प्रेमचंद रंगशाला में शुरू हुआ तीन दिवसीय त्रिवेणी नाट्य महोत्सव
शुभम गौतम के निर्देशन में नाटक “ एक नदी ” का सफल मंचन
पटना (18 दिसंबर, 2024) : राजधानी के राजेंद्र नगर स्थित प्रेमचंद रंगशाला में बुधवार को संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार, कला संस्कृति युवा विभाग बिहार सरकार एवं एनसीजेडसीसी के सहयोग से माध्यम फाउंडेशन पटना द्वारा तीन दिवसीय त्रिवेणी नाट्य महोत्सव – 2024 का शुभारंभ किया गया।
महोत्सव का उद्घाटन अखिल भारतीय कुशवाहा महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर मेहता, बिहार प्रदेश अध्यक्ष नरेश कुशवाहा, राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष अमन कुमार, लोकगायिका नीतू नवगीत एवं त्रिवेणी नाट्य महोत्सव के कार्यक्रम संयोजक धर्मेश मेहता एवं वरिष्ठ रंगकर्मियों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया। त्रिवेणी नाट्य महोत्सव की शुरुआत नुक्कड़ नाटक “राजा जी” धर्मेश मेहता एवं देवेंद्र झा के निर्देशन में बालक एवं कन्या मध्य विद्यालय, बेगमपुर, पटनासिटी द्वारा किया गया। उसके बाद पूजा, आलोक व दीप्ति द्वारा लोक नृत्य एवं हरेकृष्ण सिंह मुन्ना द्वारा लोक गीत प्रस्तुत किया गया। तदोपरांत लखनऊ, यूपी की संस्था थियेट्रॉन द्वारा आशीष मौर्या द्वारा लिखित व शुभम गौतम द्वारा निर्देशित एक नदी का मंचन किया गया।
इक नदी नाटक के गीत ही इसके मुख्य भाव है। नाटक की शुरुआत अवध राम के घर में चल रही सुंदरकांड से होती है। दीप्ति इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए अपने पिता के साथ अवध राम फूफा के घर आती है वहीं पर दीप्ति की मुलाकात पंकज से होती है जो अवध नाम का पड़ोसी है। दीप्ति अपने पढ़ाई के साथ – साथ अपने मन में चल रहे उथल – पुथल को काव्य गीतों के माध्यम से व्यक्त करती रहती है। अवधराम के यहाँ दीप्ति के आने से पंकज के काव्य लेखनी को और भी बल मिल जाता है। युवावस्था में दोनों एक दूसरे के काव्य रस में डूबते – डूबते एक दूसरे के प्रेम में भी डूब जाते है।
दीप्ति की पढ़ाई के दौरान दीप्ति की शादी एक सफल व्यक्ति से तय कर दी जाती हैं। पंकज को जब ये ज्ञात होता है तो दीप्ति और पंकज दोनों अपने परिवार के सामने अपने प्रेम को रखते है। दोनों हमउम्र होते हुए पंकज अपने घर छोटा और दीप्ति अपने घर में बड़े होने के कारण जिन्दगी के सबसे महत्वपूर्ण इस सवाल को दोनों ही परिवार अपने.अपने कारणों से हल नहीं कर पाते हैं और दीप्ति की शादी सफल व्यक्ति विनय से कर दी जाती हैं। विनय तरक्की की सीढ़ियां चढ़ता – चढ़ता अपने काम में इतना अत्यधिक व्यस्त होता चला जाता है की परिवार और पत्नी को समय देना अत्यधिक अभाव हो जाता है। जिससे उनके पारिवारिक जीवन में कड़वापन घुलना शुरू हो जाता है। फिर उसी झुंझलाहट में हर बात आदेशात्मक लहजा लिए बात करते है फिर चाहे वो अंतरंग पल ही क्यों न हो। वर्षों बाद दीप्ति सरिता की शादी में आती है और विवाह के बाद एक दिन शाम होते ही अपनी प्रिय जगह की ओर पैर अपने आप बढ़ जाते है। जाने के बाद देखती की जहां वो कभी पंकज के साथ बैठती थी। आज उस स्थान को नए कपल ने उनका स्थान ले चुके है और फिर अपने कदम को दूसरी दिशा की मोड़ देती है।
दूसरे दिन दीप्ति की पंकज से मुलाकात होती है फिर दोनों ही अपने आप को रोक नहीं पाये। इन वर्षों में मन की पीड़ा को एक दूसरे के सामने काव्य गीतों के माध्यम से सुलझाने के लिए खोलते है। नाटक के कलाकार सुब्रत रॉय, आशीष पांडेय, चारु शुक्ला, प्रिया राज कपूर, हिमानी सिंह, मुकेश सोनी, सोनिका पाल, अंचित सक्सेना, देवांग राय, तनमय लहरी, मयंक पाठक एवं आस्था शुक्ला ने अपनी कलाकारी से लोगों का दिल जीत लिया।