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वैश्वीकरण की बदौलत बढा है भारतीय मीडिया का फलक : डॉ. जीतेन्द्र नारायण

 

दरभंगा। जाने-माने राजनीतिक चिंतक एवं ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के मानविकी संकायाध्यक्ष सह राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ. जीतेन्द्र नारायण ने पत्रकारिता का पैमाना वैश्वीकरण से तय नहीं किया जा सकता है। पत्रकारिता इससे प्रभावित जरूर हुई है पर वो अपने लक्ष्य से भटकी नहीं है। वैश्वीकरण की बदौलत भारतीय मीडिया का फलक विस्तृत हो गया है। इसी की देन है कि आज अमेरिका के लोग दरभंगा जैसे छोटे शहरों की खबर भी आसानी से पढ़ पा रहे हैं।
श्री नारायण ने यहां ख्यातिलब्ध पत्रकार स्वर्गीय रामगोविन्द प्रसाद गुप्ता की 87वीं जयंती के मौके पर “पत्रकारिता में वैश्वीकरण-तब और अब” विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय पत्रकारिता को तथ्यों के आधार पर जनहित की बात करने वाला बताया और कहा कि वैश्वीकरण से पत्रकारिता प्रभावित जरूर हुई है लेकिन अपने लक्ष्य से अब तक भटकी नहीं है।
राजनीतिक चिंतक श्री नारायण ने कहा कि वैश्वीकरण के दौर में हिन्दुस्तान की पत्रकारिता और पाश्चात्य पत्रकारिता का अंतर अभी भी बना हुआ है। पत्रकारिता की आत्मा भारत में ही बसती हैं। भारतीय पत्रकारिता तथ्यों के आधार पर जनहित की बात करती हैं। पर पाश्चात्य मीडिया उद्योगों-उत्पादों को बढ़ावा देने का कार्य कर रही हैं। यही कारण है कि वैश्वीकरण के बाजारवादी दौर में भी पत्रकारिता की धार कम नहीं हुई है।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि नगर विधायक संजय सरावगी ने कहा कि पत्रकारिता समाज को जगाती हैं। इसलिए वैश्वीकरण के दौर में भी सही मायने में वहीं पत्रकार है जो समाज को जगाता है। ऐसे ही पत्रकारों में स्व. रामगोविन्द प्रसाद गुप्ता थे। उन्होंने ना सिर्फ पत्रकारिता धर्म निभाया बल्कि सामाजिक सरोकार को भी जिंदा रखा। आज भी ऐसे ही पत्रकारों की जरूरत है। तभी वैश्वीकरण के दौर में पत्रकारिता का अस्तित्व बरकरार रहेगा।
उन्होंने कहा कि एक प्रसिद्ध कहावत है- अच्छी चीजों को हमेशा ग्रहण करना चाहिए और बुरी चीजों को हमेशा छोड़ देना चाहिए। लेकिन भारतीय मीडिया के परिप्रेक्ष्य में यह कहावत कुछ अलग अर्थ लिए हुए है। वर्तमान दौर में भारतीय मीडिया खासकर प्रसारण मीडिया (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया) पश्चिमी और यूरोपीय देशों का अनुसरण कर रहा है। यह एक चिंताजनक स्थिति है, जिसपर समय रहते नियंत्रण पाना बेहद जरूरी है। लेकिन जिस तरह से वर्तमान मीडिया डिजिटल प्लेटफॉर्म की तरफ बढ़ रहा है, वैसे-वैसे खबरों की सीमाएं सिमटती जा रही हैं। वैश्वीकरण के दौर में इंटरनेट ने प्रसारण पत्रकारिता को समृद्ध करने का भी कार्य किया है। यही कारण है कि अब पारंपरिक मीडिया के साथ-साथ डिजिटल मीडिया ने लोगों के बीच पैठ बढ़ाई है। खबरों से एकाधिकार भी खत्म हुआ है। जनता तक सच तेजी से पहुंच रहा है।
थोक कपड़ा व्यवसाई संघ के राजेश कुमार बोहरा ने कहा कि विश्व स्तर पर और राष्ट्र स्तर पर पत्रकारिता में गिरावट आई हो या नहीं आयी है लेकिन स्थानीय स्तर पर पत्रकारिता के स्तर में गिरावट देखने को मिलता है और पत्रकारों की नैतिकता भी प्रभावित हुई है।
इससे पूर्व ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के रसायन शास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. प्रेम मोहन मिश्र ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि वैश्वीकरण को इसलिए बढ़ावा दिया गया कि इससे आमलोगों का विकास होगा। विकास तो हुआ पर इसके साथ ही बाजारबाद की प्रवृत्ति भी विकसित हुई। इसके चलते मीडिया प्रभावित हुई है।
वरिष्ठ पत्रकार विष्णु कुमार झा ने कहा कि वैश्वीकरण की बदौलत पत्रकारिता तकनीकी रूप से सशक्त बनी है लेकिन यह अपने मूल ध्येय यथार्थ से दूर भागती जा रही हैं। वहीं, पत्रकार नवीन सिंहा ने कहा कि कल तक पत्रकारिता एक दायरे में सिमटी थी लेकिन आज पूरी दुनिया मुट्ठी में है। आज हर आदमी पत्रकार है।
इस मौके पर प्रो. डॉ कृष्ण कुमार ने कहा कि प्रमाणिकता ही मीडिया की असली पूंजी है। जिस पर वैश्वीकरण के चलते खतरा मंडरा रहा है। पत्रकार मणिकांत झा ने बताया कि सत्य को प्रकट करना ही पत्रकारिता है जिसके मार्ग का सबसे बड़ा बाधक वैश्वीकरण साबित हो रहा है।
प्रो. रामचंद्र चन्द्रेश ने कहा कि वैश्वीकरण भारतीय मीडिया पर छा चुका है और मीडिया धर्म बचाने की जिम्मेवारी समाज की है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए पूर्व विधान पार्षद डॉ. विनोद कुमार चौधरी ने कहा कि पत्रकारिता देश और समाज का दर्पण है और पत्रकार सृजन एवं विध्वंस दोनों का सामर्थ्य रखते है। पर बाजारवाद ने इनका ।
संगोष्ठी में अतिथियों का स्वागत पत्रकार प्रदीप गुप्ता ने और धन्यवाद ज्ञापन पत्रकार प्रमोद गुप्ता ने किया। वहीं, संचालन रसमय वातावरण का शमां बांधते हुए डॉ. एडीएन सिंह ने किया। कार्यक्रम को पूर्व उप महापौर प्रबोध सिंहा, मुकेश कुमार झा आदि ने भी संबोधित किया।