सम्पादकीय

चुनावों में डिजिटल अभियान, झूठे-सच्चे वादों का ऐलान

आधुनिक डिजिटल प्लेटफॉर्म अक्सर बड़े बजट वाले दलों के विज्ञापनों को अधिक दृश्यता देकर उनका पक्ष लेते हैं, अभियान को अमीर राजनीतिक संस्थाओं के पक्ष में झुकाते हैं, जिससे चुनावी निष्पक्षता कम हो जाती है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म विभाजनकारी कंटेंट को बढ़ा सकते हैं, जिससे राजनीतिक विचारों

प्रियंका सौरभ

का ध्रुवीकरण हो सकता है एवं अधिक खंडित तथा शत्रुतापूर्ण चुनावी माहौल को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे रचनात्मक बहस कम हो सकती है। चुनावी समानता बनाए रखने के लिए, राजनीतिक दलों द्वारा डिजिटल विज्ञापनों पर खर्च की जाने वाली राशि पर सीमाएँ लगाई जानी चाहिए, जिससे अमीर पार्टियों को डिजिटल क्षेत्र पर हावी होने से रोका जा सके।

प्रियंका सौरभ

गूगल विज्ञापन पारदर्शिता केंद्र के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान, राजनीतिक दलों एवं उनके सहयोगियों ने 1 जनवरी से 10 अप्रैल के बीच अकेले गूगल विज्ञापनों पर लगभग ₹117 करोड़ खर्च किए। डिजिटल अभियान खर्च में यह वृद्धि चुनावों में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के बढ़ते प्रभाव को उजागर करती है, जबकि राजनीतिक दलों के बीच कंटेंट विनियमन तथा निष्पक्षता के बारे में चिंता बढ़ाती है। आधुनिक चुनावों में डिजिटल अभियान एक शक्तिशाली उपकरण बन गया है, मतदाताओं तक इसकी व्यापक पहुँच है, डिजिटल प्लेटफॉर्म ग्रामीण एवं दूरदराज के क्षेत्रों सहित लाखों मतदाताओं तक पहुँचने की अभूतपूर्व क्षमता प्रदान करते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी जनसांख्यिकीय अभियान से वंचित न रह जाए। वर्ष 2019 के चुनावों के दौरान व्हाट्सएप के व्यापक उपयोग ने राजनीतिक दलों को पूरे भारत में ग्रामीण मतदाताओं से जुड़ने में मदद की, जिससे चुनाव परिणाम काफी प्रभावित हुए हैं। डिजिटल अभियान पारंपरिक मीडिया की तुलना में कहीं अधिक किफायती हैं, जिससे सीमित बजट वाले छोटे लोगों को भी प्रतिस्पर्धा करने एवं मतदाताओं तक प्रभावी ढंग से पहुँचने की अनुमति मिलती है।

वर्ष 2015 के दिल्ली चुनावों में आप की डिजिटल-संचालित रणनीति जैसे उभरते क्षेत्रीय राजनीतिक दल बड़ी पार्टियों की तुलना में न्यूनतम खर्च के बावजूद सफल साबित हुए हैं। डेटा एनालिटिक्स पार्टियों को विशिष्ट मतदाता वर्गों के लिए अनुरूपित संदेश बनाने में सक्षम बनाता है, जिससे उनके मूल्यों एवं चिंताओं से मेल खाने वाले संदेशों के साथ सही दर्शकों तक पहुँचने की संभावना में सुधार होता है। ब्रेक्सिट सहित वैश्विक चुनावों के दौरान कैम्ब्रिज एनालिटिका की सूक्ष्म-लक्ष्यीकरण रणनीतियों ने दिखाया है कि कैसे लक्षित डिजिटल संदेश मतदाता व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं। सोशल मीडिया मतदाताओं के साथ वास्तविक समय पर बातचीत करने में सक्षम बनाता है, जिससे राजनीतिक नेताओं को चिंताओं को तेजी से संबोधित करने, जनता की राय को आकार देने एवं तत्काल प्रतिक्रिया के आधार पर अभियान रणनीतियों को समायोजित करने की अनुमति मिलती है। प्रधानमंत्री की सक्रिय ट्विटर उपस्थिति ने उन्हें अपने पूरे राजनीतिक जीवन में मतदाताओं के साथ सीधा एवं निरंतर संवाद बनाए रखने की अनुमति दी है।

