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गोपी वल्लभ जयंती पर साहित्य सम्मेलन ने काव्य-विभूति को दी श्रद्धापूर्ण काव्यांजलि

पटना, २४ नवम्बर। ‘वाणाम्बरी’, ‘कृष्णाम्बरी’, ‘अरुण रामायण’ और ‘महाभारती’ जैसे दशाधिक महाकाव्यों सहित ४५ मूल्यवान ग्रंथों की रचना कारने वाले, महाकवि पोद्दार रामावतार ‘अरुण’, हिन्दी साहित्य के महान शब्द-शिल्पी और भारतीय संस्कृति के अमर गायक के रूप में स्मरण किए जाते रहेंगे। अपने समग्र काव्य में, वे मानवतावादी दृष्टि और लोक-कल्याण की मंगलभावना को स्थापित करते हैं।
यह बातें गुरुवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, आयोजित जयंती-समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, अरुण जी बहुत बड़ी बातें सहज सरल शब्दावली में कहते हैं। उनकी भाषा और शैली ‘वार्तालाप’ की है। भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म-अलंकरण’ से और राज्य सरकार ने बिहार विधान परिषद की सदस्यता देकर उनकी साहित्यिक-सेवा को सम्मान दिया। वे “क्या हमारे बाद होगा हम न जाने/ ज़िंदगी को हम मधुर वरदान माने/ आज हम तुम हैं, न जाने कल कहाँ होंगे/ आज के इतिहास को रंगीन होने दो!”जैसी पंक्तियों से वर्तमान का मधुर आह्वान करते हैं।
अपने समय के अत्यंत लोकप्रिय कवि गोपी वल्लभ सहाय को स्मरण करते हुए, डा सुलभ ने कहा कि सहाय जी अत्यंत मर्म-स्पर्शी कवि थे। लोक-नायक जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए छात्र-आंदोलन में नुक्कड़ पर उतरे कवियों में वे अग्र-पांक्तेय और अन्य कवियों से भिन्न थे। वे अपने छंदों से श्रोताओं के दिल में उतर जाते थे। उनके शब्दों में जन-वेदना अपनी पूरी ऊर्जा से अभिव्यक्त होती थी।
समारोह का उद्घाटन करते हुए पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति हेमंत कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि ‘साहित्य’ के दो स्तम्भ हैं,एक साहित्यकार और दूसरा पाठक या श्रोता। यदि लेखक हो और उसका पाठक न हो, तो साहित्य का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। स्मरण किए जा रहे दोनों साहित्यकारों ने अपना एक बड़ा पाठक-वर्ग तैयार किया था।
सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष जियालाल आर्य ने कहा कि अरुण जी और गोपी वल्लभ जी दोनों को ही सुनने का अवसर मिला। अरुण जी से बहुत निकट का सान्निध्य रहा। दोनों ही बहुत अच्छा लिखते थे और उतने ही अच्छे और मीठे स्वर से पढ़ते थे। वरिष्ठ कवि और भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी बच्चा ठाकुर, प्रो सुशील कुमार झा तथा वंदना प्रसाद ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ जय प्रकाश पुजारी की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि शंकर शरण मधुकर, कुमार अनुपम, ई अशोक कुमार, सदानन्द प्रसाद, अर्जुन प्रसाद सिंह, अरविन्द अकेला और दा सुबोध श्रीवास्तव ने भी अपनी रचनाओं से ख़ूब तालियाँ बटोरी। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने किया।
इस अवसर पर डा चंद्रशेखर आज़ाद, डा आशुतोष कुमार, डा पंकज कुमार सिंह, प्रो राजीव श्रीवास्तव, रेणु गोयल, गणेश प्रसाद, अल्पना कुमारी, अमन वर्मा, दुःख दमन सिंह, नंदन कुमार मीत, दिगम्बर जायसवाल, मनोज कुमार, डौली कुमारी, कुमारी मेनका, पवन सिंह तथा वसंत गोयल समेत बड़ी संख्या में सुधीजन उपस्थित थे।