सम्पादकीय

नागरिकता कानून के विरोध के पीछे की हकीकत क्या है

नागरिकता कानून को लेकर एक बार फिर चर्चा आरंभ है, पक्ष और विपक्ष के बड़े-बड़े महारथी वाक्यो और जुमले के तरकश लेकर मैदान में उतर पड़े हैं, कोई इसकी खूबियां बयां कर रहा है तो कोई इसे संविधान का उल्लंघन बता रहा है। दरअसल केंद्र सरकार द्वारा बांग्लादेश पाकिस्तान और अफगानिस्तान के हिंदू सिख, पारसी,बौद्ध,जैन समुदाय के भारत में निश्चित अवधि तक रह रहे शरणार्थियों को भारत की ,नागरिकता प्रदान करने के लिए यह कानून बनाया गया है ,इस अधिनियम में मुस्लिम समुदाय शामिल नहीं किया गया है,इसी को लेकर सरकार के विरोधी सरकार को घर रहे हैं।

सरकार का अफगानिस्तान पाकिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने का यह निर्णय अपनी जगह बिल्कुल दुरुस्त है और यह पहली बार नहीं हुआ है,पूर्ववर्ती सरकारों के द्वारा भी पाकिस्तान से आए हुए शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान की गई है।उसी क्रम में वर्तमान सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन कानून लाया गया है। इस कानून के विरोधियों का तर्क है कि भारत सेक्यूलर देश है और मुसलमानो को इस अधिनियम से बाहर रखना संविधान की प्रस्तावना के विपरीत है।

1947 में भारत को विभाजित करके पाकिस्तान पूर्वी तथा पश्चिमी बनाया ही इसलिए गया था कि वह शरीयत के आधार पर कलमे की बुनियाद पर इस्लामी राष्ट्र होगा, जहां मुसलमानो को उनकी आस्था के अनुरूप जीवन जीने की आजादी होगी।यह और बात है की शरीयत और कलमे की बुनियाद पर बना पाकिस्तान भाषा के आधार पर 1971 में विभाजित हो गया और भाषा और प्रांत के आधार पर ही एक और विभाजन के कगार पर खड़ा है। वह मुल्क जो शरीयत और कलमे की बुनियाद पर बनाया गया,इस मुल्क में मुसलमान ही मुसलमान का कत्लेआम कर रहे हैं,आए दिन पाकिस्तान के कट्टरपंथी संगठनों के निशाने पर उदारवादी मुस्लिम रहते हैं।

एक प्रश्न देश की जनता को इन छद्म धर्मनिरपेक्षता का लिबास पहने हुए कथित संविधान प्रेमियों से करना चाहिए कि तुम्हें पाकिस्तान के शिया और सूफियां पर हो रहे अत्याचार तो दिखाई दे रहे हैं,लेकिन भारत में वैसा ही माहौल तैयार किया जा रहा है और कहीं-कहीं तो उसे पर अमल भी किया जा रहा है, उस उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आती है।

नागरिकता कानून विरोधी और उसके विरोध के लिए सड़कों पर खूनी खेल खेलने वाले इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं है, ऐसे लोग तो खुद भारत के शिया और सूफियों पर हो रहे अत्याचारों पर चुप्पी साधे रहते हैं,वो पाकिस्तान के शिया और सूफियो पर अत्याचार को भारत की नागरिकता देने की बात करते हैं, कितना हास्यास्पद और घिनौना कृत्य है। दरअसल इन सबको न शिया और सूफियों से प्यार है,न उनके हितों की चिंता इन सब के पीछे एक सियासी खेल है, जिसे भारत के मुसलमान को समझना चाहिए और खास तौर से उनकी सियासी खूनी भूख से अपने नौजवानों को बचाना चाहिए।

(सूफी मोहम्मद कौसर हसन मजीदी एडवोकेट)
राष्ट्रीय अध्यक्ष सूफी खानकाह एसोसिएशन