कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न आपातकालीन स्थिति में दीपावली कैसे मनाएं ?
‘इस वर्ष 14 नवंबर की में दीपावली है । कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि पर लागू की गई संचार बंदी यद्यपि उठाई जा रही है तथा जनजीवन पूर्ववत हो रहा है, तथापि कुछ स्थानों पर सार्वजनिक प्रतिबंधों के कारण सदैव की भांति दीपावली मनाना संभव नहीं हो पा रहा है । ऐसे स्थानों पर दीपावली कैसे मनाएं, इससे संबंधित कुछ उपयुक्त सूत्र और दृष्टिकोण यहां दे रहे हैं ।
(टिप्पणी : ये सूत्र जिस स्थान पर दीपावली का त्योहार मनाने हेतु प्रतिबंध अथवा मर्यादा हैं, ऐसे स्थानों के लिए हैं । जिन स्थानों पर प्रशासन के सर्व नियमों का पालन कर यह त्योहार मना पाना संभव है, उस स्थान पर प्रचलित प्रथा के अनुसार दीपावली मनाएं ।)
प्रश्न : वसुबारस (गोबारस) के दिन बाहर निकल कर क्या सवत्स गाय (बछडे सहित गाय) की पूजा करें ? पूजा करना संभव न हो, तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर : वसुबारस (गोबारस) यह दिन दीपावली से जुडकर आता है । इसलिए उसका समावेश दीपावली में किया जाता है; परंतु वास्तविक रूप से यह त्योहार अलग है । वसुबारस के दिन बाहर निकलकर सवत्स गाय की पूजा करने में बाधा हो, तो यदि घर में गाय की मूर्ति हो, तो उसकी पूजा करें । घर में गाय की मूर्ति न हो, तो पीढे पर गाय का चित्र बनाकर उसकी पूजा करें ।
प्रश्न : नरकचतुर्दशी के दिन आकाश में तारे रहने तक ब्राह्ममुहुर्त पर अभ्यंगस्नान करते हैं । चिचडा नामक वनस्पति की शाखा सिर से पैरों तक और पुनः सिर तक 3 बार गोलाकार घुमाते हैं । इसके लिए जडसहित चिचडा वनस्पति का उपयोग करते हैं । यदि चिचडा वनस्पति उपलब्ध न हो, तो क्या करना चाहिए ?*
उत्तर : चिचडा वनस्पति उपलब्ध न होने पर ईश्वर से प्रार्थना कर स्नान करना चाहिए ।
प्रश्न : दीपावली के दिनों में यमतर्पण, ब्राह्मणभोजन, वस्त्रदान किया जाता है । यह करना संभव न हो, तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर : यमतर्पण की विधि घर में करना संभव है । इसमें यमराज के 14 नाम लेकर पानी में तर्पण किया जाता है । इस तर्पण की विधि पंचांग में दी होती है । उस प्रकार विधि करनी चाहिए । ब्राह्मणभोजन करवाना तथा वस्त्रदान करना संभव न हो, तो अर्पण का सदुपयोग हो, ऐसे स्थान पर अथवा धार्मिक कार्य करनेवाली संस्थाआें को कुछ राशि अर्पण करनी चाहिए ।
प्रश्न : लक्ष्मीपूजन के लिए धना, गुड, कीलें, बतासे आदि सामग्री उपलब्ध न हो पाए, तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर : लक्ष्मीपूजन के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध न हो, तो जितनी सामग्री उपलब्ध है, उस सामग्री में भावपूर्ण पूजाविधि करनी चाहिए । बतासे आदि साहित्य न मिले, तो देवता को घर में घी शक्कर, गुड शक्कर अथवा किसी मिठाई का भोग लगाएं ।
प्रश्न : अभ्यंगस्नान के लिए उबटन उपलब्ध न हो, तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर : अभ्यंगस्नान के लिए उबटन उपलब्ध न हो, तो उसके स्थान पर नारियल के तेल में हलदी मिलाकर वह लगाएं ।
प्रश्न : तुलसी विवाह के लिए पुरोहित उपलब्ध न हों, तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर : तुलसी विवाह के लिए पुरोहित उपलब्ध न हो, तो जैसे भी संभव हो भावपूर्ण पूजा करें । वह भी न कर पा रहे हों, तो ‘श्री तुलसीदेव्यै नमः’ नामजप करते हुए तुलसी की पूजा करें । पूजा होने के उपरांत रामरक्षा की आगे दी गई पंक्तियां बोलें ।
‘रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ॥
रामान्नास्ति परायणम् परतरम् रामस्य दासोऽस्म्यहम्।
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥’
उसके पश्चात बृहद्स्तोत्ररत्नाकर नामक ग्रंथ में दिए गए सरस्वतीस्तोत्र के प्रारंभ की आगे दी हुई पंक्तियां बोलें ।
‘या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥’
ये श्लोक बोलने के पश्चात ‘सुमुहुर्त सावधान’ कहकर तुलसी पर अक्षत चढाएं ।
दीपावली का आध्यात्मिक महत्त्व, त्योहार मनाने की पद्धति से संबंधित विस्तृत जानकारी सनातन के ग्रंथ ‘त्योहार मनाने की उचित पद्धतियां और शास्त्र’ में दी गई है ।
दृष्टिकोण :
वर्तमान में यह परंपरा मान ली गई है कि, दीपावली का त्योहार मौज करने के लिए होता है । वर्तमान आपातकालीन स्थिति को देखते हुए मौज में समय व्यर्थ करना उचित नहीं है । कोरोना का संकट यद्यपि धीरे-धीरे न्यून हो रहा है, तथापि आपातकाल में किसी भी क्षण कोई भी संकट आ सकता है । जागतिक स्तर पर कुछ देशों मेें युद्ध हो रहे हैं । अनेक देशों में परस्पर संघर्ष हो रहे हैं । अनेक स्थानों पर युद्धजन्य परिस्थिति है । ये घटनाक्रम संसार को तीसरे विश्वयुद्ध की ओर ले जानेवाले हैं । आनेवाले भीषण आपातकाल का सामना करने के लिए साधना का बल होना आवश्यक है । वर्तमान काल साधना के लिए संधिकाल है तथा इस काल में की गई साधना का फल अनेक गुना अधिक मिलता है । इसलिए दीपावली के दिनों में मौज करने में समय व्यर्थ न करते हुए अधिकाधिक समय साधना के लिए प्रयत्न करने से व्यक्ति को उसका आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होगा ।’
– श्री. चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था