापार संगठन
विश्व व्यापार संगठन एकमात्र वैश्विक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जो राष्ट्रों के मध्य व्यापार नियमों से संबंधित है। WTO समझौते इसके मूल तत्त्व हैं जिन पर कई व्यापारिक देशों द्वारा बातचीत एवं हस्ताक्षर किये गए हैं और उन देशों की संसद में,जिनकी पुष्टि की गई है। विश्व व्यापार संगठन में 164 सदस्य (यूरोपीय संघ सहित) एवं 23 पर्यवेक्षक सरकारें (जैसे ईरान, इराक, भूटान, लीबिया आदि) हैं।