स्कूल संघों ने कहा “फीस नहीं लेंगे तो वेतन कहाँ से देंगे”, स्थिति नहीं सुधरी तो आश्रित परिवारों में आ सकती है भुखमरी की स्थिति
लॉक डाउन को देखते हुए हालांकि सरकार ने कई तरह की राहत और सुविधाएँ प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है पर परेशानी दूर होने का आम नहीं ले रही है। इसी क्रम में अभी कुछ मीडिया और सोशल मीडिया पर चल रही खबर जिसमे “स्कूलों द्वारा ट्रांसपोटेशन और डेवलपमेंट चार्ज नहीं लेने” सम्बन्धी खबर से निजी विद्यालय संचालकों के चेहरे पर परेशानी साफ़ झलकने लगी
एसोसिएशन ऑफ़ इंडिपेंडेंट स्कूल्स के अध्यक्ष डॉ० सी बी सिंह, क्रिश्चियन माइनॉरिटी एजुकेशन सोसाइटी के सचिव ग्लेन जोसेफ गोल्स्टेन और पाटलिपुत्र सहोदय स्कूल कंपलेक्स के अध्यक्ष राजीव रंजन सिन्हा ने संयुक्त प्रेस बयान जारी कर इस खबर को भ्रामक और तथ्य से परे बताया।
प्रेस बयान में कहा गया कि “दिनांक 29 मार्च को एक स्थानीय समाचार पत्र में “स्कूल ट्रांसपोर्टेशन और डेवलपमेंट चार्ज नहीं लेंगे” शीर्षक से समाचार प्रकाशित है. जिसमें पाटलिपुत्र महोदय एसोसिएशन इंडिपेंडेंट स्कूल और क्रिश्चियन माइनॉरिटी एजुकेशन सोसाइटी के स्तर से यह निर्णय लिए जाने की बात की गयी है जो गलत एवं तथ्य हीन है।
एसोसिएशन ऑफ इंडिपेंडेंट स्कूल के अध्यक्ष डॉ सी बी सिंह, क्रिश्चियन माइनॉरिटी एजुकेशन सोसाइटी के सचिव जोसेफ और पाटलिपुत्र स्कूल कंपलेक्स के अध्यक्ष राजीव रंजन सिन्हा ने अपने बयान में इस खबर को भ्रामक तथ्य एवं बेबुनियाद बताते हुए कहा कि कोरोना संक्रमण के विषम परिस्थितियों में सभी लॉक डाउन में है और सभी निजी विद्यालयों के समक्ष अपने शिक्षकों एवं कर्मचारियों को मार्च माह की तनख्वाह देने के लाले पड़े हैं।
उन्होंने कहा कि चतुर्दिक बंदी होने के कारण शुल्क संकलन पूरी तरह बंद है और अधिकांश विद्यालयों में फीस बकाया है। विद्यालयों के शिक्षक और अन्य स्टाफ के समक्ष बड़ी चुनौती आ खड़ी है विद्यालय यदि अपने स्रोतों से मार्च का वेतन दे भी पाते हैं तो अप्रैल में स्थिति अगर नहीं सुधरी तो आश्रित परिवारों में भुखमरी की स्थिति आ सकती है।
उन्होंने कहा कि प्रत्येक भारतवासी को इस महान विपदा में एक दूसरे की चिंता है। हमारे विद्यार्थी एवं अभिभावक हमारे परिवार के अंग हैं और उनकी सहायता से ही हम सबने विद्यालयों का निर्माण किया है। हम संवेदनशील हैं और उनकी कठिनाई को समझते हैं, किन्तु जनसाधारण और मीडिया वन्धुओं को सूचनार्थ है कि विद्यालयों में ट्यूशन फ़ी का वृहत्तर भाग शिक्षक-शिक्षिकाओं एवं गैर-शिक्षण कर्मियों के वेतन में जाता है।
उसी प्रकार ट्रांसपोर्ट शुल्क का लगभग 90% हिस्सा चालकों-उपचालकों के वेतन, वाहनों की किश्तें, इंसयोरेंश, परमिट, मेंटेनेस इत्यादि पर ही ख़र्च हो जाता है। अतः इन मदों में कोई छूट की संभावना अत्यल्प है। बिहार के प्राइवेट स्कूलों के समक्ष अपने लगभग 3.5 लाख कर्मियों को समय से वेतन देने की चुनौती है, क्योंकि शुल्क-संचयन शून्यवत है।
सरकार और समाचार-समूह इस विवशता का भी अवलोकन करें। हम चाहेंगे कि वेतन प्रतिमाह मिलता रहे और शिक्षकों के सम्मान के साथ कोई विद्यालय समझौता न करे।