एक युग का अंत, रविवारीय में पढ़िए “टाटा का नहीं भरोसे का अंत”
एक युग का अंत। यह तो हम क्या सभी कह रहे हैं, पर इसके साथ एक बात और भी है जो बहुत ही अहम् है। अगर हम यह कहें कि रतन टाटा के निधन के पश्चात एक विश्वास का अंत हुआ है, तो
शायद इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए।
कितना विश्वास था हमारे देश के लोगों का उनपर, और वो महामानव उनके विश्वास और आकांक्षाओं पर हमेशा खरा उतरता था। जरा पीछे मुड़कर देखें सोशल मीडिया पर सरकार के साथ संबंधों को लेकर कुछ व्यावसायिक घरानों के ऊपर आरोप और प्रत्यारोप का एक अंतहीन सिलसिला चलता रहता है, पर कभी आपने देखा या महसूस किया कि जहां पर टाटा समूह का नाम जुड़ा हुआ हो वहां पर किसी भी तरह का कोई विवाद हुआ हो? चाहे वो सोशल मीडिया हो, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या फिर प्रिंट मीडिया । कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। हमारे जन-मानस के उपर टाटा का कुछ ऐसा प्रभाव रहा है , ऐसा अमिट छाप रहा है कि हम सभी वशीभूत हैं। एक अविश्वसनीय विश्वास था हम सभी का टाटा के उपर। टाटा नाम ही शायद विश्वास की गारंटी थी।सरकारी नौकरी ना मिले, मंजूर है, पर अगर टाटा से संबंधित किसी भी प्रतिष्ठान में अगर आप शामिल हो गए तो यकीन मानिए, यह बात मैं नहीं कह रहा हूं। टाटा से जुड़ा हुआ छोटा से बड़ा व्यक्ति पुरे यकीन के साथ आपको टाटा के नाम की दुहाई देता मिलेगा। बस यही तो टाटा के नाम पर एक विश्वास था, जो शायद टाटा समूह के आने वाले मुखिया के लिए एक चुनौती होगी उस विश्वास को क़ायम रखने की जो यहां के लोगों के दिलों दिमाग में गहरे बैठी हुई है।
यकीन नहीं होता! दो दिन पहले ही तो टाटा ने ट्वीट कर कहा था – मैं बिल्कुल स्वस्थ हूं। मैं तो बस नियमित जांच के लिए अस्पताल आया हूं। मेरी बीमारी की खबर एक अफवाह है। इसपर ध्यान ना दें।
किसे मालूम था कि टाटा के कहे वो शब्द सार्वजनिक तौर पर कहे गए उनके अंतिम शब्द होंगे।
अगर व्यक्तिगत रूप में कहूं तो कभी कभी मैं सोचता था कि मैं टाटा को पत्र लिखूं और उनसे कुछ निवेदन करूं। समाज के लिए मैं कुछ करना चाहता हूं। आप मेरी मदद करें। मुझे मेरी अंतरात्मा कहती थी, वो जरूर मदद करेंगे,पर सोचता ही रह गया। हमेशा अफ़सोस रहेगा मुझे इस बात का।
दुनिया भर से आए शोक संदेशों को अगर आप देखें तो एक बात आप शिद्दत से महसूस करेंगे कि लगभग हर व्यक्ति ने टाटा के व्यक्तित्व के दो पहलूओं – परोपकारीता और दयालुता को प्रमुखता से उद्धृत किया है। टाटा समूह मेरी जानकारी और मेरी समझ में कभी भी ” रैट रेस ” में नहीं रहा। इस समूह ने हर सेगमेंट का ख्याल रखा। समाज के हर तबके के लिए टाटा समूह ने सोचा। कोई भी ऐसा तबका नहीं है जो टाटा की नजरों से बच सका है। सुबह आपके जागने से लेकर रात में आपके सोने तक आप किसी ना किसी रूप में टाटा के साथ रहते हैं।
आप कह सकते हैं कि उन्होंने व्यवसाय किया। सही है, पर एथिक्स के साथ व्यवसाय कैसे किया जाता है यह कोई टाटा समूह से सीखे।
हमेशा कामयाबी और भरोसे की मिसाल रहे रतन टाटा साहब को मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि। काश! उन्हें पत्र लिखने की मेरी इच्छा पूर्ण हो पाती।
✒️ मनीश वर्मा’मनु’