डिजिटल प्लेटफॉर्म, विशेष रूप से सोशल मीडिया, युवा मतदाताओं के साथ प्रतिध्वनित होते हैं, जो राजनीतिक कंटेंट का ऑनलाइन उपभोग करने की अधिक संभावना रखते हैं, जिससे महत्वपूर्ण मतदाता आधार के साथ प्रभावी जुड़ाव सुनिश्चित होता है। वर्ष 2024 के चुनावों में राजनीतिक दलों की इंस्टाग्राम रणनीति विशेष रूप से युवा मतदाताओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए डिजाइन की गई थी। डिजिटल अभियान, जब जिम्मेदारी से उपयोग किए जाते हैं, तो मतदाताओं को सीधे नीतियों के बारे में सूचित करके, उन्हें सूचित विकल्प चुनने में मदद करके एवं समग्र चुनावी भागीदारी को बढ़ाकर अधिक पारदर्शिता प्रदान कर सकते हैं। वर्ष 2020 के अमेरिकी चुनाव के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति के डिजिटल टाउन हॉल ने महामारी प्रतिबंधों के बावजूद मतदाताओं को उनके साथ सीधे बातचीत करने की अनुमति दी।

आधुनिक डिजिटल प्लेटफॉर्म अक्सर बड़े बजट वाले दलों के विज्ञापनों को अधिक दृश्यता देकर उनका पक्ष लेते हैं, अभियान को अमीर राजनीतिक संस्थाओं के पक्ष में झुकाते हैं, जिससे चुनावी निष्पक्षता कम हो जाती है। गूगल के विज्ञापन वैश्विक चुनावों के दौरान उच्च-बजट वाली पार्टियों के पक्ष में पाए गए, जिससे उन्हें मतदाता पहुँच में लाभ मिला। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म विभाजनकारी कंटेंट को बढ़ा सकते हैं, जिससे राजनीतिक विचारों का ध्रुवीकरण हो सकता है एवं अधिक खंडित तथा शत्रुतापूर्ण चुनावी माहौल को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे रचनात्मक बहस कम हो सकती है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म विभाजनकारी कंटेंट को बढ़ा सकते हैं, जिससे राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ सकता है एवं अधिक खंडित, शत्रुतापूर्ण चुनावी माहौल बन सकता है, जो रचनात्मक बहस को कम कर देता है। 2019 में फेसबुक विज्ञापनों पर राष्ट्रीय पार्टियों का भारी खर्च छोटे क्षेत्रीय दलों के बजट से कहीं अधिक हो गया। डार्क विज्ञापनों एवं अत्यधिक लक्षित राजनीतिक संदेशों के उपयोग से नियामकों तथा जनता के लिए यह ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है कि विशिष्ट मतदाता समूहों को कौन सी जानकारी प्रसारित की जा रही है, जिससे पारदर्शिता कम हो जाती है।

डिजिटल प्लेटफॉर्म अक्सर पर्याप्त तथ्य-जाँच उपायों को लागू करने में विफल रहते हैं, जिससे झूठे दावे जारी रहते हैं एवं संभावित रूप से गलत या जानबूझकर हेरफेर की गई जानकारी के साथ मतदाताओं को गुमराह किया जाता है। भारत के वर्ष 2019 चुनावों के दौरान फर्जी खबरों को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करने के लिए व्हाट्सएप की आलोचना की गई, जिसने मतदाताओं की धारणा को प्रभावित किया। उल्लंघनों के माध्यम से मतदाता डेटा का शोषण राजनीतिक अभियानों को व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर लक्षित संदेश भेजकर मतदाताओं को हेरफेर करने की अनुमति दे सकता है, जिससे मतदाता स्वायत्तता से समझौता हो सकता है। कैम्ब्रिज एनालिटिका घोटाले ने उजागर किया कि भारत सहित विश्व भर में चुनाव परिणामों को प्रभावित करने के लिए मतदाता डेटा का अनैतिक रूप से उपयोग किया गया था।सरकारों एवं चुनाव निकायों को डिजिटल प्लेटफॉर्मों को गलत सूचना के लिए जिम्मेदार ठहराने तथा झूठे कंटेंट के प्रसार के लिए दंड लागू करने के लिए सख्त नियम लागू करने चाहिए। पारदर्शिता सुनिश्चित करने एवं ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अनियमित खर्च के माध्यम से प्राप्त अनुचित लाभ को रोकने के लिए राजनीतिक दलों को अपने डिजिटल विज्ञापन व्यय का पूरी तरह से खुलासा करने की आवश्यकता होनी चाहिए।

डिजिटल विज्ञापन खर्च पर विस्तृत रिपोर्ट अनिवार्य करने से चुनाव के दौरान समान अवसर सुनिश्चित हो सकते हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म को झूठी सूचनाओं की निगरानी एवं हटाने के लिए स्वतंत्र तथ्य-जाँचकर्ताओं के साथ सहयोग करना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि केवल सटीक राजनीतिक संदेश ही मतदाताओं तक पहुँचें। राजनीतिक कंटेंट की व्यापक कवरेज सुनिश्चित करने के लिए तृतीय पक्ष के तथ्य-जांचकर्ताओं के साथ फेसबुक की मौजूदा साझेदारी का विस्तार किया जा सकता है। चुनावी समानता बनाए रखने के लिए, राजनीतिक दलों द्वारा डिजिटल विज्ञापनों पर खर्च की जाने वाली राशि पर सीमाएँ लगाई जानी चाहिए, जिससे अमीर पार्टियों को डिजिटल क्षेत्र पर हावी होने से रोका जा सके। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर एल्गोरिदम को यह सुनिश्चित करने के लिए डिजाइन किया जाना चाहिए, कि सभी पार्टियों के राजनीतिक विज्ञापनों को पार्टी के वित्तीय संसाधनों की परवाह किए बिना समान प्रदर्शन मिले। लोकतांत्रिक निष्पक्षता को बढ़ावा देने के लिए गूगल जैसे प्लेटफॉर्म को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छोटे दलों के विज्ञापनों को बड़े दलों के समान दृश्यता मिले। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर चलने वाले सभी राजनीतिक विज्ञापनों वाला एक केंद्रीकृत डेटाबेस जनता के लिए सुलभ होना चाहिए, जिससे संदेश भेजने में पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके एवं गुप्त अभियानों को रोका जा सके।

गूगल का विज्ञापन पारदर्शिता केंद्र एक अच्छी शुरुआत है, लेकिन इसे सभी राजनीतिक विज्ञापनों पर अधिक व्यापक डेटा की आवश्यकता है। सरकारों एवं डिजिटल प्लेटफॉर्मों को हानिकारक राजनीतिक कंटेंट के प्रसार को रोकने तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए डिजाइन किए गए सहयोगी ढाँचे के साथ निगरानी को मजबूत करने के लिए मिलकर कार्य करना चाहिए। डिजिटल अभियान, परिवर्तनकारी होते हुए भी, निष्पक्षता एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए मजबूत निरीक्षण की आवश्यकता है। जैसा कि अब्राहम लिंकन ने जोर दिया था, “लोकतंत्र लोगों का, लोगों द्वारा, लोगों के लिए” होना चाहिए। डिजिटल अभियानों में समान पहुँच एवं कंटेंट विनियमन सुनिश्चित करने से लोकतांत्रिक मूल्य मजबूत होंगे तथा डिजिटल युग में चुनावी प्रक्रियाओं की अखंडता बरकरार रहेगी।

प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

 

(आलेख मे व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं।)

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